गिरीश उपाध्याय
उम्रदराज होने के कारण मंत्रिमंडल से हटा दिए गए गृह मंत्री बाबूलाल गौर से पिछले दिनों मध्यप्रदेश विधानसभा में नगरीय विकास मंत्री मायासिंह ने एक तीखा सवाल पूछा था तभी मैंने लिखा था कि ‘’इस सवाल में छिपा संकेत गौर साहब को समझना होगा। निश्चित रूप से वे पार्टी के वरिष्ठ नेता हैं, सदन में उनका सम्मान भी है। लेकिन खुद को खबर बनाने की अनावश्यक कोशिशों से उन्हें बचना होगा। सुर्खियों में बने रहने के लिए गौर साहब ने अपनी पीड़ा को जिस तरह खीज के रूप में प्रस्तुत करना शुरू कर दिया है, उसके चलते इस बात की पूरी संभावना है कि वे अपना वर्तमान सम्मान भी खो बैठें। निश्चित रूप से सरकार या पार्टी में कोई भी उनका असम्मान नहीं चाहेगा, लेकिन यदि उन्होंने खुद को सक्रिय दिखाने के लिए संयम से समझौता किया, तो उसकी परिणति शायद उन्हें और अधिक ठेस पहुंचाने वाली होगी। आडवाणीजी का उदाहरण सबके सामने है…’’
और ठीक वही हुआ जिसकी आशंका मैंने व्यक्त की थी। ठीक तीन दिन बाद 26 जुलाई को पहले कैबिनेट की बैठक में और बाद में मुख्यमंत्री शिवराजसिह चौहान के विशेष प्रभाव वाले जिले विदिशा में जो आवाज उठी, उसने साबित कर दिया कि मध्यप्रदेश भारतीय जनता पार्टी की सरकार और संगठन में पैंतरेबाजी चरम पर है। कैबिनेट की बैठक में खुद मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान ने संकेतों ही संकेतों में कुछ लोगों पर निशाना साधा। मीडिया में उनके हवाले से जो कथन छपा है वह ध्यान देने योग्य है- ‘’डाल को मत काटो। मंत्री या अन्य आपस में ऐसे बयानों से बचें जिससे पार्टी को नुकसान हो। छवि पर असर पड़े। कैबिनेट में हम एक दूसरे से बात कर सकते हैं। लेकिन सदन में कोई बात हो या बाहर कोई बयान दिया जाए, चाहे फिर वह कोई वरिष्ठ या कोई अन्य ही क्यों न हो, हम सरकार में हैं, इसलिए जिम्मेदारी से उसका जवाब दें। हां में हां न मिलाएं।‘’ यह बात कहते समय जो नाम मुख्यमंत्री ने खुलकर नहीं लिया, कैबिनेट की बैठक में ‘बाबूलाल गौर’ का वो नाम सरकार के प्रवक्ता और संसदीय कार्य मंत्री नरोत्तम मिश्रा ने ले लिया।
अब पता नहीं यह मंत्रिमंडल की बैठक में उठे इस मुद्दे का असर था या कोई प्रत्यक्ष या परोक्ष संकेत कि शाम होते होते विदिशा से वह खबर भी आई गई जिसकी आशंका थी। 30 जून को हुए शिवराज मंत्रिमंडल के विस्तार में राज्य मंत्री बनाए गए, सूर्यप्रकाश मीणा ने सीधे सीधे गौर साहब को पार्टी से निकाल बाहर करने की मांग कर डाली। मीणा ने कहा कि पार्टी ने गौर साहब को क्या-क्या नहीं दिया, उन्हें पार्टी के कारण ही मान मिला, सम्मान मिला। मीणा ने गौर साहब की पुत्रवधू और भोपाल की पूर्व महापौर कृष्णा गौर को भी निशाने पर लिया और कहा कि उन्हें भी महापौर की कुर्सी गौर साहब के कारण ही मिली। लेकिन गौर को जब से मंत्रिमंडल से हटाया गया है, तब से वे पार्टी और सरकार के खिलाफ बोल रहे है। उनके बयानों से कांग्रेस को भाजपा पर हमला करने का मौका मिल रहा है। गौर लगातार कांग्रेसियों के संपर्क में है। वे कांग्रेसियों के साथ मिलकर सरकार को संकट में डालना चाहते है।
27 जुलाई को मीणा ने यही बयान विधानसभा परिसर में मीडिया से चर्चा के दौरान दोहराया। उनके अलावा मुरैना जिले के सुमावली के भाजपा विधायक सत्यपालसिंह सिकरवार ने भी गौर पर कार्रवाई करने की मांग की।
दरअसल पार्टी ने 75 साल से अधिक उम्र होने के कारण बाबूलाल गौर और सरताजसिंह को शिवराज मंत्रिमंडल से हटाया था। उसके बाद से सरताजसिंह तो ज्यादा नहीं बोल रहे हैं, लेकिन बाबूलाल गौर के बयानों ने पिछले करीब एक माह के दौरान सरकार और पार्टी दोनों को सार्वजनिक रूप से और विधानसभा के भीतर भी मुश्किल में डाला है। गौर के सवाल बहुत चुभते हुए हैं और इनकी चुभन वे जिन्हें महसूस कराना चाहते हैं, उन्हें महसूस हो भी रही है।
वैसे मुद्दा बाबूलाल गौर के सवाल उठाने का भी नहीं है, ऐसा लगता है कि सरकार और पार्टी में जो प्रतिक्रिया हो रही है, वह उनके तरीके को लेकर है। ऐसे में गौर साहब को खुद ही समझना होगा कि जिस पार्टी में उन्होंने अपनी पूरी राजनीतिक जिंदगी खपा दी, उस पार्टी की तासीर अब बदल गई है। अभी तो उन्हें उम्र का तकाजा याद दिलाते हुए मंत्रिमंडल से हटाया गया है, इससे पहले कि नई तासीर वाली नई पीढ़ी उन्हें सरेआम हड़काने लगे, उन्हें अपने सम्मान की रक्षा कर लेनी चाहिए। मैंने अपने पहले भी इसकी आशंका जाहिर करते हुए लिखा था कि लालक़ष्ण आडवाणी जैसे कद्दावर नेता का हश्र सबके सामने है। गौर यदि सोचते हैं कि उनके तीखे या बगावती तेवरों से ही उनकी पहले जैसी पूछपरख बनी रहेगी, तो शायद यह उनकी गलतफहमी है।
दरअसल यह मीडिया के नए दौर का माहौल है, जो रोज नए चटखारे चाहता है। कहीं ऐसा न हो कि मीडिया की ‘रेसिपी’ के लिए ‘मसाला’ मुहैया कराते कराते, गौर खुद ‘बेस्वाद’ हो जाएं। क्योंकि मीडिया की जीभ का तो कोई भी स्वाद स्थायी नहीं होता। गौर साहब के पास मंत्री पद का चटखारेदार स्वाद न बचा हो, लेकिन वरिष्ठता के सम्मान की मिठास वे बरकरार रख सकते हैं। लेकिन इसके लिए उन्हें उम्र के तकाजे को ध्यान में रखते हुए ‘मसालेदार’ चीजों से परहेज करना ही होगा।