यहां तो बच्‍चे तक विकास की कीमत चुका रहे हैं श्रीमान

देश के वित्‍त मंत्री अरुण जेटली ने रविवार को भारत की जनता को सीखनुमा निर्देश जारी करते हुए कहा था कि यदि आप विकास चाहते हैं तो उसकी कीमत भी चुकानी पड़ेगी। उनके इस बयान के बाद कई घटनाएं दिमाग में कौंध गईं। मन में खयाल आया कि इस देश के लोगों ने तो हमेशा से ही हर चीज की कीमत चुकाई है। जब हम आजाद नहीं थे तो अपना खून देकर आजादी की कीमत चुकाई और जब आजाद हो गए तो खून पसीने से लेकर अपने जिंदा रहने तक सबकी कीमत चुका रहे हैं।

फिर भी पता नहीं हमारी सरकारों को ऐसा क्‍यों लगता है कि देश के लोग अहसानफरामोश हैं और वे भारत में जिंदा रहने की कीमत ठीक से नहीं चुका रहे हैं। ऐसी सरकारों को बताना जरूरी है कि यहां तो कदम कदम पर लोग कीमत ही चुका रहे हैं, वे कभी बाढ़ में बहकर कीमत चुकाते हैं, तो कभी रेल दुर्घटना में कुचलकर, हमारे किसान कभी खेतों में खराब फसल के कारण आत्‍महत्‍या कर कीमत चुकाते हैं, तो कभी हमारी बेटियां शोहदों के हाथ अपनी इज्‍जत लुटवाकर कीमत चुकाती हैं। कभी एलफिंस्‍टन ब्रिज पर चढ़ने वाले कीमत चुकाते हैं तो कभी सफाई के लिए सीवरलाइन के मेनहोल में उतरने वाले कीमत चुकाते हैं।

कीमत तो चुकाना ही पड़ रही है, क्‍योंकि कदम कदम पर आपने दाम वसूलने के लिए कारिंदे जो बिठा रखे हैं। कभी यह कीमत सरकारी कारिंदों को चुकानी पड़ती है तो कभी चौथ वसूली करने वालों को। आपका चपरासी से लेकर अफसर तक कीमत वसूलता है तो माफिया सरगना से लेकर गली का गुंडा तक कीमत चुकाने के लिए मजबूर करता है। हम अपने बच्‍चों को स्‍कूल भेजकर भी कीमत चुकाते हैं और उन्‍हें स्‍कूल में न भेजकर भी।

और जब बच्‍चों की ही बात चली है तो जरा हाल ही में आई सेंपल रजिस्‍ट्रेशन सर्वे (एसआरएस-2016) की रिपोर्ट पर नजर घुमा लीजिए। बाकी देश की बात छोड़ दें तो भी अपने मध्‍यप्रदेश में बच्‍चे किस किस तरह की कीमत चुका रहे हैं इसका ब्‍योरा यह रिपोर्ट बयां करती है। यह बताती है कि मध्‍यप्रदेश में बच्‍चे पैदा होने के बाद जान देकर आपके इस विकास की कीमत चुकाने को मजबूर हैं।

एसआरएस की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक प्रति हजार शिशु मृत्‍यु दर के मामले में मध्‍यप्रदेश का नाम देश में सबसे ऊपर है। यहां जन्‍म लेने वाले प्रति हजार बच्‍चों में से 47 बच्‍चे मौत के मुंह में चले जाते हैं। मध्‍यप्रदेश के बाद दूसरा नंबर असम और ओडिशा का है, जहां इस तरह मरने वाले बच्‍चों का आंकड़ा प्रति हजार 44 है। पिछले 14 सालों से मध्‍यप्रदेश मानो बच्‍चों की मौत के मामले में अव्‍वल आने की रेस में ही लगा हुआ है।

