गिरीश उपाध्याय
बहुत पुरानी कहावत है कि आपदा अपने साथ नए अवसर भी लेकर आती है। कोविड काल की आपदा ने भी समाज में बहुत सारे लोगों को बहुत सारे अवसर उपलबध कराए हैं। और ऐसे अवसर पाने या अवसर तलाशने वालों में साइबर अपराधी भी किसी से पीछे नहीं रहे। बल्कि यूं कहा जाए कि कोविड काल उनके लिए सुनहरे अवसर के रूप में आया तो ज्यादा बेहतर होगा। पहले लॉकडाउन और बाद में कोरोना प्रोटोकॉल के चलते ज्यादातर घरों में ही रहना लोगों की मजबूरी थी और इसी मजबूरी के चलते अपने अधिकांश काम ऑनलाइन करना भी उनकी विवशता थी। इसी विवशता के चलते ऐसे कई लोग ऑनलाइन या डिजिटल दुनिया से जुड़ने को बाध्य हुए जिन्हें इस दुनिया की एबीसीडी तक पता नहीं थी। और इसी बात ने साइबर अपराधियों के पौ बारह कर दिए।
ऐसा ही एक मामला इन दिनों बहुत चर्चा में है। मामला एनडीटीवी की पूर्व कार्यकारी संपादक निधि राजदान से जुड़ा है जिन्हें कोविड काल में ही हार्वर्ड विश्वविद्यालय में एसोसिएट प्रोफेसर बनने का कथित प्रस्ताव मिला। उन्होंने प्रस्ताव स्वीकार करते हुए न सिर्फ एनडीटीवी की नौकरी से इस्तीफा दे दिया बल्कि सोशल मीडिया पर यह ऐलान भी कर दिया कि वे अब हार्वर्ड विश्वविद्यालय के पत्रकारिता विभाग में एसोसिएट प्रोफेसर के रूप में नई भूमिका निभाने जा रही हैं। लेकिन अब जाकर पता चला है कि निधि राजदान को मिला वह प्रस्ताव फर्जी था और हार्वर्ड विश्वविद्यालय ने आधिकारिक रूप से न तो उन्हें किसी पद का कोई प्रस्ताव दिया था और न ही उनके साथ कोई पत्रव्यवहार किया था। राजदान के साथ यह सब करने वाले साइबर अपराध की दुनिया के हाईटेक उस्ताद थे जिन्होंने भारत की एक बड़ी पत्रकार को बहुत चतुराई से अपने झांसे में ले लिया।
जैसे ही यह किस्सा और इसकी असलियत सामने आई सोशल मीडिया पर लोगों ने निधि राजदान की खिल्ली उड़ानी शुरू कर दी। उन्हें पता नहीं क्या-क्या कहा गया और न जाने कैसी कैसी सीख दी गई। हाल ही में इस पूरे किस्से को लेकर निधि राजदान ने एक ब्लॉग लिखा है। उस ब्लॉग को पढ़ने के बाद यह जरूरी हो जाता है कि हम ऐसे अपराधों का शिकार होने वाले लोगों पर हंसने या उनकी खिल्ली उड़ाने के बजाय उनकी आपबीती से कुछ सबक लें और खुद को साइबर दुनिया के अपराध और अपराधियों से दूर रखें।
निधि राजदान जैसी घटना किसी के भी साथ घट सकती है। उन्होंने जिस तरह घटना का ब्योरा दिया है वह बताता है कि साइबर की यह बनावटी और गैर भरोसेमंद दुनिया कितनी चालाकी और सिद्धहस्तता के साथ खुद को असली और भरोसेमंद साबित करने का हुनर सीख चुकी है। निधि राजदान न तो साइबर या डिजिटल दुनिया से नावाकिफ हैं और न ही वे इस बात से अनजान रही होंगी कि डिजिटल जगत ‘किसिम-किसिम’ के अपराधियों से भरा पड़ा है। लेकिन उन्हें भी जब साइबर अपराधी झांसे में लेने में कामयाब हो गए तो जरा सोचिये कि दुनिया में और खासतौर से भारत जैसे देश में, जहां डिजिटल लिटरेसी की दर अब भी बहुत कम है, वहां रोज कितने लोग इस तरह के अपराध या ठगी का शिकार हो रहे होंगे।
