राकेश अचल
सचमुच दुनिया के सामने एक बड़ी चुनौती है। कोरोना को कुछ लोग भले ही एक अंतर्राष्ट्रीय साजिश का हिस्सा मानते हों लेकिन हकीकत ये है कि कोरोना का आतंक अनेक प्रतिरोधी टीके आने के बाद भी कम नहीं हुआ है। कोरोना सुरसा के मुंह की तरह विज्ञान की कोशिशों के सामने अपना आकार बढ़ाता चला जा रहा है। भारत के संदर्भ में कहें तो कोरोना अगले दो महीने में एक बार अपना आतंक मचाएगा और कोई 25 लाख से अधिक लोग इसकी गिरफ्त में आ सकते हैं।
सवाल ये है कि जब विज्ञान ने कोरोना (कोविड-19) के गुण-सूत्र पहचान कर प्रतिरोधी वेक्सीन खोज निकाली है तब भी कोरोना का प्रसार क्यों हो रहा है? क्या आने वाले दिनों में कोरोना हमारे समाज की रीढ़ को तोड़कर ही मानेगा? दुनिया की दूसरी बड़ी आबादी वाले देश भारत के लिए तो कोरोना अब सबसे बड़ा संकट बनता जा रहा है। कोरोना को एक साल हो चुका है। अब तक के आंकड़े बताते हैं कि कोरोना दुनिया के 12 करोड़ से ज्यादा लोगों के शरीर में अपना घर बना चुका है। और 27 लाख से ज्यादा लोगों के शरीर को मिटटी में मिला चुका है।
विज्ञान के आगे कोरोना की ताकत कम तो हुई लेकिन खत्म नहीं हुई। विज्ञान ने कोरोना के मुंह से 10 करोड़ लोगों को बाहर भी निकाला लेकिन अभी भी 2 करोड़ से ज्यादा लोग इसका सितम सह रहे हैं, इनमें से भी करीब 92 हजार लोगों की दशा गंभीर बनी हुई है। दुनिया के 219 देशों में पसरे कोरोना से परेशान देशों में अमेरिका आज भी पहले स्थान पर है। अमेरिका में सबसे ज्यादा 559160 लोग मारे जा चुके हैं। दूसरे स्थान पर ब्राजील ने तीन लाख से ऊपर और तीसरे स्थान पर भारत ने 1.60 लाख लोगों के प्राण गंवाए हैं।
कोरोना के टीके के आविष्कार और इस्तेमाल के चलते हुए दूसरे दौर में अमेरिका में 641 और भारत में 257 और मौतें हुईं हैं सौ से अधिक देशों में कोरोना रूप बदलकर अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहा है। जाहिर है कि कोरोना की प्रतिरोधी दवा के जन-जन तक पहुँचने में काफी समय लगेगा और यदि इस बीच जरूरी एहतियात न बरती गयी तो फिर से दुनिया को इसके दुष्परिणाम भोगना पड़ सकते हैं।
भारत में हाल में जारी की गयी एक रिपोर्ट ने चिंता और बढ़ा दी है। एक नामचीन्ह संस्था की रिसर्च टीम द्वारा तैयार की गई इस रिपोर्ट में दावा किया गया है कि कोरोना की दूसरी लहर लगभग 100 दिनों तक रहेगी। मई तक इसका असर बना रहेगा। 23 मार्च के ट्रेंड को आधार मानकर रिपोर्ट में कहा गया है कि दूसरी लहर से तकरीबन 25 लाख से अधिक लोग कोरोना संक्रमित हो सकते हैं। 28 पेज की रिपोर्ट में कहा गया है कि लोकल लेवल पर लॉकडाउन का असर नहीं होता इसलिए मास लेवल पर वैक्सीनेशन ही इसका एकमात्र उपाय है। अप्रैल के तीसरे हफ्ते से लेकर मई के मध्य तक देश में कोरोना का पीक हो सकता है।
