दो दिन पहले मैंने भारतीय राजनीति में डरने डराने की प्रवृत्ति के बारे में लिखा था। आज कुछ ऐसा हुआ है जिसे लेकर उसी बात को आगे बढ़ाने का मन है। राजनीतिक दलों और उनके नेताओं के बीच इन दिनों अजीब खेल चल रहा है। ऐसा लगता है हम लोकतांत्रिक व्यवस्था से फिर राजतंत्र या सामंती व्यवस्था की ओर लौट रहे हैं। जिस राज्य में जिस पार्टी की सरकार है वहां वह पार्टी और उसके नेता आजकल ऐसा व्यवहार कर रहे हैं मानो वे उस राज्य के एकछत्र सम्राट या साम्राज्ञी हैं और वे जो चाहें कर सकते हैं।
ताजा घटना उत्तरप्रदेश की है जहां मंगलवार को समाजवादी पार्टी के मुखिया और राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को इलाहाबाद विश्वविद्यालय में जाने से रोक दिया गया। स्थानीय प्रशासन से लेकर राज्य सरकार तक ने इसका कारण बताया कि अखिलेश के विश्वविद्यालय जाने से छात्र समूहों में टकराव हो सकता था और कानून व्यवस्था की स्थिति बिगड़ सकती थी।
इस घटना पर बात करने से पहले इसकी पृष्ठभूमि जानना बहुत जरूरी है। दरअसल इलाहाबाद विश्वविद्यालय छात्रसंघ के चुनाव पिछले साल अक्टूबर में हुए थे। इसमें पांच महत्वपूर्ण पदों में से समाजवादी छात्र सभा को दो, एनएसयूआई को दो और अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद को एक पद मिला था। अध्यक्ष और संयुक्त सचिव पद समाजवादी पार्टी की छात्र इकाई समाजवादी छात्र सभा के खाते में गया था, जबकि एनएसयूआई को उपाध्यक्ष व सांस्कृतिक सचिव का पद हासिल हुआ था। महासचिव का पद एबीवीपी जीती थी।
इससे पहले हुए चुनाव में समाजवादी छात्रसभा ने पांच में से अध्यक्ष सहित चार पद झटक लिए थे। जाहिर है देश के बड़े विश्वविद्यालयों में छात्र राजनीति के बहाने चलने वाली मुख्य राजनीति से इलाहाबाद विवि भी अछूता नहीं है। विश्वविद्यालय छात्रसंघों पर कब्जे को राजनीतिक दल युवा पीढ़ी में अपनी लोकप्रियता और पैठ के पैमाने के रूप में देखते आए हैं इसलिए ये चुनाव दलों के लिए भी प्रतिष्ठा का प्रश्न होते हैं।
बताया गया कि मंगलवार को अखिलेश यादव को इसी छात्रसंघ के शपथ ग्रहण समारोह में न्योता गया था। लेकिन उन्हें इलाहाबाद रवाना होने से पहले लखनऊ एयरपोर्ट पर ही रोक लिया गया। अधिकारियों ने कहा कि कानून व्यवस्था के तकाजे के चलते उन्हें इलाहाबाद जाने की इजाजत नहीं है। बाद में योगी सरकार के प्रवक्ता ने सफाई भी दी कि जिस कार्यक्रम में अखिलेश को बुलाया गया था उसके लिए कोई अनुमति भी नहीं दी गई थी।
इस पूरे घटनाक्रम में राजनीतिक बवाल के सारे तत्व मौजूद थे और वैसा ही हुआ भी। अखिलेश यादव ने घटना को लेकर ट्वीट किया ’शासन-प्रशासन ने हमें इलाहाबाद विश्वविद्यालय में जाने से रोकने का षडयंत्र रचा है पर वे हमें छात्रों से मिलने से नहीं रोक सकते। राजनीतिक, सामाजिक क्षेत्रों के बाद अब विश्वविद्यालयों को संकीर्ण राजनीति का केंद्र बनाने की बीजेपी की साजिश देश के शैक्षिक वातावरण को भी दूषित कर देगी।’
सपा की राजनीतिक साथी बसपा की प्रमुख मायावती ने भी मामले को लेकर योगी सरकार पर निशाना साधा और कहा कि ‘’यह बीजेपी सरकार की तानाशाही व लोकतंत्र की हत्या का प्रतीक है। क्या बीजेपी की केन्द्र व राज्य सरकार बीएसपी-एसपी गठबंधन से इतनी ज्यादा भयभीत व बौखला गई हैं कि उनकी राजनीतिक गतिविधि व पार्टी प्रोग्राम करने पर भी रोक लगाने पर तुल गई है।‘’