कोरोना काल में डिजिटल प्लेटफॉर्म्स के उपयोग की मजबूरी ने इस तरह के अपराधों और ऐसी ठगी का शिकार होने वालों की संख्या में कई गुना इजाफा किया है। बहुत कम ही लोग होंगे जो कभी न कभी इस तरह की ठगी का या गलत सूचनाओं का शिकार न हुए हों। इसलिये जरूरी हो जाता है कि डिजिटल दुनिया में प्रवेश करने से पहले हम अपने आपको अच्छी तरह तैयार करें। पुराने लोग कहा करते थे कि बाजार से सामान लेते समय सामान को अच्छी तरह ठोक बजाकर देख लेना चाहिए। वह कहावत आज भी पुरानी नहीं पड़ी है, बस उसका स्वरूप बदल गया है। साइबर दुनिया से आने वाली किसी भी सूचना या प्रस्ताव को बहुत सावधानी से और हर तरह से ठोक बजाकर देख लेने की जरूरत है। अच्छी बात यह है कि साइबर या डिजिटल अपराध की काट साइबर या डिजिटल दुनिया में ही उपलब्ध है। जरूरत इस बात की है कि हम ऐसी किसी भी सूचना पर भरोसा करने, किसी प्रस्ताव पर अमल करने या किसी बात पर अपनी सहमति देने से पहले सूचना देने वाले से लेकर, सूचना के तथ्यों और उसकी प्रामाणिकता के बारे में पूरी जांच पड़ताल कर लें।
चूंकि इस तरह की सूचनाएं सच का या सच जैसा ही आवरण पहनाकर प्रस्तुत की जाती हैं इसलिए सहसा उन पर अविश्वास करने का कोई कारण नहीं बनता। अधिकांश लोग इसी कारण अपराध या ठगी का शिकार हो जाते हैं। इससे बचने का एक ही उपाय है कि हम ऐसी हर सूचना को, चाहे वह कितनी भी सच क्यों न लग रही हो, संदेह की नजर से देखें। खुद से यह सवाल करें कि क्या यह सूचना सही है या सही हो सकती है? फिर अपने सवाल का जवाब ढूंढने के लिए डिजिटल दुनिया में जाएं, लोगों से बात करें…
इस पूरे मामले का एक और पहलू है जो मनुष्य के स्वभाव से जुड़ा है। आमतौर पर अपराध या ठगी का शिकार होने वाला व्यक्ति शरम के मारे अपनी आपबीती को दूसरों से शेयर नहीं करता। लेकिन आज साइबर या डिजिटल दुनिया में यह शरम ही अपराधियों के हौसले बुलंद कर रही है। इसलिए जरूरी है कि यदि आपके साथ ऐसी कोई भी घटना हो तो उसे ज्यादा से ज्यादा प्रचारित और प्रसारित करें ताकि बाकी लोग उससे सबक लेकर या उस जानकारी को समझकर, खुद इस तरह के अपराध का शिकार होने से बचें। निधि राजदान ने अपने साथ हुई घटना पर ब्लॉग लिखकर ठीक ही किया है। ऐसा करने पर वे हंसी की नहीं बल्कि सराहना की पात्र हैं, क्योंकि उन्होंने पूरे समाज को आगाह किया है कि साइबर अपराधी कितने कौशल के साथ ठगी या अपराध करने लगे हैं कि देश दुनिया को जानने समझने वाला इतना बड़ा पत्रकार भी उसका शिकार हो सकता है।
सामान्य तौर पर इस तरह के अपराध या ठगी में मुख्य तत्व लालच का होता है। यह लालच फ्री में चीज उपलब्ध कराने से लेकर चीजों को मुफ्त के भाव उपलब्ध कराने तक फैला होता है। मुख्य रूप से यह आपको आपके फायदे का चारा डालकर फंसाता है और एक बार जाल में फंसने के बाद आपका वही हश्र होता है जो जाल में फंसी मछली का होता है। इसलिए जहां भी मुफ्त में या अप्रत्याशित रूप से सस्ते में कोई चीज उपलब्ध कराने की बात हो रही हो वहां दस बार नहीं हजार बार सोचें। और जहां तक संभव हो ऐसे प्रस्ताव को पहली नजर में ही खरिज कर दें क्योंकि डिजिटल या साइबर की दुनिया में मुफ्त कुछ नहीं होता। यहां हर चीज की कीमत होती है, यह कीमत आपको और हमको ही चुकानी पड़ती है फिर चाहे वह कम हो या भारी भरकम…
पहले बुजुर्ग लोग कहा करते थे कि दुनिया विश्वास पर ही टिकी है। हमें लोगों पर भरोसा करना चाहिए। लेकिन आज की साइबर या डिजिटल दुनिया अविश्वास पर टिकी है। यह हमें सिखा रही है कि पहली नजर में हमें लोगों पर विश्वास नहीं बल्कि अविश्वास करना चाहिए। अविश्वास करने या चीजों को संदेह की नजर से देखने की यह आदत हम जितनी जल्दी डाल लें उतना अच्छा है। खासतौर से डिजिटल या साइबर दुनिया में प्रवेश करने से पहले तो हमें ऐसा करना सीख ही लेना चाहिए।