किसान गोलीकांड ने सारी प्रतिष्‍ठा मटियामेट कर दी

मध्‍यप्रदेश पिछले कुछ सालों से देश में खेती किसानी के मामले में मॉडल के रूप में सुर्खियां पा रहा था। कुछ सालों से राज्‍य की कृषि विकास दर लगातार दो अंकों में चली आ रही है। गेहूं जैसी मुख्‍य फसल के उत्‍पादन में तो मध्‍यप्रदेश ने पंजाब और हरियाणा जैसे राज्‍यों को पीछे छोड़ते हुए अव्‍वल स्‍थान पर अपना दावा ठोका था। प्रदेश को खेती में महत्‍वपूर्ण उपलब्धियों के लिए राष्‍ट्रीय स्‍तर पर सम्‍मानित करते हुए केंद्र सरकार ने लगातार पांच बार कृषि कर्मण अवार्ड से नवाजा था…।

लेकिन ये सारी उपलब्धियां, ये सारे तमगे, ये सारा मान-सम्‍मान दो चार दिनों में ही धूल में मिल गया। जिन किसानों ने अपनी मेहनत और खून पसीने से प्रदेश के सिर पर ताज सजाया था, वे किसान ही अपनी दुर्दशा का आरोप लगाते हुए इस अंदाज में सड़कों पर उतरे कि सरकार के हाथ पैर फूल गए। और मंगलवार को वो खबर आई जिसने प्रदेश के कृषि परिदृश्‍य को खून से रंग दिया।

किसान आंदोलन के दौरान मंदसौर में कथित सरकारी बल की ओर से चलाई गई गोली के कारण छह किसानों की मौत हो गई। सरकारी बल मैंने इसलिए कहा क्‍योंकि किसान संगठनों और राजनीतिक दलों का कहना है कि गोली पुलिस ने चलाई, जबकि गृह मंत्री का बयान है कि पुलिस ने कोई गोली नहीं चलाई। मामले का पेच यह है कि हिंसक होते आंदोलन से निपटने के लिए वहां पुलिस व अर्धसुरक्षा बल दोनों मौजूद थे और उसी दौरान यह हादसा हुआ।

किसानों के इस आंदोलन को सिर्फ एक घटना के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए। और यदि यह घटना भी है तो इससे जुड़े कई सवाल हैं जो सरकार से जवाब मांग रहे हैं। सबसे बड़ा सवाल तो यही है कि वो सरकार जिसके मुखिया खुद को किसान पुत्र कहते हों और जिस सरकार में किसानों की भलाई के लिए किए गए कामों की सूची कभी खत्‍म होने का नाम ही नहीं लेती हो, वहां किसानों में ऐसा असंतोष पैदा होना और उस असंतोष का इस उग्र रूप में सामने आना साफ बताता है कि दावों और हकीकत के बीच बहुत बड़ा फासला है।

राष्‍ट्रीय और अंतर्राष्‍ट्रीय मंचों पर अपनी कृषि उपलब्धियों का बखान करने, विभिन्‍न मंचों पर इन उपलब्धियों के लिए सम्‍मान और पुरस्‍कार ग्रहण करने और राजनीतिक कार्यक्रमों में खुद ही अपनी पीठ थपथपाने में मशगूल सरकार और सत्‍तारूढ़ दल का शायद जमीनी स्‍तर पर किसानों से वैसा संवाद ही नहीं है जो ऐसे मौकों पर स्थिति को नियंत्रित करने में मददगार होता है।

