गिरीश उपाध्याय
मध्यप्रदेश में इन दिनों एक रोचक मामला चर्चा में है। किस्सा यह है कि ‘दिग्गी राजा’ के नाम से मशहूर प्रदेश के राघोगढ़ के ‘राजा’ और राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजयसिंह एवं उनके विधायक पुत्र जयवर्धनसिंह का नाम गरीबी की रेखा से नीचे जीने वालों की सूची में दर्ज पाया गया है। पिछले दिनों जब यह मामला उछला तो कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव दिग्विजयसिंह ने सोशल मीडिया मंच ट्विटर पर सफाई और आपत्ति दोनों दर्ज कराते हुए स्पष्ट किया कि वे खुद और उनके परिवार के सदस्य तो आयकरदाता हैं। उन्होंने न तो कभी बीपीएल सूची में नाम जोड़ने के लिए आवेदन किया और न ही इन वर्गों के लिए चलाई जा रही कल्याणकारी योजनाओं के अंतर्गत कोई लाभ लिया है। कांग्रेस नेता ने राज्य सरकार को कठघरे में खड़ा करते हुए कहा कि उनके विरुद्ध झूठा प्रचार किया जा रहा है और इस गलत जानकारी के लिए मुख्यमंत्री शिवराजसिह चौहान को उनसे माफी मांगनी चाहिए।
हालांकि तूल पकड़ने के बाद इस मामले में गुना जिला प्रशासन और भोपाल में राज्य सरकार की ओर से स्पष्टीकरण जारी कर स्थिति साफ कर दी गई थी कि ऐसा चूकवश हुआ है। लेकिन सोमवार को खुद जयवर्धनसिंह ने राज्य विधानसभा में यह मामला उठाया। शून्यकाल में जयवर्धन ने कहा कि इस मामले में शिकायत करने पर गुना जिला कलेक्टर राजेश जैन ने कहा कि सामाजिक आर्थिक सर्वे में चूक हुई है और जिला प्रशासन की ओर से इस चूक को ठीक करने के लिए नागरिक आपूर्ति विभाग के प्रमुख सचिव को चिट्ठी भेज दी गई है। लेकिन रविवार रात भोपाल में राज्य शासन की ओर से जारी स्पष्टीकरण कुछ और ही कह रहा है। इसके मुताबिक जिस सूची में दिग्विजयसिंह परिवार का नाम आया है वह सूची बीपीएल की थी ही नहीं। वह तो असल में पिछले दिनों प्रधानमंत्री द्वारा घोषित की गई उज्ज्वला योजना की है, जिसमें एक सामान्य जनगणना के माध्यम से एकत्र की गई जानकारी में ये नाम सामने आए थे।
जयवर्धन ने सवाल उठाया कि जिला प्रशासन कुछ और कह रहा है और राज्य शासन कुछ और। इसमें सही बात कौनसी है। और इस गलती के लिए जो भी अधिकारी कर्मचारी जिम्मेदार हैं, क्या उन्हें सजा मिलेगी? दिग्विजयसिंह के पुत्र ने आरोप लगाया कि यह सब उनके परिवार को बदनाम करने की साजिश है, जिसमें दोषियों का पता लगाकर उनके खिलाफ कार्रवाई होनी चाहिए।
अब पहले तो सदन में कांग्रेस की राजनीति की बात। माना कि यह मामला राजनीतिक रूप से उतनी संभावना वाला नहीं है। लेकिन फिर भी यह कांग्रेस के एक बड़े नेता से जुड़ा है। लिहाजा उम्मीद थी कि कांग्रेस के विधायक इस मसले पर हल्ला तो जरूर मचाएंगे। लेकिन इस पर सिर्फ जयवर्धन ही बोले। और विधानसभा में यह खालिस उनका पारिवारिक मामला बनकर रह गया। सदन में कांग्रेस के सदस्यों ने इसे कोई तवज्जो ही नहीं दी। जयवर्धन जिसे अपने परिवार के खिलाफ साजिश बता रहे थे वह मामला सदन में जैसे उठा वैसे ही खत्म भी हो गया।
लेकिन इसका दूसरा पक्ष ज्यादा गंभीर है। यह मुद्दा सिर्फ दिग्विजयसिंह और उनके परिवारजनों का नाम बीपीएल या जरूरतमंदों की सूची में आने भर का नहीं है। अगर राज्य सरकार की सफाई भी मानें तो भी इतना तो तय है कि दिग्विजयसिंह परिवार के लोगों का नाम उज्ज्वला योजना की सूची में शामिल पाया गया है। यह ‘उज्ज्वला योजना’ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अति महत्वाकांक्षी योजनाओं में से एक है। प्रधानमंत्री ने खुद मई 2016 में इस योजना को लांच किया था। इसके अंतर्गत सरकार गरीब परिवारों को मुफ्त रसोई गैस कनेक्शन देने जा रही है। तीन साल में पांच करोड़ बीपीएल परिवारों को मुफ्त एलपीजी कनेक्शन देने का लक्ष्य है। 8 हजार करोड़ रुपए की इस योजना का उद्देश्य अशुद्ध ईंधन के कारण होने वाले रोगों में कमी लाना, महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा देना और प्रदूषण को कम करना है। इसके लिए हरेक बीपीएल परिवार को 1600 रुपये की सहायता मुहैया कराई जाएगी। योजना के लिए पात्र परिवारों की पहचान, राज्य सरकारों व केंद्र शासित प्रदेशों के प्रमुखों को करनी है।
बड़ा सवाल यह है कि केंद्र व राज्य की ऐसी महत्वाकांक्षी व जनकल्याणकारी योजनाओं को क्या इस तरह से पलीता लगाया जा रहा है? भूल जाइए कि वह बीपीएल की सूची थी या उज्ज्वला योजना की। आखिर कैसे दिग्विजयसिंह के परिवार का नाम ऐसी किसी भी सूची में दर्ज हो जाता है? क्या ये सूचियां ऐसे ही बन रही हैं? दिग्विजयसिंह न तो कोई अनजान व्यक्ति हैं और न ही राघोगढ़ में उनकी हैसियत किसी से छुपी है। प्रदेश के अधिकारी कर्मचारी अपने पूर्व मुख्यमंत्री का नाम तो जानते ही होंगे। ऐसे में कोई कैसे इतनी बड़ी गफलत कर सकता है? मीडिया में किसी संतोष कुमार का बयान छपा है, जो आईटीआई राघोगढ़ में क्लर्क है। बताया जाता है कि उसी ने वह सर्वे किया था जिसमें दिग्विजय परिवार का नाम सूची में दर्ज हुआ। उसने बड़ी मासूमियत से कहा है कि मुझे जो भी जानकारी मिली उसे फार्मेट में दर्ज कर दिया। बहुत खूब… यदि गरीबों के लिए बनाई गई योजनाओं का लाभ देने के लिए सूची ऐसे फार्मेट में तैयार हो रही है तो योजनाओं का भगवान ही मालिक है। क्या ऐसा नहीं लगता कि इस सरकार में बहुत कुछ ‘फार्मेट’ करने की जरूरत है?