भई वाह! मजा आ गया… वीकेंड पर लिखने के लिए ऐसा विषय मिल जाए तो क्या बात है… इसमें भारत भी है, भारत की संस्कृति भी है, भारत की वर्तमान दशा भी है और भारत के भविष्य की दिशा भी है। यानी चूल्हा भी भारतीय है, कड़ाही भी भारतीय और उसमें बनने वाली मिठाई भी भारतीय…
और जब बात भारत की हो तो विदेशियों का चौंकना, हैरान होना, उनके मन में ईर्ष्या भाव का पनपना स्वाभाविक ही है। वैसे भी भारत की तरक्की को लेकर दुनिया में जलने वालों की कमी नहीं है और जो जल नहीं पाते वे भुन कर भुनभुनाते रहते हैं। इकबाल ने कहा है ना- कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी/सदियों रहा है दुश्मन, दौर-ए-जमां हमारा…
दरअसल मामला हम भारतीयों की एक खास आदत से जुड़ा है। बल्कि इसे आदत नहीं अदा कहना ज्यादा मुफीद होगा और यह अदा है हमारे सिर हिलाने की। शुक्रवार को इसी अदा से जुड़ी एक खबर कई अखबारों में नुमायां हुई। खबर कहती है कि ब्रिटिश मूल की अमेरिकी यात्रा लेखक मार्गोट बिग ने भारत में पांच साल से ज्यादा का वक्त गुजारने के बाद यहां आने वाले सैलानियों के लिए गाइडबुक लिखी है। यह किताब भारत को समझने में काफी मददगार है।
इसी किताब का एक दिलचस्प निष्कर्ष भारतीयों की सिर हिलाने की आदत को लेकर है। यह आदत लगभग हर भारतीय में मौजूद है। सचमुच हम कई सारे सवालों के जवाब केवल सिर हिलाकर ही दे देते हैं। जिन विदेशी सैलानियों का ऐसे बर्ताव से पहले वास्ता न पड़ा हो वे हमारी इस आदत से खासे परेशान हो जाते हैं। क्योंकि वे समझ ही नहीं पाते कि सामने वाला उनके सवाल के जवाब में आखिर कह क्या रहा है?
अमेरिकी लेखिका मार्गोट बिग ने अपनी किताब में जो निष्कर्ष निकाले हैं वे सिर हिलाने की अपनी इस आदत के बारे में आपको भी सोचने पर मजबूर कर देंगे। उनका कहना है कि भारत में लोगों के सिर हिलाने के अलग-अलग तरीके के अलग अलग मायने होते हैं, जैसे…
– एक तरफ सिर झुकाकर हिलाया जाए तो उसका मतलब ‘हां’ होता है यही मुद्रा चलने का इशारा करने के लिए भी इस्तेमाल होती है।
– सिर को कुछ देर तक आगे-पीछे हिलाने का मतलब है कि सामने वाले को आपकी बात समझ में आ गई है।
– यदि तेजी से सिर हिलाया जाए, तो यह मानकर चलिये कि उतनी ही तेजी से किसी बात पर रजामंदी जाहिर की जा रही है।
– भौंहे चढ़ाकर सिर हिलाने का मतलब है कि आपकी बात तत्काल मान ली गई है।
– लेकिन इसी मुद्रा का एक अर्थ यह भी निकलता है कि “आप जो कह रहे हैं वह ठीक ही है”। यह प्रतिक्रिया वैसी ही है जैसे विदेश में लोग अकसर कंधे उचकाकर व्यक्त करते हैं। वहां उनका आशय होता है कि ‘‘इससे उन्हें फर्क नहीं पड़ता।‘’
मार्गोट बिग की किताब मैंने चूंकि पढ़ी नहीं है इसलिए मैं सिर हिलाने की मुद्राओं को लेकर उनके द्वारा किए गए उतने ही विश्लेषणों पर बात कर पा रहा हूं जितने मीडिया में छपे हैं। लेकिन एक भारतीय होने के नाते मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि वह विदेशी बाला हमारी इस अनूठी ‘शीश हिलाने’ की कला का एक छोटा सा अंश ही पकड़ या समझ पाई होगी।
उसे शायद पता ही नहीं होगा कि वस्तुत: हम भारतीय सिर का इस्तेमाल सोचने समझने में भले ही न करते हों, लेकिन उसे हिलाने में भरपूर करते हैं। हम ऊर्जा संरक्षणवादी लोग हैं और बेकार में बोलने या और कोई हरकत करके अपनी ऊर्जा को नष्ट करने में भरोसा कम ही करते हैं। अरे जो काम सिर हिलाने से चल जाए, उसे लेकर जबान क्यों हिलाना?
