आखिर ये हो क्या रहा है? पार्टी का अनुशासन, पार्टी का फैसला, पार्टी की इज्जत जैसी कोई चीज बची है या नहीं… या कि सब घोल कर पी गए। ठीक है कि अब चाल, चरित्र, चेहरा जैसे नारों का जमाना नहीं रहा, लेकिन इसका मतलब यह तो नहीं कि आप अपना चाल चलन ही बिगाड़ लें। और अपना बिगाड़ें तो बिगाड़ें, अपने ‘कहे सुने’ से पार्टी का भी बिगाड़ने लगें।
अरे जब खुद अध्यक्षजी ने कह दिया था कि कटनी में पुलिस अधीक्षक का तबादला सोच समझकर किया गया है। ‘’जरूरी नहीं कि एक या दो साल में ही तबादला हो। सरकार चाहे तो चार महीने में भी तबादला कर सकती है, हवाला घोटाले में मेरे बेटे नाम बेवजह घसीटा जा रहा है…’’ वगैरह वगैरह, तो फिर ये पार्टी के ही नेता आए दिन कटनी एसपी तबादले को लेकर उलटी सीधी बयानबाजी क्यों कर रहे हैं? पार्टी का कोई डर है या नहीं…
बाबूलाल गौर, अजय विश्नोई, प्रहलाद पटेल, रघुनंदन शर्मा, विपिन दीक्षित… यह सूची लंबी ही होती जा रही है। मीडिया में भाजपा के ही जाने किन किन नेताओं के हवाले से कहा जा रहा है कि हवाला घोटाले के संदर्भ में मंत्री संजय पाठक को इस्तीफा दे देना चाहिए। क्यों भई, हम क्या उन्हें चार दिन की चांदनी दिखाने के लिए भाजपा में लाए थे। और चलो मान भी लिया कि हमारे यहां इन दिनों चारों तरफ ‘चांदनी’ छिटकी पड़ी है, लेकिन पाठकजी के पास भी ‘चांदनी’की कोई कमी तो थी नहीं। वे तो ‘आपकी संभावनाओं को’ आफताब की तरह रोशन करने आए थे और आप हैं कि अब इस आफताब को ही आफत मानने लगे हैं। ऐसा कहीं होता है भला?
जिसको देखो अपनी ही सरकार और अपनी ही पार्टी की बुराई कर रहा है। और इन विपिन दीक्षित को क्या हो गया है? अरे, भूल गए वो दिन जब पार्टी ने उन्हें लघु उद्योग निगम जैसे ‘कमाऊ’ निगम का अध्यक्ष बनाया था। आज वे ही पार्टी और सरकार को सीख देते हुए सोशल मीडिया पर कह रहे हैं कि- “शरद जोशी जी यूं ही नहीं कह गए हैं… हम भ्रष्टन् के – भ्रष्ट हमारे… भ्रष्टाचार तो अजर-अमर है… नोटबंदी भी क्या खाक उसे खत्म कर पाएगी… कटनी की जनता अपना टाइम खोटी कर रही है, जो एसपी गौरव तिवारी के तबादले के विरोध में सड़क पर प्रदर्शन करने उतर आई… इतिहास गवाह है गौरव तिवारी जैसे दबंग अफसरों की नियति तबादले और प्रताडऩाएं रही हैं…. न खाऊँगा न खाने दूंगा से लेकर जीरो टॉलरेंस भ्रष्टाचार की बातें चुनावी नारों और दावों में ही अच्छी लगती है… कटनी के साथ-साथ देश-प्रदेश की जनता को इस तरह के रूटीन फैसलों की आदत डाल लेना चाहिए… क्योंकि राजनीति को गौरव तिवारी की नहीं संजय पाठकों की जरूरत ज्यादा है…!”
देखिए, सौ बात की एक बात यही है कि सरकार ने पूरे मामले की जांच ‘ईडी’ को सौंप दी है। अब इस मामले में ज्यादा ‘एबीसीडी’ करने की जरूरत नहीं है। ए टू झेड जो करना होगा ईडी कर लेगा। उसे ऐसे मामलों को ‘राजनीतिक और गैर राजनीतिक’ दोनों तरीकों से निपटाने का लंबा अनुभव है। निश्चिंत रहिये‘न्याय’ अवश्य होगा। आप अपने काम से काम रखिये। ज्यादा जज साहब बनने की जरूरत नहीं है।
और ये आलोचना करने वाले हैं कौन? क्या है इनकी हैसियत? एक चिरकुट-सा चुनाव तो जिता नहीं सकते… और दूसरों को जिताना ता दूर की बात, खुद के लिए वोटों के लाले पड़ते रहते हैं, इसके बावजूद चले हैं सरकार और पार्टी के फैसलों पर उंगली उठाने। पार्टियां ऐसे नहीं चला करतीं। अब कोई आपके घर आ जाए, तो क्या उसे धक्का देकर बाहर निकाल देंगे? और अगला आपसे न रोटी मांग रहा है न पानी। खुद का तो खुद का, आपके लिए भी लजीज व्यंजनों वाला टिफिन लेकर आया है। फिर भी आपके पेट में दर्द हो रहा है।
नहीं, नहीं, यह सब बिलकुल नहीं चलेगा। इन मीडिया वालों और इन विपक्षियों का तो काम ही चिल्ला चोट करना है। जरा सी चिंदी दिखी नहीं कि थान बेचने लगते हैं। रस्सी को सांप बनाने में माहिर हैं ये लोग। याद नहीं आपको, कितना हल्ला मचाया था व्यापमं मामले में। हार्डडिस्क के साथ छेड़छाड़ हुई है, जाने कौन सी एक्सल शीट निकाल लाए थे। खुद की गाड़ी का क्लच, गियर, एक्सल ठीक है नहीं और दूसरे की एक्सल शीट पर जाने कौन-कौन सी तोहमत लगा रहे थे। कोर्ट ने सब दूध का दूध और पानी का पानी कर दिया। साफ कह दिया कि कहीं कोई छेड़छाड़ नहीं हुई है। फिर क्या हुआ? मुंह लटका कर रह गये ना?
जैसे हमने कहा था कि व्यापमं मामले में कहीं कोई लीपापोती करने की कोशिश नहीं हुई है। जिस तरह उस मामले में एसआईटी का गठन कर जांच करवाई गई थी उसी तरह कटनी के कथित हवाला घोटाले में भी कानून अपना काम करेगा। और हां, ये गौरव तिवारी टाइप के अफसरों को इतना माथे पर मत चढ़ाइये। इन अफसरों का क्या है? आज यहां तो कल वहां। आज इसकी बात कर रहे हैं, कल किसी और की बात करने लगेंगे। इन्हें अपनी नौकरी करना है, उन्हें नौकरी करने दीजिये। क्या फर्क पड़ता है, कटनी रहें या छिंदवाड़ा… लेकिन आप यह ‘गंदवाड़ा’ फैलाएंगे तो समझ लीजिये, बहुत दिक्कत होगी… कह देते हैं आपको…