जोगी की सीट पर दो अग्रवाल नेताओं में दंगल  

रवि भोई

छत्तीसगढ़ के पहले मुख्यमंत्री अजीत जोगी के निधन से रिक्त मरवाही विधानसभा में उपचुनाव अक्टूबर-नवंबर में तय माना जा रहा है। अजीत जोगी के पुत्र अमित जोगी ने यहाँ से अपनी उम्मीदवारी की घोषणा कर दी है। यह सीट 2001 से जोगी परिवार के कब्जे में हैं। अमित जोगी भी यहां से 2013 से 2018 तक विधायक रह चुके हैं। 2018 के चुनाव में अजीत जोगी जीते थे। मरवाही से जोगी परिवार का कब्जा उखाड़ने की जिम्मेदारी कांग्रेस ने राजस्व मंत्री जयसिंह अग्रवाल को दी है, तो भाजपा ने पूर्व मंत्री अमर अग्रवाल को लगाया है। दोनों को चुनावी चाणक्य माना जाता है। दोनों अभियान में लग गए हैं। 2018 के चुनाव में कांग्रेस तीसरे स्थान पर थी। इस बार जीत के लिए वह मरवाही विधानसभा में विकास की गंगा बहा रही है।
जयसिंह चाय चौपाल के जरिये जन-जन तक पहुंचने में लगे हैं, वहीँ अमर अग्रवाल चुनावी मैनेजमेंट पर जोर लगा रहे हैं। दोनों अग्रवाल नेताओं की प्रतिष्ठा अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित इस सीट में लगी है। अमित और उनकी विधायक माँ डॉ. रेणु जोगी सहानुभूति को हथियार बनाकर जीत की राह देख रहे हैं। मरवाही अमित जोगी का राजनीतिक भविष्य तय करेगा तो जयसिंह अग्रवाल और अमर अग्रवाल का राजनीतिक कद भी। इस कारण चुनाव का परिणाम चाहे जो हो, अभी तो जयसिंह और अमर अग्रवाल की जोर- आजमाइश पर सबकी निगाहें हैं।

मुकेश गुप्ता क्या फिर पावरफुल होंगे?
विधानसभा चुनाव के पहले चर्चा थी कि रमन सरकार आई तो 1988 बैच के आईपीएस मुकेश गुप्ता राज्य के डीजीपी बन जायेंगे। पर ऐसा हुआ नहीं। राज्य के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल बन गए। भूपेश बघेल की सरकार ने मुकेश गुप्ता को निलंबित कर दिया और उनके खिलाफ कई जाँच शुरू कर दी, उनका प्रमोशन रद्द कर दिया। लेकिन भूपेश सरकार के अधिकारी मुकेश गुप्ता पर जाल डाल नहीं पाए। अलग-अलग अदालतों से उन्हें राहत मिलती रही। अब फिर बड़े जोरों से चर्चा है कि जल्दी ही उनका निलंबन समाप्त कर उन्‍हें पदोन्नत भी कर दिया जायेगा। कुछ लोग कह रहे हैं उनकी वापसी हुई तो वे फिर पॉवरफुल भी हो जायेंगे।
यह चर्चा इसलिए भी चल पड़ी है कि वे सितंबर के पहले हफ्ते रायपुर में तीन दिन तक रुके और अपने बंगले की साफ-सफाई भी करवाई। उनके परिचित भले सफाई दे रहे हैं कि वे निजी कार्य से आये थे, लेकिन निलंबन के बाद छत्तीसगढ़ छोड़ने वाले और गर्दिश में रहने वाले अफसर से तीन दिनों में एक पूर्व मुख्य सचिव, एक एडीजी और कई अफसरों की मेल-मुलाकत के कुछ तो मायने हैं। कहते हैं मुकेश गुप्ता के अच्छे दिन की वापसी का मार्ग प्रशस्त करने में भूपेश सरकार के एक कैबिनेट मंत्री की अहम भूमिका है।