उधर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का बयान आया कि इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में अराजकता न हो इसलिए अखिलेश को रोका गया है। समाजवादी पार्टी अराजकता फैलाने के लिए जानी जाती है, अखिलेश जाते तो इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में बवाल होता। छात्र गुटों में हिंसा की आशंका के चलते उन्हें रोका गया है।
प्रयाग जिला प्रशासन के एक अधिकारी का कहना था कि यूनिवर्सिटी की परामर्शदात्री समिति ने 8 फरवरी को निर्णय लिया था कि राजनीतिक दलों से संबंधित लोगों को छात्रसंघ के वार्षिकोत्सव समारोह में शामिल होने की अनुमति नहीं दी जा सकती। और इसी निर्णय के संदर्भ में सोमवार को आदेश भी जारी कर दिया गया था।
इस मामले में और भी कई राजनीतिक व स्थानीय पेंच होंगे लेकिन उनकी तफसील में जाने का कोई मतलब नहीं है। मुद्दा सिर्फ इतना है कि जो भाजपा अपने नेताओं को पश्चिम बंगाल में जाने और सभा करने की अनुमति न दिए जाने पर ममता सरकार को पानी पी पीकर कोस रही है, क्या वह खुद उत्तरप्रदेश में ममता का अनुसरण नहीं कर रही?
आखिर इस देश में किन किन बातों पर प्रतिबंध लगेगा और क्यों? व्यवस्थाएं लोकतांत्रिक तरीके से चलेंगी या राजनीतिक मनमानी से। यदि बंगाल में कोई बात गलत है तो वह उत्तरप्रदेश, बिहार या दिल्ली में भी गलत है। यदि खुद के साथ घटना हो जाए तो आप आसमान फाड़ने पर उतर आएं और जब आप खुद वही व्यवहार दूसरों के साथ करें तो आपको कानून व्यवस्था की दुहाई याद आने लगे, यह कैसे चलेगा?
बंगाल में भी तो ममता ने कानून व्यवस्था बिगड़ने का हवाला देकर ही अमित शाह, योगी आदित्यनाथ, शिवराजसिंह चौहान, शाहनवाज हुसैन आदि की सभाओं को अनुमति नहीं दी थी। कानूनी और सुरक्षा कारणों का हवाला दिए जाने के कारण ही तो खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को बंगाल में अपनी सभा करने में पसीने आ गए थे। अब यदि ममता वहां गलत थी तो योगी सही कैसे हैं?
और छोडि़ए इस सही गलत को भी, सवाल तो यह है कि क्या अब हम देश को उन हालात में ले जा रहे हैं जहां एक राजा दूसरे राजा से राजा की तरह नहीं बल्कि दुश्मन की तरह व्यवहार करेगा। और क्या मतलब है प्रशासन की इस बात का कि ‘’राजनीतिक दलों से संबंधित लोगों को छात्रसंघ के वार्षिकोत्सव समारोह में शामिल होने की अनुमति नहीं दी जा सकती।‘’
अरे राजनीतिक दलों से संबद्ध छात्रसंघ चुनाव लड़ते हैं, दलों के नेता छात्रसंघों के समारोहों में आज से नहीं बरसों से आ जा रहे हैं। आप कैसे रातोंरात ये तुगलकी फैसला कर सकते हैं कि अब ऐसा नहीं होगा… और कोई पूछे तो आप कह दें… मेरी मरजी…
लोकतंत्र में मेरी सरकार और मेरी मरजी वाली तानाशाही का ये जो जाल बुना जा रहा है ना, एक दिन वह पूरे ढांचे को ले डूबेगा। आप तो अपनी करनी करके चले जाएंगे, भुगतना इस देश को पड़ेगा… आप इस बारे में सोचेंगे यह उम्मीद तो कतई नहीं है फिर भी आदत से मजबूर होकर कहना पड़ रहा है कि कभी जरा इस देश के बारे में भी सोच लिया करें, जिसकी दिन रात दुहाई देकर आप अपने लिए राजनीति का मख्खन बिलोते रहते हैं…