क्रिकेट की दुनिया में पिछले कुछ सालों में हमने कई बदलाव देखे हैं। टेस्ट मैच से लेकर एक दिवसीय मैच तक और दिन-रात के खेल से लेकर 20-20 फार्मेट तक क्रिकेट बहुत बदला है। हालांकि टेस्ट मैच अब भी खेले जाते हैं पर लोगों की नजर में वे गए जमाने की बात हो गए हैं। आज जमाना 50 ओवर वाले एक दिवसीय मैचों का ही नहीं बल्कि 20-20 यानी फटाफट क्रिकेट का है। दुनिया जिस गति से आगे बढ़ रही है उसमें लोग सबकुछ फटाफट होते देखना चाहते हैं, सबकुछ फटाफट निपटा लेना चाहते हैं। यह बात अलग है कि फटाफट की इस आपाधापी में जिंदगी फटफटिया होकर रह गई है।
वैसे जीवन में गति का बढ़ना कोई बुरी बात भी नहीं है, बशर्ते वह हमें दुर्गति तक न ले जाती हो। जो 20-20 फार्मेट को पसंद करते हैं वे ऐसे लोग हैं जो हाथोंहाथ परिणाम चाहते हैं। आज की पीढ़ी के पास टेस्ट मैच का धैर्य नहीं है कि खेल को पांच दिन देखते रहें और अंत में फैसला भी मैच के ड्रा हो जाने के रूप में आए। दोनों टीमों के फरफार्मेंस का नतीजा यदि मैच के ड्रा होने के रूप में ही निकलना है तो भी लोग चाहते हैं कि एक तो वह फटाफट हो और उसमें भी कोई रोमांच हो। जैसे अंतिम गेंद पर शॉट लगाने के बाद भाग कर लिए गए एक रन से कोई टीम मैच को ड्रा करवा दे।
क्रिकेट और उसके 20-20 फार्मेट की बात आज इसलिये याद आई क्योंकि आज से ही नया साल 2020 शुरू हो रहा है। जब सन 2000 आया था तो उसे मिलेनियम ईयर बताते हुए दुनिया ने उसका बहुत अलग ढंग से स्वागत किया था। उसके बाद से ही एक और मुहावरा चल पढ़ा था ‘मिलेनियल जनरेशन’ यानी सहस्त्राब्दी पीढ़ी। यह वो पीढ़ी कही जाती है जिसकी दुनिया और जिसके सपनों से लेकर जिंदगी जीने के रंग-ढंग तक पुरानी पीढ़ी से ठीक वैसे ही अलग हैं जैसे टेस्ट मैच और वन डे या फिर 20-20 की दुनिया। इस पीढ़ी के उतावलेपन को आप कुछ यूं समझ सकते हैं कि यह परीक्षा देने से पहले ही परिणाम जान लेना चाहती है।
तो जब देश और समाज में ऐसी पीढ़ी आगे आने को आतुर हो उस समय समाज और देश की सरकारों के लिए भी जरूरी हो जाता है कि वे अपने काम के तरीके और ढर्रे की गति को वैसा सेट करें कि वह नई पीढ़ी की इच्छाओं, आकांक्षाओं और सपनों के साथ कदमताल कर सके। आज जब हम 2020 में प्रवेश कर रहे हैं तो सबसे पहला सवाल और आकलन तो यही बनता है कि हमारे समाज और देश की प्रगति की गति 20-20 वाली है या फिर टेस्ट मैच वाली। गाने में भले ही कोई युवा यह कहते हुए मजे ले ले कि डूब जाऊं तेरी आंखों के ओशन में, स्लो मोशन में… लेकिन असल जिंदगी में वह स्लो मोशन में नहीं बल्कि फास्ट फॉरवर्ड मोशन में आगे बढ़ना चाहता है।