सिर के साथ हमारा बर्ताव वैसा ही है जैसा हम स्मार्ट फोन के साथ करते हैं। कहने को स्मार्ट फोन में दर्जनों फंक्शन होते हैं, लेकिन आज भी हाथ में महंगे से महंगा स्मार्ट फोन रखने वाले ज्यादातर लोग या तो उसका इस्तेमाल सिर्फ कॉल लगाने के लिए करते हैं या फिर कॉल रिसीव करने के लिए।
उसी तरह ईश्वर ने भले ही सिर के लाखों इस्तेमाल रच कर दिए हों लेकिन हम ज्यादातर उसे बस हिलाने के काम में ही लाते हैं। और इस हिलाने की क्रिया में भी सबसे टॉप पर दो ही आशय हैं या तो ‘हां’ या फिर ‘ना’। बाकी एंगल तो इन दोनों अर्थों के साइड इफेक्ट की तरह हैं।
होते हैं कुछ लोग जो विभिन्न कोणों से सिर को हिलाकर अलग अलग भावाभिव्यक्ति भी कर लेते हैं लेकिन ज्यादातर लोगों का सिर हिलकर या तो स्वीकृति देता है या फिर अस्वीकृति। क्योंकि हमने अपनी जिंदगी को ही एक ऑब्जेक्टिव टाइप प्रश्न में बदल डाला है जिसमें जवाब या तो हां है या फिर ना।
इसमें कभी कभी कुछ अपवाद जरूर मिल जाते हैं। एक नस्ल ऐसी भी है जो सिर के हिलने की मुद्रा के असली अर्थ को पकड़ने या परखने में माहिर होती है। ऐसे लोग अपनी पैनी नजर से यह ताड़ लेते हैं कि सिर भले ही ‘हां’ की मुद्रा में हिलाया जा रहा हो पर उसका वास्ताविक संदेश ‘ना’ है या फिर ‘ना’ का आशय ‘हां’…
इंसानों में बढ़ती उम्र के साथ एक बीमारी होती है जिसे डॉक्टरी भाषा में पार्किंसंस डिसीज कहा जाता है। इसके रोगी के अंग ज्यादातर हिलते ही रहते हैं, इनमें भी गरदन या सिर का हिलना बहुत आम बात है। आज देश में ऐसे लोगों की तादाद कुछ ज्यादा ही हो चली है जिनके सिर बस हिलते ही रहते हैं।
दिक्कत यह है कि इधर हम बस सिर हिला रहे हैं और उधर सामने वाले हमारी इस आदत का फायदा उठाकर इसे अपनी गलत हरकतों पर सहमति की मुहर मानकर इस्तेमाल करते जा रहे हैं। इसलिए वक्त आ गया है कि सिर हिलाने के बजाय हम जबान हिलाएं… मेरे प्रिय शायर साहिर लुधियानवी ने लिखा है- सर झुकाने से कुछ नहीं होगा/ सर उठाओ तो कोई बात बने…
मैं कहना चाहूंगा-
सिर हिलाने से कुछ नहीं होगा, सिर खपाओ तो कोई बात बने…
और हां, इस बात को यहां खत्म न समझें… आगे कुछ और आदतों पर भी बात करेंगे…