क्‍या एक नेता दूसरे नेता से ऐसा ही व्‍यवहार करता है?

देश के राजनीतिक परिदृश्‍य के दो पहलू बुधवार को मीडिया में खासे छाए रहे। इनमें से एक तसवीर के रूप में है और दूसरा टेक्‍स्‍ट के रूप में। खास बात यह है कि दोनों में मध्‍यप्रदेश की मौजूदगी बड़ी शिद्दत से महसूस की जा सकती है। फर्क सिर्फ इतना है कि ये दोनों ही प्रसंग एक दूसरे के विरोधाभासी हैं।

पहला प्रसंग यहां प्रकाशित पहली तसवीर से जुड़ा है। यह तसवीर दरअसल मंगलवार को लोकसभा परिसर में आयोजित सरदार पटेल जयंती कार्यक्रम की है। इसे मीडिया ने अलग अलग एंगल और टिप्‍पणियों के साथ प्रकाशित किया है। तसवीर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और कांग्रेस उपाध्‍यक्ष राहुल गांधी की बॉडी लैंग्‍वेज भारत की आज की राजनीति को बखूबी बयां कर रही है।

इस तसवीर को लेकर मध्‍यप्रदेश के पूर्व मंत्री रमाशंकर सिंह ने अपनी फेसबुक वॉल पर बड़ी सटीक टिप्‍पणी की है। उन्‍होंने लिखा- ‘’आज संसद में सरदार पटेल के चित्र पर माल्यार्पण का यह अवसर भारतीय राजनीति के वर्तमान तल्ख व कड़वे दौर का गवाह बन गया। ऐसा मैंने कभी नहीं देखा जब परस्पर विरोधी विचार के नेता जब मिले हों तो सौहार्दगर्मजोशी व प्रेम से न मिले हों। लोकसभा स्पीकर तो सबकी ताई हैंउन्हें ही बर्फ पिघलानी चाहिये थी। यह अच्छा नहीं हो रहा। नेहरू व इंदिरा गांधी के धुर उग्रविरोधी तो डॉ. लोहिया थे जिनका कोई घरबार न था, पर यह पूछे जाने पर कि यदि बीमार हुये तो किसके घर तीमारदारी करवाना या आराम करना पसंद करेंगें, तो लोहिया ने तत्काल कहा कि नेहरू के घर पर ही मेरी सबसे अच्छी देखभाल होगी। विरोधियों में यह विश्वास कहां खो गया?’’

कुछ अखबारों ने इसी कार्यक्रम की एक और तसवीर भी प्रकाशित की है जिसमें राहुल गांधी को भाजपा के वरिष्‍ठ नेता और पार्टी के मार्गदर्शक मंडल के सदस्‍य लालकृष्‍ण आडवाणी के साथ गुफ्तगू करते दिखाया गया है। मीडिया ने दोनों तसवीरों को साथ साथ छापते हुए यह संकेत देने की भी कोशिश की है कि राहुल लालकृष्‍ण आडवाणी से तो बात कर सकते हैं, लेकिन मोदी से बात करना या उनका अभिवादन करना भी उन्‍हें गवारा नहीं है।

पहली तसवीर में लोकसभा अध्‍यक्ष सुमित्रा महाजन के भाव भी ध्‍यान देने लायक हैं। उन्‍होंने मोदी और राहुल की तरफ से ऐसे मुंह मोड़ रखा है मानो कह रही हों, तुम (दोनों) जानो तुम्‍हारा काम जाने। यह तसवीर भले ही एक ‘क्षण विशेष’ में बना दृश्‍य कैमरे में कैद कर लिए जाने से बन गई हो, लेकिन बताती है कि इन दिनों सत्‍ता पक्ष और विपक्ष के रिश्‍ते किस कदर कड़वाहट भरे हैं। जबकि इससे पहले 25 जुलाई को राष्‍ट्रपति रामनाथ कोविंद के शपथ ग्रहण समारोह के समय मोदी और राहुल की मुलाकात के बाद दोनों में संवाद भी हुआ था और प्रधानमंत्री ने पूछा था- कैसे हैं राहुल जी? और राहुल का जवाब आया था- सर ठीक हूं सर…