इस मामले में जैसा राजनीतिक बचकानापन दिखाया गया है वह भी हैरान कर देने वाला है। बजाय आंदोलन को ठंडा करने या असंतोष दूर करने के ठोस उपाय खोजने के, इसे कांग्रेस के उकसावे का नतीजा बताया गया। फिर अपने ही संगठन भारतीय किसान संघ को टूल बना कर प्रचारित करवा दिया गया कि सरकार ने कई मांगें मान ली हैं और आंदोलन खत्‍म हो गया है। स्‍वामीभक्ति पर उतारू बैठा रहने वाला पार्टी संगठन तो और दस कदम आगे चला गया। उसने इस महान उपलब्धि के लिए मुख्‍यमंत्री का सम्‍मान करने का ऐलान कर डाला। यदि मंदसौर में किसानों की मौत वाली खबर नहीं आती तो आज यानी 7 जून को मुख्‍यमंत्री निवास पर प्रदेश भाजपा अध्‍यक्ष नंदकुमार सिंह चौहान, मुख्‍यमंत्री शिवराजसिंह चौहान को किसान ऋषि जैसी कोई उपाधि देते हुए उनका सम्‍मान कर रहे होते।

इस मामले ने प्रदेश के राजनीतिक नेतृत्‍व की एक और कमजोरी को भी शिद्दत से उजागर किया है। वह कमी है सारी बातों का दारोमदार (या ठीकरा) मुख्‍यमंत्री के सिर पर फोड़ देना। इतने दिन से किसान आंदोलन चल रहा है, लेकिन प्रदेश के बड़बोले कृषि मंत्री गौरीशंकर बिसेन दृश्‍य से गायब हैं। सामूहिक जिम्‍मेदारी के तहत मंत्रिमंडल के बाकी मंत्रियों की भी मामले को ठंडा या नियंत्रित करने में कोई सक्रिय भूमिका दिखाई नहीं दे रही। इसका मतलब क्‍या समझा जाए? क्‍या बाकी मंत्री इस कठिन राजनीतिक परिस्थिति में उलझे मुख्‍यमंत्री को झुलसते हुए देख मजा ले रहे हैं या फिर परिस्थितियां ही ऐसी पैदा हो गई हैं कि अब जो कुछ करना या होना है मुख्‍यमंत्री के द्वारा ही होना है। तो वे जानें उनका काम जानें…

सोचने वाली बात यह भी है कि आखिर वे कौनसी वजहें हैं कि यह किसान आंदोलन प्रदेश के मालवा और निमाड़ क्षेत्र में ही सक्रिय दिख रहा है। प्रदेश के बाकी अंचल में कहीं से ऐसी किसी उग्रता का समाचार नहीं है। मालवा निमाड़ अंचल भाजपा का परंपरागत गढ़ है, वहां से जीती जाने वाली सीटें प्रदेश में भाजपा की सरकार बनाने में अहम भूमिका अदा करती हैं। वहां राष्‍ट्रीय स्‍वयं सेवक संघ का भी तगड़ा नेटवर्क है। तो फिर क्‍या कारण है कि अपने गढ़ में भी भाजपा से एक आंदोलन नहीं संभल रहा?

निश्चित रूप से कोई सरकार नहीं चाहेगी कि उसके राज में इस तरह की हिंसा हो और लोग पुलिस या अन्‍य किसी सुरक्षा बल की गोली से मारे जाएं। ये कलंक के टीके हैं, जो इतिहास में दर्ज हो जाते हैं। और फिर शिवराज ने तो अपनी छवि ही आम आदमी वाले मुख्‍यमंत्री की गढ़ने की कोशिश की है। ऐसे में किसानों और ग्रामीण परिवेश का यूं उबलकर उफान पर आ जाना खतरे का संकेत है। इसने नर्मदा सेवा यात्रा के जरिए ग्रामीण अंचल में पैदा हुए समर्थक माहौल को भी पलीता लगाने का काम किया है।

चूंकि आपने खुद ही सारी निगाहों को अपनी तरफ मोड़ रखा है इसलिए अब अपनी ओर उठी निगाहों का जवाब देने की तजवीज भी आपको ही खोजनी होगी। हल जितनी जल्‍दी निकले, नुकसान उतना ही कम होगा…

 

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