सोमवार को राजधानी भोपाल के ही एक अखबार में छपी रिपोर्ट कहती है कि यह स्थिति तब है जब सरकार के पास फंड की कोई कमी नहीं है। उलटे हकीकत तो यह है कि वर्ष 2016 में प्रजनन एवं बाल सुरक्षा मद में केंद्र सरकार द्वारा मध्‍यप्रदेश को उपलब्‍ध कराई गई धनराशि का 21 प्रतिशत भाग तो खर्च ही नहीं किया जा सका। इससे पहले वर्ष 2015-16 में राज्‍य की चुस्‍त प्रशासनिक मशीनरी ऐसी 18 प्रतिशत राशि का उपयोग नहीं कर पाई थी। और ये आंकड़े किसी एनजीओ ने जारी नहीं किए हैं, बल्कि तत्‍कालीन केंद्रीय स्‍वास्‍थ्‍य राज्‍य मंत्री फग्‍गनसिंह कुलस्‍ते ने खुद एक अगस्‍त 2017 को राज्‍यसभा में दी गई जानकारी में बताए हैं।

खबर कहती है कि प्रजनन एवं बाल सुरक्षा मद के तहत 2016-17 में मध्‍यप्रदेश को राज्‍य कार्यक्रम क्रियान्‍वयन योजना (एसपीआईपी) के अंतर्गत 1010.71 करोड़ रुपए का बजट स्‍वीकृत किया गया। लेकिन इसमें से खर्च हुए सिर्फ 796.12 करोड़ रुपए। इससे पहले 2015-16 में राज्‍य को 925.24 करोड़ रुपए मंजूर किए गए थे और उसमें से सरकार केवल 760.25 करोड़ रुपए ही खर्च कर सकी थी। हालांकि राज्‍य का स्‍वास्‍थ्‍य विभाग इस बात को नकारता है कि उसके यहां काम की स्थिति इतनी बदतर है।

आंकड़ों के अनुसार मध्‍यप्रदेश में बच्‍चों की इतनी अधिक मृत्‍यु दर होने के कारणों में बाल विवाह, समय पूर्व प्रसव, समय पूर्व गर्भधारण और सामुदायिक देखभाल की दयनीय स्थिति जैसे कारण प्रमुख हैं। राज्‍य में स्‍वास्‍थ्‍य विभाग की प्रमुख सचिव गौरी सिंह का कहना है कि शिशु मृत्‍यु दर बढ़े होने का एक प्रमुख कारण कुपोषण की वजह से होने वाली मौतें हैं। राज्‍य में 45 प्रतिशत शिशु-मृत्‍यु कुपोषण के कारण होती है।

इन कारणों के विश्‍लेषण पर जाएं तो मालूम होगा कि शिशु मृत्‍यु दर के पीछे महिला एवं बाल विकास विभाग की सक्रियता का अभाव भी बहुत बड़ा कारण है। क्‍योंकि बच्‍चों में कुपोषण दूर करने के मामले में इस विभाग की सबसे अहम भूमिका है। यह विभाग ही आंगनवाडि़यों में बांटे जाने वाले पोषण आहार से लेकर पोषण संबंधी तमाम सारी योजनाओं के संचालन के लिए जिम्‍मेदार है।

राज्‍य के गैर सरकारी संगठन ‘विकास संवाद’ के प्रमुख सचिन जैन कहते हैं कि प्रसव के दौरान मिलने वाली सहायता से जुड़ी योजनाओं का खराब क्रियान्‍वयन भी इसके पीछे बहुत बड़ा कारण है। जैन के मुताबिक इन योजनाओं के क्रियान्‍वयन को इतना अधिक जटिल बना दिया गया है कि आम आदमी तो इसका लाभ ले ही नहीं पाते। इसमें इतने कानून कायदों का पेंच फंसा दिया गया है कि 50 फीसदी महिलाएं तो इसके दायरे से ही बाहर हो गई हैं।

तो कुल मिलाकर यह देह धरे को दंड जैसा मामला है। यदि आपने इस पुण्‍यधरा भारत भूमि पर जन्‍म लिया है तो यकीन जानिए न यह काया आपकी है और न यह माया। आपका संपूर्ण जीवन सरकार के पास गिरवी है। जैसे कहा जाता है सबै भूमि गोपाल की, उसी तरह हमारे यहां सबै कुछ सरकार का है, इसलिए तेरा तुझको अर्पण करके ही जिंदा रहना होगा।

जेटली कुछ भी गलत नहीं कह रहे…

 

 

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