रायचंदों के लिए यह बहुत अच्छी खबर है। मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल को स्मार्ट बनाने के लिए अब नए प्रोजेक्ट्स पर जनता की राय ली जाएगी। नगर निगम ने इसके लिए स्मार्ट सिटी डेवलपमेंट कॉरपोरेशन के सहयोग से भोपाल प्लस नाम का एक वेब पेज बनाया है जिसमें विभिन्न विषयों और योजनाओं को लेकर लोग अपने सुझाव दे सकते हैं।
अभी यह कहना मुश्किल है कि जनता के सुझावों को महत्व देने की खातिर बनाया गया यह नया प्लेटफार्म कब तक पूरी तरह से काम करने लगेगा और इसमें आने वाले सुझावों का हश्र क्या होगा। लेकिन सैद्धांतिक तौर पर कहा जा सकता है कि ऐसी कोई भी पहल नई योजनाओं को लेकर जनता की राय या उसके सुझावों को दर्ज करने की एक सुविधा तो मुहैया कराती ही है।
अब जरा इसके व्यावहारिक पहलू पर आ जाइए। जब भी ऐसा कोई सार्वजनिक प्लेटफॉर्म बनता या बनाया जाता है, तो सबसे पहली आवश्यकता होती है कि लोग उसके बारे में जागरूक हों। उनमें ऐसे प्लेटफॉर्म का समुचित उपयोग करने की अकल या शऊर हो। वे उसका सदुपयोग करें। हमारे यहां तो पुलिस की हेल्पलाइन भी लोगों के मजे लेने का प्लेटफॉर्म बन जाती है। सरकारें या स्थानीय निकाय कई सारे ऐसे प्लेटफॉर्म बनाते रहते हैं, जहां लोग अपने सुझाव या विचार रख सकें। लेकिन अकसर देखा जाता है कि ऐसे प्लेटफॉर्म का दुरुपयोग ही अधिक होता है।
तो यह तो हुई जनता की बात। इसी के समानांतर दूसरी बात यह भी है कि आजकल चर्चा में आने के लिए सरकारें, स्थानीय निकाय या नेता खुद ऐसी रायशुमारी की तिकड़में करने लगे हैं। लेकिन काफी हो हल्ले और हाइप के साथ शुरू होने वाले ये प्लेटफॉर्म कुछ दिन तो चर्चा में रहते हैं और बाद में गुमनामी के अंधेरे में ऐसे गायब होते हैं कि उनका पता ही नहीं चलता।
रायशुमारी या सुझावों के लिए बनाए जाने वाले ऐसे प्लेटफॉर्म को लेकर यहां दो ही उदाहरण पर्याप्त होंगे। भोपाल में स्मार्ट सिटी को लेकर नगर निगम ने ‘जनता की राय’ ली थी। उस ‘राय’ के बाद ही शिवाजी नगर और तुलसी नगर को स्मार्ट सिटी बनाने का फैसला हुआ था। लेकिन जब हो हल्ला मचा और जनता के ‘ओपीनियन पोल’ की पोल खुली तो सारा फर्जीवाड़ा सामने आया और मुख्यमंत्री को वो प्लान ही रद्द करना पड़ा।
एक और ऐसा ही प्लेटफॉर्म करीब सात साल पहले बड़े जोर शोर से शुरू किया गया था। उसका नाम था‘आइडियाज फॉर सीएम’। कहा गया था कि इस साइट का मकसद सरकार चलाने में आम आदमी की भागीदारी सुनिश्चित करना है। साइट पर आने वाले मौलिक और रचनात्मक सुझावों को अमली जामा पहनाने के लिए सरकार कार्य योजना बनाएगी। मध्य प्रदेश में विकास और सुशासन में जनता की मदद लेने के उद्देश्य से सरकार इसके जरिये लोगों के सुझाव मांग रही है। ये सुझाव सीधे मुख्यमंत्री तक पहुंचेंगे जिन पर विचार करने के बाद अमल भी किया जाएगा। लेकिन आज यह वेबसाइट कहां और किस हाल में है और इसमें आने वाले कितने और किन सुझावों ने सरकार को विकास और सुशासन में मदद की इसका लेखा जोखा ज्यादातर लोगों को पता नहीं है।
मैं यह नहीं कहता कि जनता से सुझाव लेने ही नहीं चाहिए। निश्चित रूप से लोकतंत्र में जनता की राय का महत्व होता है, होना भी चाहिए, लेकिन उसके लिए जो भी तरीका चुना जाए उसके सार्थक परिणाम निकलें यह भी सुनिश्चित किया जाना चाहिए। वरना वही हाल होगा कि- ‘’कुछ तो दुनिया की इनायात ने दिल तोड़ दिया… और कुछ तल्खी ए हालात ने दिल तोड़ दिया।‘’
रहा सवाल नगरीय निकायों को सुझाव देने या न देने का तो उसके बारे में कुछ न ही कहा जाए तो बेहतर होगा। जनता की राय हो या न हो, वहां तो जो फैसले करना होते हैं, वे बिना राय के भी कर ही लिए जाते हैं। जैसे भोपाल में एक फैसला किया गया कि बीआरटीएस के समानांतर ही एक साइकल ट्रैक भी हो। साइकल ट्रैक तो अभी खयालों में ही है लेकिन स्मार्ट साइकलों की ‘खरीद’ हो चुकी है। हमारी दिलचस्पी भी खरीद फरोख्त में ही ज्यादा होती है।
और बीआरटीएस का तो जिक्र ही एक जंजाल है। यह प्रोजेक्ट सोचने पर मजबूर करता है कि बगैर विचारे शेखचिल्ली दिमाग से बनाई गई योजनाओं में जनधन कैसे बरबाद होता है। करोड़ों रुपए खर्च कर बनाया गया बीआरटीएस का कॉरीडोर लोगों को कितना फायदा पहुंचा रहा है और शहरी यातायात के लिए कितने कष्ट का सबब बना हुआ है, इस पर ही यदि कोई जनमत संग्रह करा लिया जाए तो सारे मुगालते दूर हो जाएंगे।
लेकिन ऐसा जनमत संग्रह कभी नहीं होगा। वो इसलिए कि हमारी रुचि प्रोजेक्ट पूरा हो जाने के बाद यह देखने में है ही नहीं कि उससे लोगों को फायदा हुआ या नुकसान। हमारी रुचि सिर्फ प्रोजेक्ट लाने और अपने चहेते ठेकेदारों से उसे पूरा करवाने में है। लोगों की राय मशविरे तो सिर्फ टोटके हैं, अपने मंसूबों को टेका लगवाने के…