नई पीढ़ी को तो शायद कम ही याद होगा कि हम आज से जिस नए साल में प्रवेश कर रहे हैं उस साल के बारे में इस पीढ़ी के बाप-दादों ने बहुत से सपने देखे थे। मिलेनियम ईयर शुरू होने के बाद से ही यह बहस चल पड़ी थी कि अगली शताब्दी देश के लिए कैसी होगी और उसमें भारत का स्वरूप क्या होगा। पंरपरावादी पीढ़ी जहां भारत के विश्वगुरू होने का सपना देख रही थी वहीं आधुनिक हो चली पीढ़ी का मानना था कि 2020 तक भारत एक विकसित देश होगा और हम नागरिकों के लिए शिक्षा, स्वास्थ्य, आवास जैसी बुनियादी जरूरतों को बहुत हद तक पूरा कर लेंगे।
2000 में इसी उद्देश्य को लेकर योजना आयोग ने ‘विजन-2020’ के लिए एक समिति बनाई थी। दिसंबर 2002 में आई इस समिति की रिपोर्ट में भारत की प्रगति की रफ्तार को देखते हुए अनुमान लगाया गया था कि आने वाले दो दशकों यानी 2020 तक भारत की जीडीपी दर बढ़कर 8.5 से 9 फीसदी तक पहुंच जाएगी और इसके परिणाम स्वरूप देश की प्रति व्यक्ति आय में चार गुना तक का इजाफा होगा। इससे भारत में गरीबी की रेखा से नीचे जीने वालों की संख्या करीब करीब शून्य हो जाएगी। इस विजन डाक्यूमेंट में कहा गया था कि 2020 तक भारत जनसंख्या की दृष्टि से और बड़ा होगा लेकिन उसमें देश के इतिहास के किसी भी कालखंड की तुलना में बेहतर पढ़े-लिखे, ज्यादा सेहतमंद और अधिक समृद्ध लोग होंगे।
पर वास्तविक स्थिति को सिर्फ दो आंकड़ों से समझा जा सकता है कि भारत की वर्तमान जीडीपी दर 5 प्रतिशत या उससे भी कम रहने का अनुमान है जबकि अक्टूबर में जारी विश्व भूख सूचकांक (World Hunger Index) के 117 देशों की सूची में भारत 102 वें नंबर पर है। 2011 की जनगणना के मुताबिक देश की 22 प्रतिशत आबादी गरीबी की रेखा से नीचे थी जबकि 2019 तक आते आते भी यह आंकड़ा 17 फीसदी तो था ही। तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली का कहना था कि 2025 तक भी भारत की 10 फीसदी आबादी तो गरीबी के रेखा से नीचे रहेगी ही।
कहने का आशय यह है कि 2020 के लिए हमने जो सपने पाले थे वे हमारे अनुमानों को अंगूठा दिखाते नजर आ रहे हैं। हमें जिस गति से आगे बढ़ना था वह बाधित हुई है और हम 2020 तक आते आते 20-20 मोड में खेलने के बजाय आज भी टेस्ट मैच मोड में ही खेल रहे हैं।
भारत के पूर्व राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम की मशहूर पुस्तक ‘इंडिया 2020: ए विजन फॉर द न्यू मिलेनियम’ के सह-लेखक वाय.एस. राजन ने ठीक ही कहा है कि ‘’भारत आगे बढ़ा, लेकिन अच्छे जीवन और समृद्धि पर नजर पड़ते ही हम शिथिल हो गए। इससे भी बदतर यह हुआ कि हम दिशा से भटक गए और आपस में ही लड़ने-झगड़ने लगे। इसमें कुछ कीमती साल गंवा दिए।… हम तय काम पूरा करने में पूरा जोर लगा देते हैं। यह अच्छा है, लेकिन लगातार प्रयास का अभ्यास हमारे स्वभाव में नहीं है।‘’
अब जबकि हम 2020 की दहलीज पार कर उसके घर में प्रवेश कर चुके हैं, हमें सोचना होगा कि भविष्य के भारत को गढ़ने के लिए इस बहुप्रतीक्षित कालखंड में खड़े होकर हम क्या और कैसे करने जा रहे हैं…
आप सभी को नववर्ष की शुभकामनाएं