उम्‍मीद है सरकार चलाने में ऐसा कोई विघ्‍न नहीं आएगा

15 साल के लंबे इंतजार के बाद सोमवार को मध्‍यप्रदेश में कमलनाथ के नेतृत्‍व में कांग्रेस सरकार का गठन हो गया। कमलनाथ का शपथ ग्रहण समारोह न सिर्फ मध्‍यप्रदेश में सत्‍ता परिवर्तन का वाहक बना बल्कि राष्‍ट्रीय राजनीति में विपक्षी दलों के कई दिग्‍गज नेताओं की मौजूदगी के चलते यह एक नए राजनीतिक गठबंधन का गवाह भी बना।

सत्‍ता में परिवर्तन सिर्फ मध्‍यप्रदेश में ही नहीं राजस्‍थान और छत्‍तीसगढ़ में भी हुआ। मध्‍यप्रदेश में जहां सिर्फ कमलनाथ ने मुख्‍यमंत्री पद की शपथ ली वहीं राजस्‍थान में अशोक गहलोत ने मुख्‍यमंत्री पद की और उनके साथ सचिन पायलट ने मंत्री पद की शपथ ग्रहण की जिन्‍हें राज्‍य का उप मुख्‍यमंत्री बनाया गया है। इसी तरह छत्‍तीसगढ़ में भूपेश बघेल के नेतृत्‍व में सरकार का गठन हुआ और उनके साथ दो और मंत्रियों टी.एस. सिंहदेव तथा ताम्रध्‍वज साहू ने भी शपथ ली।

तीनों राज्‍यों में मंच की खासियत यह रही कि यहां निवर्तमान मुख्‍यमंत्री भी मंच पर मौजूद थे। राजस्‍थान में जहां वसुंधरा राजे शपथ ग्रहण समारोह में आईं वहीं छत्‍तीसगढ़ में रमनसिंह कार्यक्रम में शामिल हुए। लेकिन मध्‍यप्रदेश में कमलनाथ के शपथ ग्रहण मंच का नजारा राजस्‍थान और छत्‍तीसगढ़ दोनों से अलग था।

भोपाल के जंबूरी मैदान में बने भव्‍य मंच पर, मध्‍यप्रदेश में भाजपा की ओर से मुख्‍यमंत्री रहे एक नहीं तीन नेता मौजूद थे। इनमें हाल ही में निवृत्‍त हुए शिवराजसिंह चौहान के अलावा कैलाश जोशी और बाबूलाल गौर शामिल हैं। इन तीनों पूर्व मुख्‍यमंत्रियों की मौजूदगी और मंच पर हुई कई घटनाओं ने बहुत सुखद अनुभूति कराई।

मंच पर मौजूद दिग्विजयसिंह आने वाले तमाम नेताओं का ऐसे स्‍वागत कर रहे थे मानो कोई घराती अपने घर आए बारातियों का स्‍वागत कर रहा हो। खुद मुख्‍यमंत्री रह चुके दिग्विजयसिंह ने भाजपा के तीनों पूर्व मुख्‍यमंत्रियों की बहुत ही आत्‍मीयता से अगवानी की। वह लमहा देखने लायक था जब कैलाश जोशी पीछे की पंक्ति में बैठने लगे तो दिग्विजयसिंह उनके पास पहुंचे। पहले तो उन्‍होंने कैलाश जोशी के पैर छुए और बाद में उनका हाथ पकड़कर उन्‍हें आगे की पंक्ति में लाकर बिठाया।

इसी तरह एक और दृश्‍य इतिहास बना गया जब शपथ ग्रहण के बाद कमलनाथ शिवराजसिंह के पास आए। शिवराज ने उनका हाथ थामा और दोनों ने जनता की ओर अभिवादन करते हुए हाथ ऊपर उठा दिए। लेकिन इस दृश्‍य में अभी एक और घटना जुड़नी बाकी थी।

जब कमलनाथ शिवराजसिंह से मिल रहे थे तो शिवराज के दूसरी ओर ज्‍योतिरादित्‍य सिंधिया खड़े थे। जैसे ही कमलनाथ उस अभिवादन वाली मुद्रा के बाद शिवराज का हाथ छुड़ाकर आगे बढ़ने को हुए उसी समय ज्‍योतिरादित्‍य ने दूसरी ओर से शिवराज का हाथ पकड़कर उसे ऊपर उठा दिया। अचानक हुए इस घटनाक्रम में कमलनाथ को थामे शिवराज का हाथ फिर से हवा में उठ गया और दृश्‍य यह बना कि बीच में शिवराज और उनके अगल-बगल ज्‍योतिरादित्‍य सिंधिया और कमलनाथ। तीनों लोगों से अभिवादन की मुद्रा में…

