देश के कई राज्यों के साथ साथ इन दिनों मध्यप्रदेश में भी शराब को लेकर काफी उठापटक चल रही है। एक तरफ जगह-जगह शराब दुकानों को लेकर स्थानीय जनता में गुस्से के साथ साथ तोड़फोड़, आगजनी व हिंसा की खबरें हैं तो दूसरी ओर सरकार का बयान है कि लोगों में जागरूकता लाकर शराब जैसी सामाजिक बुराई को दूर किया जाएगा।
दरअसल शराब ऐसी ‘सामाजिक बुराई’ है जिसके होने पर भी विवाद है और न होने पर भी। शराबबंदी के मुद्दे की यही दुविधा इन दिनों सामाजिक क्षेत्र से ज्यादा राजनीतिक क्षेत्र को मथ रही है। यह ऐसा निवाला है जो न तो निगलते बनता है और न उगलते। और यही स्थिति शराबबंदी के मामले में न तो आरपार का कोई निर्णय होने देती है और न ही इस अनिर्णय की स्थिति से पैदा होने वाले (राज)धर्म संकट को दूर कर पाती है।
आज अचानक शराबबंदी का मसला इसलिए मचलकर सामने आया क्योंकि एक अखबार में पहले पन्ने पर इससे जुड़ा फोटो देखा। इसमें एक माननीय विधायक, आबकारी विभाग के एक सहायक आबकारी अधिकारी पर हाथ उठाकर थप्पड़ मारने को तत्पर दिखाई दे रहे हैं।
विधायक जी और आबकारी अफसर जी का यह किस्सा सागर का है। वहां सोमवार को मकरोनिया इलाके के राजाखेड़ी में देशी शराब दुकान का विरोध कर रहे लोगों के साथ मिलकर भाजपा विधायक प्रदीप लारिया ने ठेकेदार के आदमियों को बलपूर्वक खदेड़ दिया। दरअसल यहां के लोग इस दुकान का विरोध कई दिनों से कर रहे हैं और कुछ दिन पहले इलाके की महिलाओं ने दुकान में आग भी लगा दी थी।
सोमवार को ठेकेदार के आदमी जब खुले में शराब बेचने लगे तो लोगों ने उसका विरोध किया। इसी दौरान तनातनी बढ़ी और किसी ने विधायक लारिया को खबर कर दी। खबरें बताती हैं कि गुस्से में घटनास्थल पर पहुंचे विधायक ने सहायक आबकारी अधिकारी पर हाथ उठा लिया, हालांकि बाद में उन्होंने हाथ नीचे कर लिया और अफसर को मारा नहीं, लेकिन पास में खड़े पुलिस वालों से डंडा छीना और खुद ही ठेकेदार के आदमियों को वहां से खदेड़ दिया।
घटना में दोनों तरफ से पथराव होने, कुछ लोगों के घायल होने की खबर भी है। विधायक ने मीडिया को बयान दिया कि यदि ठेकेदार गुंडागर्दी के दम पर दुकान खोलना चाहता है तो मैं यह नहीं होने दूंगा। पुलिस ने घटना को लेकर ठेकेदार समेत 65 लोगों पर मामला दर्ज किया है। खबरों में यह स्पष्ट नहीं हो पाया है कि विधायक का नाम इसमें शामिल है या नहीं।
खैर… इस प्रसंग का कानून व्यवस्था से जुड़ा मुद्दा आज मेरी चर्चा का विषय नहीं है, क्योंकि शराब दुकानें बंद कराने को लेकर पूरे प्रदेश में कई जगह इस तरह कानून व्यवस्था की स्थिति बिगड़ रही है। इस दौरान हिंसा भी हुई है और कई लोग घायल भी हुए हैं। इन घटनाओं ने पहले से ही फोर्स की कमी से जूझ रही पुलिस पर दबाव और बढ़ा दिया है। लेकिन उस पर फिर कभी बात करेंगे…
मेरा सवाल यह है कि सरकार ऐसी स्थिति निर्मित ही क्यों होने दे रही है। वह साफ-साफ फैसला क्यों नहीं कर देती कि फलां तारीख से प्रदेश में शराब नहीं बिकेगी। जिस तरह पॉलीथीन पर प्रतिबंध लगाने का एकमुश्त फैसला किया गया, उसी तरह शराब पर भी फैसला हो जाए तो क्या हर्ज है। अभी तक मुख्यमंत्री से लेकर सत्तारूढ़ दल के और भी नेताओं के जितने भी बयान आए हैं उनकी ध्वनि यही निकलती है कि भाजपा और उसकी सरकार शराब के विरोध में है। और यदि ऐसा ही है, तो फिर इस मामले में आरपार का फैसला हो जाना चाहिए।
दिक्कत यह हो रही है कि सरकार लोगों को समझाइश देकर या जनजागरूकता लाकर शराबबंदी कराने जैसी ‘सैद्धांतिक’ बात कर रही है और उधर लोग शराब दुकानों के खिलाफ ‘डायरेक्ट एक्शन’ पर उतर आए हैं। ऐसे में जगह जगह टकराव की स्थितियां बन रही हैं। अभी यह टकराव और तनाव व्यापक हिंसा में नहीं बदला है, लेकिन यदि ऐसा होता है और उस हिंसा में कुछ लोगों की जान चली जाती है तो उसके लिए कौन जिम्मेदार होगा?
दूसरी बात कानूनी है। मैं न तो शराब के पक्ष में हूं न शराब ठेकेदारों के पक्ष में। लेकिन जो ठेकेदार दुकान खोलना चाहते हैं, उन्हें ठेका या लायसेंस सरकार की वैधानिक प्रक्रिया के तहत ही मिला होगा। ऐसे में सरकार की जिम्मेदारी बनती है कि वह उन्हें कारोबार करने लायक माहौल दे। यह क्या बात हुई कि एक तरफ आप दुकानों की नीलामी से या ठेका देकर पैसा भी लेंगे और दूसरी तरफ उन्हें कारोबार भी नहीं करने देंगे। जनता और राजनीतिक दबाव होने के कारण जब पुलिस का संरक्षण भी नहीं मिलता तो ठेकेदार अपने कारिंदों के दम पर ठेका चलाने की जुगत भिड़ाता है।
यदि सरकार सचमुच शराब के विरोध में है तो उसे ‘जागरूकता’ टाइप नाटक करने के बजाय सीधे-सीधे फैसला करना चाहिए। यह कैसे हो सकता है कि खजाना भरने के लिए एक हाथ ठेकेदारों के साथ हो और जनता को लुभाने के लिए दूसरा हाथ लोगों के साथ। यह दो नावों की सवारी कैसे चल सकती है? आपको पैसा भी चाहिए और वोट भी। जबकि इस मामले में यह परस्पर विरोधी बात है।
बेहतर यही होगा कि आप तत्काल पूर्ण शराबबंदी का ऐलान करें। यदि ऐसा नहीं कर सकते तो उस कारोबारी को पूरी सुरक्षा दें जिसे कारोबार करने का लायसेंस आपने खुद बाकायदा पैसा लेकर दिया है। कानूनन यह आपकी जिम्मेदारी है। आप खुद यदि लोगों को कानून हाथ में लेने का मौका देंगे, तो उसके परिणाम प्रदेश के लिए अच्छे नहीं होंगे।