लेकिन मुझे उससे भी पहले का एक और प्रसंग याद आ रहा है जब 10 दिसंबर 2015 को दिग्‍गज नेता शरद पवार के 75 वें जन्‍मदिन पर आयोजित अमृत महोत्‍सव में देश के सभी दलों के वरिष्‍ठ नेता शामिल हुए थे। उस कार्यक्रम में खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राहुल गांधी की तरफ हाथ बढ़ाया था और बाद में राहुल ने भी गर्मजोशी से मोदी का हाथ पकड़कर हैंडशेक किया था। (देखें दूसरी तसवीर)

शरद पवार अमृत महोत्‍सव उस समय की घटना है जब मोदी को प्रधानमंत्री बने करीब डेढ़ साल ही हुआ था। रामनाथ कोविंद के राष्‍ट्रपति बनने के समय हुई मुलाकात के दौरान दोनों के बीच घटा वह चर्चित वाकया तो महज तीन माह पहले का है। इन तीन महीनों में क्‍या शिष्‍टाचार के तकाजे इतने बदल गए?

मैं सिर्फ कल्‍पना ही करता हूं कि पटेल जयंती के कार्यक्रम में यदि दोनों नेताओं का व्‍यवहार अलग होता तो क्‍या होता। सामने से गुजरते हुए राहुल गांधी को प्रधानमंत्री यदि हैलो कह देते या उनकी तरफ देखकर मुसकुरा भी देते तो उनका कद और ऊंचा हो जाता, जैसा उन्‍होंने शरद पवार अमृत महोत्‍सव या राष्‍ट्रपति रामनाथ कोविंद के शपथ ग्रहण के दिन किया था।

और यदि राहुल प्रधानमंत्री के सामने से गुजरते हुए उनसे नमस्‍कार कर लेते, तो माना जाता कि वे राजनीति के साथ साथ राजनीति के रणनीतिक शिष्‍टाचार भी सीख रहे हैं। पद और उम्र दोनों में अपने से बड़े मोदी का अभिवादन कर राहुल छोटे नहीं बल्कि और बड़े हो सकते थे। इसका एक राजनीतिक संदेश यह भी होता कि अब मोदी के सामने वे दयनीय मुद्रा में नहीं बल्कि आत्‍मविश्‍वास की मुद्रा में हैं।

लेकिन न तो मोदी ने पहल की और न राहुल ने मुद्रा बदली। माना कि गुजरात का चुनाव इस समय दोनों नेताओं के दिमाग पर छाया हुआ है। वे गुजरात की रणभूमि में एक दूसरे के कट्टर दुश्‍मन के रूप में मौजूद हैं। दोनों तरफ से एक दूसरे का विध्‍वंस करने के लिए नित नए हथियार चलाए जा रहे हैं। पर महाभारत जैसे युद्ध में भी एक समय ऐसा होता था जब दोनों पक्ष अपने प्रतिद्वंद्वी का हाल चाल जानने एक दूसरे के शिविर में जाया करते थे।

अब जरा राष्‍ट्रीय स्‍तर पर घटे इस अप्रिय प्रसंग के विपरीत हमारे अपने मध्‍यप्रदेश का एक प्रसंग लीजिए जो उम्‍मीद की लौ को बुझने नहीं देता। मंगलवार को ही भाजपा की नेता, केंद्रीय मंत्री उमा भारती भोपाल में थीं। मीडिया ने जब उनसे कांग्रेस के वरिष्‍ठ नेता दिग्विजयसिंह की इन दिनों चल रही नर्मदा यात्रा के बारे में पूछा तो उमा भारती ने जवाब दिया- ‘’दिग्विजयसिंह मेरे बड़े भाई हैं। भैया-भाभी नर्मदा जी की परिक्रमा कर रहे हैं, मुझे बुलाएंगे तो जरूर जाऊंगी और भंडारे का प्रसाद भी ग्रहण करूंगी।‘’

ध्‍यान रहे दिग्विजयसिंह और उमा भारती दोनों ही मध्‍यप्रदेश के मुख्‍यमंत्री रह चुके हैं। दिग्विजय को उमा भारती ने ही दस साल के राज के बाद सत्‍ता से अपदस्‍थ किया था। लेकिन यहां उमा का व्‍यवहार वैसा ही है जैसा ‘’एक राजा दूसरे राजा के साथ करता है’’ वाली मशहूर उक्ति कहती है।

क्‍या ही अच्‍छा होता यदि दिल्‍ली में भी एक राजनेता दूसरे राजनेता से ऐसा ही सामान्‍य शिष्‍टाचार निभा पाता। शायद राजनीति को अभी और अधिक दुर्दिन देखने हैं…

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