ऐसा नहीं है कि मध्यप्रदेश में बेरोजगारी का मुद्दा एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) के चुनाव पूर्व सर्वे में ही सामने आया हो। चुनावी साल में आई कई मीडिया रिपोर्ट्स में यह बात बार बार रेखांकित हुई थी कि इस बार राजनीतिक दलों की हारजीत में रोजगार का मसला बहुत बड़ी भूमिका अदा करेगा।
जब यह साल शुरू ही हुआ था तब जनवरी माह में एनडीटीवी ने एक रिपोर्ट दिखाई थी जिसमें सरकारी आंकड़ों के हवाले से कहा गया था कि मध्यप्रदेश में लगभग 1 करोड़ 41 लाख युवा हैं। पिछले 2 सालों में राज्य में 53 फीसदी बेरोजगार बढ़े हैं। दिसम्बर 2015 में पंजीकृत बेरोजगारों की संख्या 15 लाख 60 हजार थी जो दिसम्बर 2017 में 23 लाख 90 हजार हो गई। प्रदेश के 48 रोजगार कार्यालयों ने मिलकर 2015 में कुल 334 लोगों को रोजगार उपलब्ध कराया।
सितंबर 2018 में मध्यप्रदेश बेरोजगार सेना ने भोपाल में बेरोजगार पंचायत का आयोजन किया था। बेरोजगार सेना के अक्षय हुंका ने मीडिया को बताया था कि राज्य में 2005 से 2015 के बीच बेरोजगारी से जुड़ी आत्महत्या की घटनाओं में 20 गुना इजाफा हुआ है। ऐसी घटनाओं के लिहाज से मध्यप्रदेश देश के अग्रणी राज्यों में है।
हुंका के मुताबिक पिछले दस सालों में रोजगार कार्यालयों में 57 लाख बेरोजगारों ने पंजीयन कराया जिनमें से सिर्फ एक प्रतिशत लोगों को ही रोजगार मिल सका। रोजगार का मामला संकट का कारण न बन सके इसके लिए सरकार ने अकेले चुनावी साल में करीब 60 हजार नौकरियां निकाल दीं। मामले का दूसरा गंभीर पहलू यह भी है कि सरकार द्वारा बताए जाने वाले बेरोजगारों के आंकड़े वास्तविकता से कोसों दूर हैं।
राज्य विधानसभा में अप्रैल 2018 में बजट सत्र के दौरान कांग्रेस विधायक रामनिवास रावत के एक सवाल के जवाब में सरकार ने कहा था कि राज्य में 2004 से 2017 के बीच 14 सालों में सार्वजनिक, निजी और सहकारिता क्षेत्रों में औसतन 17 हजार 615 रोजगार प्रतिवर्ष सृजित हुए। इस अवधि में कुल 2 लाख 46 हजार 612 रोजगार सृजित हुए जिनमें से 2 लाख 27 हजार 386 निजी क्षेत्र द्वारा सृजित किए गए।
बजट सत्र के दौरान सदन के पटल पर रखे गए आर्थिक सर्वेक्षण में बताया गया कि 2016 तक राज्य में शिक्षित बेरोजगारों की संख्या 11 लाख 24 हजार थी। रामनिवास रावत के सवालों के जवाब में सरकार ने मंजूर किया कि राज्य में बेरोजगारी 16.4 फीसदी बढ़ी है। तत्कालीन नेता प्रतिपक्ष अजयसिंह ने सदन में कहा था कि सरकार के आंकड़े सचाई बयान नहीं करते, अकेले मध्यप्रदेश में ही करीब डेढ़ करोड़ लोग बेरोजगार हैं। केंद्र सरकार का हर साल दो करोड़ रोजगार देने का वादा छलावा ही साबित हुआ है।
आंकड़े बताते हैं कि चुनाव नजदीक आते आते सरकार की धड़कनें भी बढ़ीं और पिछले तीन सालों यानी 2015 से लेकर 2017 तक एक लाख 15 हजार 740 लोगों को रोजगार मुहैया कराया गया। इसका मतलब पिछले 14 सालों में दिए गए कुल रोजगार का करीब आधा सिर्फ पिछले तीन सालों में दिया गया। बाकी 11 सालों में सिर्फ एक लाख 30 हजार 872 रोजगार ही मुहैया कराए गए।
इस अवधि में मध्यप्रदेश में निवेश को आकर्षित करने के लिए भी काफी सारी गतिविधियां हुईं। जिनमें सबसे प्रमुख थी ‘ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट’ 2007 में इंदौर में हुई इस समिट में एक लाख 20 हजार करोड़ के, 2010 में हुई समिट में 2 लाख 35 हजार करोड़ के, 2012 में 4 लाख 31 हजार करोड़ के, 2014 में 5.89 लाख करोड़ के और 2016 में 5 लाख 63 हजार करोड़ के निवेश प्रस्ताव आए।
2016 की ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट को संबोधित करते हुए तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराजसिंह ने कहा था कि 2014 के बाद से राज्य को दो लाख 75 हजार करोड़ का निवेश मिला है और इनमें से 110 कारखाने चालू हो गए हैं। 2014 के बाद से राज्य में फूड प्रोसेसिंग के 175 और नवकरणीय ऊर्जा के 92 प्लांट स्थापित हुए हैं।
लेकिन इतने भारी भरकम निवेश प्रस्तावों और निवेश दावों के बावजूद प्रदेश में रोजगार की कहानी तो कुछ और ही तसवीर पेश करती है। लाखों करोड़ रुपए के निवेश के ये सारे दावे प्रदेश में रोजगार की स्थिति से तो मेल नहीं खाते। यदि प्रदेश में इतना अधिक निवेश हुआ है और वास्तव में यहां इतने सारे कल कारखाने लगे हैं तो निश्चित रूप से बेरोजगारों की संख्या पर भी उसका असर दिखना चाहिए था, लेकिन ऐसा दिखता तो नहीं।
यदि प्रदेश में निवेश होने और कारखाने लगने के बावजूद बेरोजगारी में कोई खास कमी नहीं आई है तो इसका सीधा सीधा मतलब यह हुआ कि या तो कारखाने लगने के दावों में कोई खोट है या फिर वहां रोजगार दिए जाने की प्रक्रिया के साथ कोई समस्या है। यदि इन कल कारखानों में मध्यप्रदेश के युवाओं को रोजगार मिलता तो वह कहीं दिखना भी चाहिए था।
मैंने इस बारे में कई जगह ढूंढने की कोशिश की लेकिन मुझे एकजाई रूप से यह आंकड़ा कहीं नहीं मिल सका जो यह बताता हो कि मध्यप्रदेश में पिछले 15 सालों में इतना निवेश हुआ, इतने कारखाने लगे, इतने में काम चालू हुआ, इन कारखानों में कुल इतने लोगों को रोजगार मिला और जिन्हें रोजगार मिला उनमें मध्यप्रदेश के निवासियों की संख्या इतनी थी।
ऐसे में पहला सवाल तो यही है कि क्या इस मामले को पूरी पारदर्शिता के साथ प्रदेश की जनता के सामने नहीं रखा जाना चाहिए और दूसरा यह कि यदि ये कारखाने लगे और इनमें रोजगार भी दिया गया और वह रोजगार मध्यप्रदेश के लोगों को नहीं मिला तो फिर वह किसको और कैसे मिला? (जारी)