आकाश शुक्ला
हमारी प्राचीन गुरुकुल की शिक्षा व्यवस्था में नैतिक शिक्षा और स्वच्छता पर विशेष जोर दिया जाता था, एवं छात्र छात्राओं को स्वयं के कार्य करने के लिए आत्मनिर्भर बनाया जाता था। आज ऐसी शिक्षा की आवश्कता है, जो पूरे समाज और देश में नैतिकता उत्पन्न कर सके और नागरिकों को देश के प्रति जिम्मेदार बना सके। यह नैतिकता नैतिक शिक्षा के द्वारा ही उत्पन्न की जा सकती है। संस्कृत में नय का अर्थ है जाना, ले जाना तथा रक्षा करना। इसी से शब्द ‘नीति’ बना है। इसका अर्थ होता है ऐसा व्यवहार, जिसके अनुसार अथवा जिसका अनुकरण करने से सबकी रक्षा हो सके। अर्थात नैतिकता वह गुण है, और नैतिक शिक्षा वह शिक्षा है, जो समाज के प्रत्येक व्यक्ति, सम्पूर्ण समाज तथा देश का हित तय करती है।
स्कूलों में स्वच्छता के प्रति नैतिक जिम्मेदारी छात्र-छात्राओं की है, यह भाव जाग्रत करके हम उन्हें स्कूल, समाज, सार्वजनिक क्षेत्र के संस्थानों और देश की स्वच्छता के प्रति नैतिक रूप से जिम्मेदार बना सकते हैं। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने भी एक गुरुकुल में सुझाया था कि स्कूलों में बच्चों को स्वच्छता नियमों का ज्ञान ही नहीं दिया जाना चाहिए, बल्कि उन्हें इसके पालन के लिए भी प्रशिक्षित किया जाना चाहिए।
देश के सारे स्कूलों में शौचालय, पानी, उचित कूड़ा प्रबंधन और साफ-सफाई के प्रति बच्चों के व्यवहार में अपेक्षित बदलाव लाने के कार्यक्रमों को बढ़ावा देकर उन्हें इनके प्रति जिम्मेदार बनाना चाहिए। परंतु वर्तमान में स्कूलों में छात्र-छात्राओं को स्वच्छता संबंधी कार्य करने जैसे झाड़ू लगाने आदि पर बवाल हो जाता है और बड़ी-बड़ी मुखपृष्ठ की खबरें बनती है कि स्कूल में छात्र छात्राओं से झाड़ू लगवाई गई।
जबकि छात्र छात्राओं को स्कूली जीवन से ही यदि स्कूलों में स्वच्छता रखने के लिए साफ सफाई संबंधी कार्य करने के प्रावधान किए जाएं तो न केवल वे अपने स्कूलों को साफ सुथरा रखेंगे बल्कि अन्य सार्वजनिक संस्थाओं को साफ और स्वच्छ रखने के प्रति उनमें जिम्मेदारी का भाव जागेगा। वे अपने सामाजिक जीवन में और घरों में, सार्वजनिक संस्थानों के साफ सफाई के प्रति जिम्मेदार बनेंगे। आज से 35-40 वर्ष पूर्व बच्चों के स्कूल में साफ सफाई करने पर वाद विवाद और बवाल नहीं होते थे।
इस मामले में हमें जापान की शिक्षा व्यवस्था से सीखने की आवश्यकता है जो कि वैश्विक स्तर की प्रथम 10 शिक्षा व्यवस्था में आती है, जापान में बच्चों को शुरुआत से ही स्कूलों में साफ सफाई के प्रति जिम्मेदार बनाया जाता है, वहां सफाई कर्मचारी नहीं होते हैं, स्कूल के छात्र छात्राएं एवं शिक्षक मिलकर साफ सफाई का काम करते हैं। वहाँ बच्चों को बचपन से ही स्वयं सफाई करना सिखाया जाता है ताकि वे सफाई रखना भी सीखें। पढ़ाई खत्म करने के बाद यह बच्चों का काम होता है कि वो कक्षाओं की सफाई करें। प्रतिदिन पढ़ाई खत्म होने के पश्चात शिक्षक सफाई की जिम्मेदारी छात्र-छात्राओं में बांटते हैं।
जापान में प्राथमिक से लेकर उच्चतर माध्यमिक कक्षाओं के स्कूली जीवन में छात्रों के दैनिक कार्यकलाप में सफाई का समय शामिल होता है। यदि हमारे देश में भी स्वच्छता की आदत प्राथमिक स्कूलों से ही बच्चों में डालें तो स्कूली पाठ्यक्रम में सामाजिक चेतना के इस तत्व को शामिल करने से बच्चों में जागरूकता और अपने परिवेश के प्रति जिम्मेदारी की भावना विकसित करने में मदद मिलेगी। जिस स्कूल को बच्चे खुद साफ करेंगे, उसे वे खुद कभी गंदा नहीं करेंगे।
स्कूल साफ करने की अच्छी आदत विकसित होने पर इससे बच्चे सीखेंगे कि जिस जगह का हम इस्तेमाल करते हैं, उसे साफ रखने की जिम्मेदारी हमारे लिए महत्वपूर्ण है एवम् छात्र जब बड़े होंगे तो अपनी जगह और सफाई को लेकर उनकी अवधारणा स्कूल से निकलकर मोहल्ले, शहर, प्रदेश और पूरे देश में फैलेगी जो हमारे देश को स्वच्छ बनाने में मदद करेगी।