मुझे याद आ गया वो पूरा चुनाव प्रचार अभियान जब दोनों दलों के नेताओं ने एक दूसरे पर कैसे कैसे प्रहार किए थे। जिस भाजपा ने अपना चुनाव अभियान ही अपने सबसे प्रमुख नारे ‘माफ करो महाराज, हमारा नेता तो शिवराज’ के साथ लड़ा था और एक तरह से कांग्रेस की ओर से मुख्‍यमंत्री पद के प्रमुख दावेदार ज्‍योतिरादित्‍य सिंधिया को निशाना बनाया था, सोमवार को वे ही सिंधिया खुद शिवराज का हाथ थामकर जनता का अभिवादन कर रहे थे।

मुझे यह तो नहीं पता कि तीनों राज्‍यों के मुख्‍यमंत्रियों के शपथ ग्रहण समारोह के लिए कांग्रेस ने कोई मुहूर्त निकलवाया था या नहीं, लेकिन सोमवार को जो घटनाक्रम हुए उन्‍होंने कई बार रंग में भंग होने जैसा अहसास भी दिलाया। ऐसा लगा कि शायद कहीं किसी देवी देवता को मनाने में कोई चूक हो गई है जो इस तरह के विघ्‍न सामने आ रहे हैं…

दरअसल सुबह सबसे पहले राजस्‍थान में अशोक गहलोत की ताजपोशी होनी थी। टीवी चैनलों पर उस समारोह का प्रसारण चल ही रहा था कि अचानक स्‍क्रीन पर ब्रेकिंग न्‍यूज चलने लगी- 1984 के सिख दंगों के मामले में कांग्रेस नेता सज्‍जन कुमार को दिल्‍ली हाईकोर्ट ने उम्रकैद की सजा सुनाई… यह खबर कांग्रेस के लिए शपथ ग्रहण के शुभ प्रसंग पर मानो काली छाया बनकर आई।

खबर ब्रेक होने के बाद सारा माहौल ही बदल गया। हालत यह हो गई कि गहलोत का शपथ ग्रहण समारोह कई चैनलों ने आधे स्‍क्रीन पर चलाया और बाकी आधे स्‍क्रीन को सज्‍जन की सजा वाली खबर ने खा लिया। मुझे लगता है कांग्रेस और खासतौर से राजस्‍थान के लोग इस प्रसंग को शायद ही कभी भुला पाएं।

लेकिन धड़कनें उस समय और तेज हो गईं जब भाजपा नेताओं ने सज्‍जन कुमार के बहाने कमलनाथ को भी घसीट लिया। आरोप लगाए जाने लगे कि इन्‍हीं दंगों के मामले में कमलनाथ भी संदेह के घेरे में हैं और इसके बावजूद कांग्रेस उन्‍हें मुख्‍यमंत्री पद की शपथ दिलवाने जा रही है। देखते ही देखते टीवी चैनलों पर कमलनाथ विरोधी प्रदर्शन भी प्रकट हो गए।

हालांकि इसका असर न मध्‍यप्रदेश में शपथ ग्रहण पर होना था न हुआ। मंच पर मौजूद तमाम बड़े नेताओं की बॉडी लैंग्‍वेज में ऐसा कहीं नहीं दिखा कि उन पर दिल्‍ली हाईकोर्ट के फैसले का कोई असर हुआ हो। उधर कमलनाथ ने भी मीडिया से बड़ी साफगोई से कहा कि मेरे खिलाफ न तो कोई मामला है और न ही घटना से मेरा कोई संबंध है। उस हादसे के बाद मैं लंबे समय तक सांसद रहा, कई बार मैंने मंत्री पद की शपथ ली, तब तो किसी ने कोई बात नहीं उठाई। अब केवल राजनीति करने के लिहाज से मामले को उठाया जा रहा है।

मध्‍यप्रदेश का मामला निपटा तो छत्‍तीसगढ़ में भूपेश बघेल की ताजपोशी पर बारिश ने पानी फेरा। रायपुर में ऐन वक्‍त पर कार्यक्रम का स्‍थान बदलकर उसे इनडोर स्‍टेडियम में आयोजित करना पड़ा।

लेकिन वो कहते हैं ना कि अंत भला तो सब भला… तमाम विघ्‍न बाधाओं के बावजूद तीनों राज्‍यों में शपथ का काम पूरा हो गया है और अब जो काम बचा है वह है जनता को अच्‍छी सरकार देना। उम्‍मीद की जानी चाहिए कि उसमें कहीं कोई विघ्‍न नहीं आएगा…

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