ताकती रह जाएंगी सारी दंबूकें
धरी रह जायेगी सारी गोला बारूद
धड़ल्ले से निकल जायेगी जीती जागती कायनात
उनके बीच से – उनसे बेपरवाह
‘अ’ से अरमान, “आ” से आशा
‘इ’ से इंसान और ‘ई’ से ईमान पढ़ते हुए ।
धो-पोंछ कर साफ़ करेगी
नफ़रत की धूल और रक्तपात की कीच में लिथड़े अक्षर
उनसे गढ़ेगी नये, अनूठे शब्द
जरूरी हुआ तो वर्तनी और व्याकरण भी।
यही गढ़ेगी – यह ही गढ़ेगी ….सुन रहे हो न मनुष्य ?
इसी की पुरखन थी
जिसने अपनी देह से निकाल कर
साफ़ करके उतारा था जमीन पर तुम्हे
तब
जब
न चोटी थी, न दाढ़ी थी, न तिलक थे, न पगड़ी !!
अजानें और आरतियाँ, पूजायें और नमाजें
प्रेयर्स और कीर्तन और फलां और ढिकां और हैन और तेन तो दूर
खुदा और भगवान और गॉड और शैतान तक नही थे दूर दूर तक।
इसी की पुरखन थी जिसकी लोरी से
सुने थे तुमने पहले मीठे सुर, जाने थे कोर निकोर शब्द.
जिनके अर्थ तो न जाने कितने अरसे बाद जान पाये थे तुम
जिनमें से न जाने कितनों के
आशय और अर्थ तो आज तक नहीं समझ पाये तुम।
देखो कितनी लीन और बेख़ौफ़ है यह !!
तुम्हारी धाराओं, करफ्यूओं, अफ्प्साओं, चुज़्प्साओं
ये वाली सीमाओं, वो वाली रेखाओं,
सरकारों , सेनाओं सब को धता बताती
बढे जा रही है यह नन्ही सी जान !!
पढ़े जा रही है कि
कैसे बनाया जाये, आदमी को इंसान !!
यह लड़की पढ़ेगी : मानवता बचेगी ।
(हाल के वक़्त में दिखे एक असाधारण आश्वस्तिकारक फ़ोटो पर दिखी गजब की बहादुर बच्ची पर लिखी ये पंक्तियाँ मान्यता सरोज और जसविंदरसिंह की खूब पढ़ाकू बेटी शुभप्रीत कौर के नाम !!)
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यह कविता हमने श्री बादल सरोज की फेसबुक वॉल से ली है। वे माकपा की मध्यप्रदेश इकाई के सचिव हैं।