मुकेश गुप्ता की यात्रा और प्रमोशन
एक साल के इंतजार बाद आखिरकार संजय पिल्लै, आरके विज और अशोक जुनेजा एडीजी से डीजी बन गए। पिछली दफे डीपीसी के वक्त मुकेश गुप्ता के वकील का नोटिस आ गया था, जिसके आधार पर एक सदस्य ने डीपीसी की प्रोसिडिंग पर हस्ताक्षर करने से इंकार कर दिया था। यह डीपीसी मुकेश गुप्ता के रायपुर आने और तीन दिन रुकने के बाद हुई है। निलंबन के कारण मुकेश गुप्ता को प्रमोट नहीं किया गया। उनका नाम लिफाफे में  बंद रहेगा।
कुछ लोग कह रहे हैं कि ऐसा तो पहले भी कर सकते थे, लेकिन किया नहीं। मुकेश गुप्ता की यात्रा के बाद फटाफट प्रमोशन का रहस्य लोगों को समझ में नहीं आ रहा है।  गुप्ता के प्रमोशन न होने का लाभ अशोक जुनेजा को मिल गया। प्रमोशन आदेश जारी होने से पहले तक पुलिस अफसर चुप्पी साधे हुए थे क्योंकि रमन सरकार के आखिरी दिनों में प्रमोशन के चलते भूपेश बघेल की सरकार ने संजय पिल्लै, आरके विज और मुकेश गुप्ता को रिवर्ट कर प्रमोशन के लिए लंबा इंतजार भी करवा दिया।

खेतान- कहीं पे निगाहें, कहीं पे निशाना
छत्तीसगढ़ राजस्व मंडल के अध्यक्ष चितरंजन खेतान ने भले उत्तरप्रदेश के उन्नाव के डीएम के सस्पेंशन के बाद डीएम की स्थिति पर ट्वीट किया हो, लेकिन ट्वीट के गूढ़ मायने निकाले जा रहे हैं। यही वजह है कि उनके ट्वीट से राज्य की राजनीति गरमा गई? भूपेश सरकार पर भाजपा नेता राज्य में प्रशासनिक अराजकता का आरोप लगाकर हमले करते रहते हैं।  खेतान के ट्वीट से उन्हें मुद्दा मिल गया। इससे सरकार के कान भी खड़े हो गए। खेतान छत्तीसगढ़ आईएएस एसोसिएशन के अध्यक्ष भी हैं, ऐसे में उनके ट्वीट ने सरकार की चिंता और भी बढ़ा दी।
पत्रकार से आईएएस बने सीके खेतान तेज-तर्रार अफसर माने जाते हैं, साथ ही कहीं पे निगाहें और कहीं पे निशाना लगाने के लिए भी जाने जाते हैं। राज्य में 1987 बैच में सबसे वरिष्ठ होते हुए भी खेतान मुख्य सचिव नहीं बन पाए। कॅरियर के ऊँचे पायदान पर उन्हें झटके का मलाल तो होगा ही,  जबकि उनके नीचे के आरपी मंडल छत्तीसगढ़ और बीवीआर सुब्रमण्यम जम्मू-कश्मीर के मुख्य सचिव हैं।

मंत्री ने ख़रीदा बड़ा होटल?
भूपेश सरकार के एक मंत्री द्वारा अपने रिश्तेदार के नाम पर राजधानी के जीई रोड़ स्थित एक होटल को 44 करोड़ में ख़रीदे जाने की खबर है। कहते हैं भले होटल रिश्तेदार के नाम पर हो, लेकिन होटल की खरीदी में मंत्री का धन लगा है। इस होटल पर तीन बैंकों का कर्जा था। होटल ठीक से चल नहीं पा रहा था, जिसके कारण होटल के संचालकों पर कर्ज का बोझ बढ़ गया था। संचालकों ने होटल की बिक्री का इश्तहार दिया था। यह होटल कुछ साल पहले ही बना था। बहुत पुराना नहीं है।

लिफाफा से फैली सनसनी
आमतौर पर सरकारी दफ्तरों में रोजाना सैकड़ों डाक आती है और जिन्‍हें रिसीव कर संबंधित सेक्शन या अफसर के पास भेज दिया जाता है। कहते हैं करीब पखवाड़े भर पहले इंद्रावती भवन स्थित शिक्षा से संबंधित एक संचालनालय में डाक से आए लिफाफे के चलते सनसनी फ़ैल गई। लिफाफा विभागाध्यक्ष के नाम से आया था। चर्चा है कि किसी सिरफिरे ने लिफाफे में कागज की जगह नगद भरकर भेज दिया था। डाक रिसीव करने वाली महिला कर्मचारी ने रुटीन में लिफाफा खोला तो पूरे डायरेक्टरेट में हड़कंप मच गया। लिफाफे में कागज की जगह नगद आये तो यह तो होना ही था। इसकी गाज गिरी लिफाफा खोलने वाली महिला कर्मचारी पर, उसका तबादला संचालनालय से शहर की एक संस्था में कर दिया गया।
(लेखक छत्‍तीसगढ़ के वरिष्‍ठ पत्रकार हैं।)

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