रिपोर्ट में इस बात पर भी जोर दिया गया है कि राज्यों में टीकाकरण की प्रक्रिया में तेजी लाने की जरूरत है। अगर वर्तमान समय की रोजना टीकाकरण की गति को 34 लाख से बढ़ाकर 40-45 लाख किया जाए तो तीन से चार महीने में 45 साल से ऊपर के लोगों को पूरी तरह से वैक्सीनेट किया जा सकता है। कोरोना की बरसी के पहले एक दिन में दूसरी लहर के दौरान सबसे ज्यादा 53, 476 नए मामले सामने आए हैं। ये आंकड़े पिछले पांच महीने में सबसे अधिक हैं। स्वास्थ्य मंत्रालय ने बताया कि देश के 18 राज्यों में डबल म्यूटैंट वैरियंट पाया गया है।
आईसीएमआर के डायरेक्टर जनरल बलराम भार्गव मानते हैं कि कोरोना की दूसरी लहर समय से पहले आ गई है। इसलिए हम सबको सचेत रहने की जरूरत है। ज्यादा से ज्यादा टेस्ट कराए जाएं, मास्क लगाना आवश्यक है, साथ ही टीकाकरण जल्द से जल्द पूरा किया जाना चाहिए। कोरोना के टीके लगवाना सरकार का काम है लेकिन टीकों का इस्तेमाल करने के साथ ही जरूरी एहतियात बरतना जनता की जवाबदेही है।
कोरोना को लेकर दुनिया में एक तरफ आतंक है तो दूसरी तरफ लापरवाही भी है। कोरोना की सबसे ज्यादा मार झेलने वाले अमेरिका तक में लोग लगातार लापरवाह बने हुए हैं। मैं बीते दो महीने से अमेरिका में इस लापरवाही के दर्शन कर रहा हूँ। लापरवाही के मामले में हम भारत वाले मुमकिन है कि दुनिया में पहले नंबर पर हों, क्योंकि हमारे यहां अव्वल तो भीड़ ज्यादा है और इंतजाम कम, फिर भी एहतियात बरत कर कोरोना से जंग जीती जा सकती है। अमेरिका में जहां 95 प्रतिशत से अधिक लोगों के पास निजी वाहन हैं वहां लापरवाही आश्चर्यजनक है। जबकि भारत में जहाँ अभी भी सत्तर फीसदी आबादी सार्वजनिक परिवहन के भरोसे है वहां तो लापरवाही जानलेवा हो ही जाएगी।
कोरोना का टीका कोरोना के रंग को फीका इसलिए भी नहीं कर पा रहा क्योंकि इस टीके को लेकर तमाम तरह के भ्रम, अफवाहें और कहानियां वायरल होती रहतीं हैं। कभी खबर आती है कि तंजानिया के राष्ट्रपति को कोरोना समर्थक लॉबी ने पोल खोले जाने के डर से मार दिया तो कभी खबर आती है कि कोरोना के टीके लगवाने के बाद हुए रिएक्शन में अनेक लोग जान गंवा बैठे, किसी को खून के थक्के जम गए तो किसी को दिल का दौरा पड़ गया। सरकार इस तरह के वातावरण पर रोक नहीं लगा पा रही है। भारत में और अमेरिका में लगाए जाने वाले टीकों के बाद साइड इफेक्ट नगण्य हैं, फिर भी लोग टीका लगने से बचना चाहते हैं। लेकिन जो जागरूक हैं वे बढ़-चढ़कर टीकाकरण में सहयोग कर रहे हैं।
यहां एक बात स्पष्ट कर देना जरूरी है कि टीका लग जाना कोरोना के दोबारा न होने की गारंटी नहीं है। टीका लगवाने के बाद भी आपको इसे छूत की बीमारी मानकर सभी एहतियात तो बरतना ही होंगे। टीका कोरोना का रास्त बाधित कर सकता है लेकिन बिना आपके सहयोग के आपको रोग मुक्ति का प्रमाणपत्र नहीं दे सकता। मुमकिन है आने वाले दिनों में ऐसे टीके भी हमारे हाथ में आ जाएँ जो कोरोना से हमें सौ फीसदी सुरक्षित बना दें। लेकिन ऐसा होने तक हमें न अपना मास्क त्यागना चाहिए और न दो गज की दूरी के नियम से पीछे हटना चाहिए। बाकी मर्जी है आपकी क्योंकि शरीर है आपका।