भोपाल में आज से यानी 26 फरवरी से 79वीं इंडियन हिस्ट्री कांग्रेस का आयोजन होने जा रहा है जो तीन दिन चलेगा। इतिहास से अकादमिक रूप से मेरा सिर्फ इतना ही वास्ता है कि इसे मैंने स्कूल के दिनों में एक विषय के रूप में पढ़ा था। मैं समझता हूं कि ज्यादातर लोगों के साथ यही बात होगी कि उन्होंने स्कूल के दिनों में परीक्षा देने के लिए इतिहास की किताब या घटनाओं को पढ़ा होगा।
इतिहास के साथ सबसे बड़ी दिक्कत यही है कि हम उसे वर्तमान को सुधारने या भविष्य को निखारने के लिए इस्तेमाल नहीं करते। हम बस या तो कोई परीक्षा पास करने के लिए उसे रट लेते हैं या फिर गाहे बगाहे उससे जुड़ी कुछ घटनाओं को उठाकर, अपने हिसाब से उदाहरण के रूप में उसका इस्तेमाल करने तक सीमित रह जाते हैं।
लेकिन पिछले चार पांच सालों से देश में इतिहास का महत्व बढ़ गया है। पढ़ाई के लिहाज से हालांकि इतिहास और राजनीतिशास्त्र दो अलग अलग विषय हैं, लेकिन भारत में इन दिनों ये दोनों लगभग एक हो चले हैं। कहीं इतिहास का राजनीति के लिए इस्तेमाल हो रहा है तो कहीं राजनीति को इतिहास का आधार बनाया जा रहा है।
वर्तमान परिदृश्य में इतिहास कहीं ढाल की तरह इस्तेमाल हो रहा है तो कहीं तलवार की तरह। और कहीं कहीं तो उसे कवच की तरह ओढ़ लिया गया है। इतिहास मानो एक खोल है जिसमें छिपकर अपनी बला टाली जा सकती है। हालांकि कुछ लोगों के लिए वह सांप का ऐसा फन भी है जिससे होने वाले वार के दौरान वह जहर के रूप में निकलकर बाहर आ जाता है।
कहते हैं, इतिहास को बदला नहीं जा सकता। आप वर्तमान को बदल सकते हैं, भविष्य की योजना बना सकते हैं लेकिन जो हो चुका है उसमें कोई परिवर्तन संभव नहीं। पर अब जमाना बदल गया है, अब इतिहास भी बदला जा सकता है, या यूं कहें कि इतिहास को बदला जा रहा है। अकसर मुहावरे के तौर पर कहा जाता है कि फलां आदमी इतिहास रच रहा है। लेकिन क्या सचमुच कोई इतिहास रचा जा सकता है?
वास्तविकता तो यह है कि कुछ ‘रच’ दिए जाने के बाद ही इतिहास का क्षेत्र शुरू होता है। हम इतिहास रचते नहीं हमारा रचा हुआ ही इतिहास बनता है। और इस लिहाज से देखें तो आपको बहुत सोचना पड़ेगा कि हमारे समय में या इस कालखंड में भारत और उसके समाज में जो भी घटित हो रहा है, या जो भी किया जा रहा है वह इतिहास में किस रूप में दर्ज होगा?
कई बार तो मैं समझ ही नहीं पाता कि हम इतिहास से बदला ले रहे हैं या इतिहास हमसे बदला ले रहा है। वैसे आप चाहें तो यह भी कह सकते है कि आज तो इतिहास को ही बदला लेने के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है। राजनीतिक के रण में दोनों पक्षों के योद्धाओं के पास इतिहास के ही हथियार हैं और इतिहास के ही कवच कुंडल।
हमारे यहां इस बात पर बहुत बहस चलती रही है और कई लोगों को इस बात का मलाल भी रहा है कि या तो हमारा इतिहास ठीक से लिखा ही नहीं गया या फिर जिसने भी लिखा उसने तोड़मरोड़ कर लिखा। इसलिए जब जब भी कोई सामाजिक या राजनीतिक द्वंद्व खड़ा होता है लोग इतिहास का खांडा लेकर खड़े हो जाते हैं। वैसे तो इतिहास का काम राह सुझाना है लेकिन इन दिनों यह रायता फैलाने के काम में ज्यादा इस्तेमाल हो रहा है।
इतिहास हमारे लिए ऐसी गाली है जो कोई भी जब चाहे किसी दूसरे को दे सकता है। अब तक माना जाता रहा है कि इतिहास व्यक्तियों और घटनाओं को मान्यता देता है लेकिन अब इसका इस्तेमाल व्यक्तियों और घटनाओं को खारिज करने में ज्यादा हो रहा है। इतिहास के पात्रों के तो खेमे या घराने रहे होंगे, लेकिन इन दिनों इतिहास के खुद के खेमे और घराने हैं।
आजकल बात इतिहास की तथ्यपरकता पर नहीं होती उसकी सापेक्षता पर होती है। किसी समय जो घटनाएं देश के इतिहास में चौरस्ते का या लाइट हाउस का मुकाम रखती थीं आज वे अंधी गली में तब्दील कर दी गई हैं। इतिहास अब हमारी धरोहर नहीं बोझ बन गया है। और हम अपनी सुविधानुसार अपने कंधे का यह बोझ जब चाहे दूसरों के कंधे पर पटकते रहते हैं।
कुछ लोग कहते हैं हमारा इतिहास अंग्रेज ने लिखा और वह हमारे गौरवपूर्ण इतिहास को विकृत रूप में दर्ज कर गया। इसका तोड़ निकालने के लिए नए सिरे से इतिहास लेखन के उपक्रम शुरू हुए हैं। यह काम आज के जमाने के अंग्रेज कर रहे हैं। पता नहीं, खुद इतिहास से यदि पूछा जाए कि उसे अपना कौनसा लेखक पसंद है तो वह क्या कहेगा? हो सकता है इस सारी मारामारी में वह खुद के होने से ही इनकार कर दे।
वैसे कई बार लगता भी है कि इतिहास होने से तो इतिहास न होना ज्यादा अच्छा है। वो कहते हैं ना कि इतिहास गड़े मुर्दे की तरह होता है, और गड़े मुर्दे जब भी निकाले जाएंगे वे दुर्गंध के अलावा कुछ नहीं देंगे।
मुझे पता नहीं कि भोपाल में होने वाली इंडियन हिस्ट्री कांग्रेस इतिहास के बारे में क्या नया चिंतन करेगी। लेकिन मेरी एक जिज्ञासा है। मैं जानना चाहता हूं कि जिस तरह अंग्रेजों ने गजेटियर के बहाने हमारे समाज के विभिन्न पहलुओं का दस्तावेजीकरण किया था, क्या उस तरह वर्तमान भारत में हो रही घटनाओं का क्षेत्रवार कहीं कोई दस्तावेजीकरण हो रहा है या नहीं। यदि हो रहा है तो उसका प्रचार प्रसार होना चाहिए और यदि नहीं हो रहा तो ऐसा कोई उपक्रम किया जाना चाहिए।