डॉ. इकबाल मोदी
मध्यप्रदेश में डॉक्टरों की कमी को देखते हुए प्रदेश सरकार ने चिकित्सा विभाग के डॉक्टरों की सेवानिवृत्ति आयु 65 से बढ़ाकर 70 वर्ष कर दी है। इस तरह शासन द्वारा आयु बढ़ाने का कोई औचित्य नहीं है। वैसे भी 65 वर्ष में उम्र संबंधित तमाम बिमारियां शरीर को घेरती है। ऐसे में मेडिकल कॉलेजों में उनकी सेवा लेना उचित नही है। प्रदेश में कई शासकीय एवं निजी मेडिकल कॉलेज हैं और कई प्रतिभावान नवयुवक डॉक्टर, चिकित्सा एवं शिक्षकीय कार्य करने हेतु सक्षम है। कई वैकल्पिक डॉक्टर्स है, जिनकी सेवाएं ली जा सकती है।
प्रदेश के नागरिकों के स्वास्थ की सुरक्षा स्थायी, सामाजिक एवं आर्थिक विकास तथा प्रादेशिक उत्पादकता से सीधा जुड़ा मुद्दा है। स्वास्थ एक ऐसा क्षेत्र है जिसमें किया गया व्यय कोई खपत नहीं अपितु मानव संसाधन के हित में किया गया निवेश है। आज जरूरत इस बात की है कि नागरिकों का विश्वास शासकीय स्वास्थ सेवाओं के प्रति पुनर्स्थापित हो और यह तभी संभव है जब विभाग के सभी कर्मचारी-अधिकारी नागरिकों के प्रति अपनी जवाबदेही समझते हुए और अपने कर्तव्यों का निर्वहन पूरी निष्ठा, समर्पण व ईमानदारी के साथ करें।
मप्र का स्थान देश के उन राज्यों में है, जहां महत्वपूर्ण स्वास्थ सूचकांकों की स्थिति अत्यंत दयनीय है। अतः स्वास्थ तथा स्वास्थ के कारकों के क्षेत्र में काम कर रहे सभी लोगों के सामने बहुत बड़ी चुनौती है। हमें उपलब्ध संसाधनों का समुचित उपयोग करते हुए और समाज की स्वास्थ आवश्यकताओं का ध्यान रखते हुए प्रदेश के नागरिकों को उम्दा सेवाएं देने के लिये अनवरत प्रयास करने होंगे। समाज के निर्धन वर्ग तथा वृद्धजनों को शासकीय स्वास्थ सेवाएं अन्य किसी भी वर्ग की तुलना में अधिक से अधिक व आसानी से उपलब्ध होनी चाहिए।
स्वास्थ सेवा मूलभूत मानवाधिकार है। लेकिन यह भी समझना होगा कि हर अधिकार कर्तव्य की भी मांग करता है। अधिकांश जीर्ण बीमारियां आमतौर पर हमारी जीवनशैली से संबंधित हैं और जीवनशैली को सुधारकर इसे बचाया जा सकता है। लेकिन हम हमारे शारीरिक और मानसिक स्वास्थ का खुद ध्यान न रखकर निजी व सरकार स्तर पर स्वास्थ सुविधाओं की मांग करते है। हम खानपान का ख्याल नहीं करते, व्यायाम नहीं करते और जब मोटापे से होने वाली बीमारियों से घिर जाते हैं, तो चाहते है कि उनका सही ठंग से इलाज हो।
हाल ही में किए गए एक अध्ययन से पता चला है कि जीवनशैली की वजह से ही पैदा होने वाली बीमारियों जैसे हृदयघात, उच्च रक्तचाप, मधुमेह, कैंसर आदि तेजी से पैर पसार रहे है। इससे न केवल उच्च-मध्य वर्ग के लोग ग्रस्त है। बल्कि अब तो ये बीमारियां ग्रामीण क्षेत्रों में भी आम होती जा रही है। जब तक स्वास्थ को लेकर हम खुद जाग्रत नहीं होंगे तब तक हमारी सेहत दांव पर लगी रहेगी। स्वास्थ रक्षा को लेकर हमें स्वयं के दायित्व को समझना होगा। तभी हम सेहतमंद रह सकेंगे। स्वास्थ्य के प्रति हमारी लापरवाही का इससे बड़ा नमूना और क्या होगा कि केवल धूम्रपान की वजह से हर साल फेफड़े के कैंसर के एक लाख 85 हजार मामले होते है। सिगरेट से दूर रहकर हम इस केंसर से बच सकते है। लेकिन हम ऐसा नहीं करते और जब इसके शिकार हो जाते हैं तो अत्याधुनिक इलाज की चाहत रखते हैं।
आज भी मप्र की 80 प्रतिशत आबादी ग्रामीण अंचलों में रहती है। इसमें से आधी से ज्यादा आबादी महिला और बच्चों की है। महिला और बच्चे ही बीमारी की दृष्टि से ज्यादा संवेदनशील होते है। जब तक इनका स्वास्थ अच्छा नहीं रहता, तब तक कोई परिवार, समाज या प्रदेश सुखी नहीं हो सकता।
आज मध्यप्रदेश में चिकित्सकों की कमी को देखते हुए, छत्तीसगढ़ राज्य की तरह 3 वर्षीय समन्वित चिकित्सा प्रणाली का पाठ्यक्रम लागू किया जाना चाहिए। वहां से निकले युवा ग्रामीण एवं शहरी क्षेत्रों में पदस्थ किए जाएं और उनके निवास और चिकित्सा सुविधाओं का प्रबंध किया जाए तो वरिष्ठ चिकित्सकों की रिटायरमेंट की उम्र बढ़ाने की जरूरत ही नहीं पड़ेगी।