कहते हैं एक शिक्षक आजीवन शिक्षक ही रहता है। वह शिक्षक की नौकरी से भले ही सेवानिवृत्‍त हो जाए लेकिन शिक्षाकर्म से वह कभी निवृत्‍त नहीं होता। शिक्षक होने की यही भूमिका निभा रहे हैं मालवा की माटी से जुड़े इतिहासविद् डॉ. जगदीशचंद्र उपाध्‍याय। 15 साल की उम्र में प्रायमरी टीचर बनकर सरकारी स्‍कूल में पढ़ाने वाले डॉ. उपाध्‍याय इंदौर यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर के पद से 2002 में सेवानिवृत्‍त होने के बावजूद अभी तक अध्‍यापन से जुड़े हुए हैं। 48 साल की सरकारी सेवा के बाद, 75 वर्ष की आयु में उनका शिक्षण कर्म आज भी अनवरत है।

डॉ. जगदीशचंद्र उपाध्‍याय 

डॉ. उपाध्‍याय मालवा के इतिहास के विशेषज्ञ हैं। उन्‍होंने इतिहास के अध्‍येता की दृष्टि से मालवा के सन 1305 से 1400 तक के कालखंड पर विशेष कार्य किया है। इतिहास में यह कालखंड मध्‍यकाल का मालवा कहलाता है। उन्‍होंने ‘’दिल्‍ली सुल्‍तानों के अधीन मालवा’’ विषय पर अपना शोध किया। उनके शोधकार्य की पुस्‍तक का विमोचन तत्‍कालीन मानव संसाधन मंत्री मुरलीमनोहर जोशी ने किया था। उन्‍होंने देवी अहिल्‍याबाई के अप्रकाशित पत्रों का भी संपादन किया। उनके प्रयासों से एमफिल पाठ्यक्रम में मालवा के इतिहास का पेपर शामिल किया गया। वे होलकर इतिहास की जानकारी के लिए बनाए गए लाइट एंड साउंड कार्यक्रम की स्क्रिप्‍ट तैयार करने वाली टीम के सदस्‍य रहे हैं।

अपने अधीन 40 छात्रों को पीएचडी करवा चुके डॉ. उपाध्‍याय आज भी छात्रों के लिए सहज उपलब्‍ध हैं। हाल ही में महाराष्‍ट्र यूनिवर्सिटी ऑफ लॉ ने उन्‍हें अपने छात्रों को संबोधित करने के लिए नागपुर आमंत्रित किया था। वहां उन्‍होंने क्‍लेट परीक्षा पास कर चुके कानून के छात्रों को पढ़ाया। उन्‍होंने इन छात्रों के लिए एक पाठ्यक्रम भी तैयार किया है।

सन 2006 में डॉ. उपाध्‍याय को ईरान कल्‍चर एंबेसी ने अजादारी मुहर्रम इन इंडिया विषय पर व्‍याख्‍यान देने के लिए आमंत्रित किया था। उन्‍होंने जब अपने व्‍याख्‍यान में होलकर स्‍टेट के समय मनाए जाने वाले मुहर्रम के त्‍योहार और 11 मंजिला ताजिए का जिक्र किया तो उस जानकारी से देश विदेश के कई विद्वान चौंक गए। उन्‍होंने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के दो सेमिनारों में मालवा के मुस्लिम सुल्‍तानों द्वारा जैन धर्म को संरक्षण और रामचंद्रराव भाऊ रेशमवाला पर प्रभावी व्‍याख्‍यान दिया।

मालवा की माटी और यहां के इतिहास के प्रति डॉ. उपाध्‍याय के प्रेम का ही नतीजा है कि मालवा के इतिहास का अध्‍यापन आज भी उनका प्रिय विषय है। शिक्षण में सक्रियता के चलते उनकी इस शोधपरक जानकारी से आज भी कई छात्र लाभान्वित हो रहे हैं। शिक्षक दिवस पर मध्‍यमत ऐसे समर्पित शिक्षक का अभिनंदन करता है।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here