बुखार अच्छे भले आदमी को बेचैन करने के लिए काफी है। बुखार में तपता इंसान बदहवास सा हो जाता है। बुखार आदमी के श्वसन तंत्र, उत्सर्जन तंत्र से लेकर दिमाग तक शरीर के किसी भी हिस्से को नुकसान पहुंचा सकता है। सामान्य मनुष्य का तापमान जैसे ही सैंतीस डिग्री सेल्सियस को पार करता है इंसान हवा, पानी और ठंडक पाने के लिए छटपटाने लगता है।
आदमी को बुखार हो तो डॉक्टर माथे पर गीली पट्टी रखने को कहते हैं, खुली हवा में बैठने को कहते है, यही नहीं उसके खानपान में भी ऐसी चीजें मुहैया करायी जाती हैं जिससे उसके शरीर की गर्मी कम हो। अगर तमाम उपायों के बावजूद इंसान के शरीर का तापमान कम नहीं होता तो उसका मौत के मुंह में जाना तय है। यानी बुखार जानलेवा होता है।
अबकी बार इस जानलेवा बुखार ने किसी इंसान को नहीं बल्कि इसके जीवन आधार को ही अपनी चपेट में ले लिया है। मनुष्य के जीवन का आधार ये धरती बुखार से तप रही है और किसी डॉक्टर, वैज्ञानिक या सरकार ये हैसियत नहीं दिख रही कि इस धरती के तापमान को कम कर पाये।
धरती के बढ़ते तापमान से परेशान सब हैं, वैज्ञानिक शोध पर शोध कर रहे हैं, दुनिया भर के नेता सालों से ग्रीन हाउस प्रभाव को लेकर बातें कर रहे हैं, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बड़े-बड़े सम्मेलन हो रहे हैं, अरबों-खरबों रुपये खर्च हो रहे हैं, लेकिन धऱती का तापमान है कि एक डिग्री कम नहीं हो पा रहा।
मौसम का एक डिग्री सेल्सियस गर्म या ठंडा होना तो सामान्य सी बात है। लेकिन जब बात पूरी धरती के औसत तापमान की हो तो इसमें मामूली सी बढ़ोतरी के भयंकर नतीजे सामने आते हैं। नासा के मुताबिक धरती का औसत तापमान 0.8 डिग्री सेल्सियस बढ़ चुका है। अब भी अगर नहीं संभले और धरती एक डिग्री और गर्म हुई तो पीने के पानी के लिए भी लोग तरस जाएंगे।
धरती जब बुखार से तपती है तो समुद्र का पानी उबलने लगता है, रिपोर्ट्स बताती हैं कि समुद्र में आक्सीजन कम हो जाती है, ग्लेशिय़र पिघलने लगते हैं, हरे-भरे इलाके रेगिस्तान में बदल जाते हैं और इस तबाही को ये धरती पिछले कई सालों से भोग रही है, देख रही है। 1930 में अमेरिका के नेब्रास्का का हरियाली से भरा इलाका रेत के ढेर में तब्दील हो चुका है। 2005 में भूमध्य रेखा के पास साफ पानी के तमाम स्त्रोत सूख गये।
अब अगर धरती का बुखार नहीं रुका और एक डिग्री और बढ़ गया तो वैज्ञानिकों का अनुमान है कि समुद्र का जलस्तर छह मीटर बढ़ जाएगा। यानी हिंद महासागर में स्थित मालद्वीप जो सागर से सिर्फ डेढ़ मीटर ऊपर है उसके बचने की संभावना तो ना के बराबर ही है। सवाल ये हैं जब खतरा इतना भयंकर है, तो दुनिया के देश, उनकी सरकारें और वहां के लोग इतने लापरवाह क्यों है? जाहिर है सबको लगता है पड़ोसी के घर में बुखार से कोई तपे तो हमें क्या, उसका ख्याल वो रखे, हमारा काम तो सिर्फ हाल-चाल पूछ कर औपचारिकता निभा देना है। वो ये नहीं जानता कि जो बुखार संक्रामक होता है, तेजी से फैलता है, पीड़ित के बाद सबसे पहले वो पड़ोसी को ही चपेट में लेता है ।
उसी तरह इस धरती को लोगों ने पड़ोसी का बीमार बच्चा समझ कर छोड़ दिया है, जबकि धरती पड़ोसी की जिम्मेदारी नहीं है, हर इंसान की जिंदगी का हिस्सा है। तो फिर इसका उपचार क्या है? बुखार का बरसों से एक ही घरेलू और कारगर उपाय है और वो है माथे पर गीली पट्टी और ये पट्टी तब तक रखना जब तक तापमान उतर ना जाये। अब इस धऱती के माथे पर गीली पट्टी रखे कौन? धऱती को खुली हवा कैसे मिले? धरती को प्रदूषण से कैसे बचायें? धरती को भोजन में क्या दें कि इसके सारे अंगों को ठंडक नसीब हो?
जिस तरह डॉक्टर सिर्फ इलाज की पर्ची लिख सकता है, नर्स/कंपाउंडर इंजेक्शन लगा सकते हैं, मदद कर सकते हैं, लेकिन मरीज की तीमारदारी तो चौबीसों घंटे घरवालों को, परिवार वालों को ही करनी पड़ती है। तभी जाकर आदमी का बुखार उतरता है। उसी तरह वैज्ञानिकों ने बता दिया है, पर्यावरण विशेषज्ञों ने, सरकारों ने, नर्स और कम्पाउंडर बन कर जन-जन तक जागरूकता भी पहुंचा दी है, लेकिन जब तक इस धरती पर ऱहने वाला एक-एक आदमी गीली पट्टी लेकर नहीं निकलेगा धरती का तापमान कम करने की कोशिश नाकाफी है।
धरती के लिए गीली पट्टी का मतलब है पेड़ लगाना, धरती को खुली हवा दिलाने का मतलब है हर तरह से प्रदूषण को रोकना, धरती को ठंडक देने का मतलब है नदियों में गंदा पानी और रसायन जाने से रोकना, धऱती को पौष्टिक भोजन देने का मतलब है उसकी मिट्टी को प्राकृतिक खाद से उपजाऊ बनाना और कृत्रिम खाद और रसायन से बचाना।
और जान लीजिए मौजूदा परिस्थियों में धऱती के बुखार को उतारने की ये सिर्फ एक कोशिश है, धरती का बुखार इस कदर बेकाबू हो चुका है कि इस बात की कोई गारंटी नहीं कि बुखार उतर ही जाये। हम ये उपाय करके मौत के मुहाने पर खड़ी है धरती को बचाने की कोशिश ही कर सकते हैं… शायद आखिरी कोशिश…