जेबकतरा बनने के साथ साथ रफूगर बनना भी सीखें

खबर आई है कि रसोई गैस के बाद अब केंद्र सरकार रेलवे के टिकटों पर भी सब्सिडी छोड़ने का विकल्‍प देने जा रही है। शुरुआत में इस ‘गिव अप स्कीम’ के तहत उन लोगों को चिह्नित किया जाएगा जो सब्सिडी छोड़ने की इच्छा रखते हैं। रेलवे बोर्ड के सूत्रों के मुताबिक, रेल मंत्री सुरेश प्रभु जल्‍दी ही इस योजना का ऐलान कर सकते हैं।

रेलवे को यह आइडिया फरीदाबाद के अवतार कृष्ण खेर से मिला है। खेर ने आईआरसीटीसी की वेबसाइट के जरिए रेल टिकट बुक कराया था। जब उन्होंने टिकट का प्रिंट लिया तो उसमें लिखा हुआ था कि, ‘क्या आप जानते हैं कि आपके किराए का 43 फीसदी देश के आम नागरिक वहन करते हैं।’

इसके बाद खेर ने अपने टिकट पर मिली सब्सिडी के बदले में 950 रुपए का चेक बनाकर रेलवे को भेज दिया। और मंत्रालय को लिखा कि वे आर्थिक रूप से सक्षम हैं इसलिए सब्सिडी नहीं चाहते। उनके इस पत्र पर रेल मंत्री सुरेश प्रभु को एलपीजी की तर्ज पर रेलवे किराये में सब्सिडी छोड़ने का ऑप्शन देने का आइडिया आया। रेलवे को यात्री किराए पर सब्सिडी से सालाना 35000 करोड़ रुपए का बोझ उठाना पड़ रहा है। इसकी भरपाई मालभाड़े से की जाती है।

दरअसल संपन्‍न लोगों से सरकारी मदद या अनुदान का लाभ छोड़ने की अपील खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने की थी। सबसे पहले उन्‍होंने ही लोगों से आग्रह किया था कि वे रसोई गैस पर मिलने वाली सबसिडी छोड़ें ताकि उन लोगों तक ईंधन की यह आधुनिक सुविधा पहुंचाई जा सके जो आज भी खाना पकाने के लिए अपनी जिंदगी को चूल्‍हे के धुंए में झोंक रहे हैं।

प्रधानमंत्री की अपील का असर यह हुआ कि अब तक एक करोड़ 60 लाख लोग रसोई गैस पर सबसिडी लेना बंद कर चुके हैं। बाद में केंद्र सरकार ने 144 करोड़ की बचत से उज्‍ज्‍वला योजना शुरू की जिसके तहत बीपीएल कार्ड वाले परिवारों को फ्री गैस कनेक्शन दिए जा रहे हैं। लेकिन जिस योजना की शुरुआत ऐच्छिक रूप में हुई थी बाद में सरकार ने उसे वैधानिक दर्जा दे दिया और 10 लाख रुपए सालाना से अधिक आय वाले परिवारों को गैस सब्सिडी देना बंद कर दिया।

गैस सबसिडी के अनुभव को देखते हुए इस बात की पूरी संभावना है कि रेल टिकट पर सबसिडी छोड़ने का विकल्‍प देने की योजना भी आगे चलकर वैधानिक रूप ले ले और सरकार कह दे कि दस लाख रुपए से ज्‍यादा की सालाना आय वालों को रेल टिकट वास्‍तविक दाम पर खरीदना होगा। इसके लिए टिकट खरीदते समय आपसे अपनी आय का प्रमाण या इनकम टैक्‍स रिटर्न की कॉपी भी मांगी जा सकती है। सरकार आधार कार्ड को आयकर रिटर्न का आधार बना ही चुकी है, हो सकता है उसे इस प्रक्रिया से सीधे जोड़ दिया जाए और टिकट बुक कराते समय आपके आधार नंबर से जुड़ी जानकारी लेकर कंप्‍यूटर खुद ही आपके टिकट के दाम आपकी आय के अनुसार तय कर दे।

पहली नजर में इस बात में कोई बुराई नजर नहीं आती कि जो लोग सक्षम और संपन्‍न हैं वे उन सुविधाओं का लाभ क्‍यों उठाएं जो मूलत: गरीबों और वंचितों के लिए हैं। ऊपरी तौर पर यह एक अलग तरीके का समाजवाद है जो अमीरों से लेकर गरीबों में बांटने का आभास देता है। रसोई गैस के मामले में आंशिक ही सही लेकिन जो सफलता मिली है उसने सरकार को बाकी क्षेत्रों में भी इसे लागू करने के लिए प्रोत्‍साहित किया होगा।

पिछले कुछ समय से देखने में आ रहा है कि सरकार अपने खजाने की स्थिति को लेकर काफी सक्रिय है। चाहे वह सबसिडी खत्‍म करने का मामला हो या जीएसटी जैसी एकीकृत कर योजना को लागू करने का। हर तरफ से प्रयास किए जा रहे हैं कि सरकारी खजाने को और कैसे मजबूत किया जाए। लेकिन इस पैसे को सरकार कब, कहां और कैसे खर्च करेगी उसका ब्‍ल्‍यू प्रिंट सामने आना चाहिए।

क्‍या सरकार इस बात को पूरे दावे के साथ कह सकती है कि टैक्‍स देकर या सबसिडी छोड़कर जो पैसा लोग सरकारी खजाने के लिए दे रहे हैं उसका सिर्फ और सिर्फ सदुपयोग ही हो रहा है? आज भी सरकारों के खर्चे और तामझाम बताते हैं कि जनता की गाढ़ी कमाई का पैसा किस तरह लुटाया जाता है। यदि सरकार इस मामले को इतना ही जरूरी मानती है तो ऐसा क्‍यों नहीं करती कि अपनी पार्टी भाजपा से कहे कि उसके जितने भी सदस्‍य हैं वे किसी भी प्रकार की कोई सबसिडी नहीं लेंगे।

खुद भाजपा का दावा है कि देश भर में उसके दस करोड़ से ज्‍यादा सदस्‍य हैं। इनमें बड़ी संख्‍या में ऐसे लोग होंगे जिनकी आय दस लाख रुपए सालाना से अधिक हो। जनता की छोड़ें,खुद अपनी पार्टी के इन सदस्‍यों को ही मना लें कि वे सारी सबसिडी छोड़ दें। इससे ही एक मोटी रकम सरकारी खजाने को बैठे बिठाए मिल सकती है। ऐसा करके आप राजनीति में नैतिकता का एक उदाहरण भी पेश कर सकेंगे।

सबसे मोटी बात यह है कि सरकार लोगों की जेब से पैसा निकलवाने की तो ढेरों योजनाएं ला रही है, कई कायदे कानून बना रही है, लेकिन लोगों की आमदनी बढ़े, उन्‍हें रोजगार मिले इस पर कोई ठोस काम नहीं हो रहा। सरकारों का काम केवल लोगों की जेब काटना ही नहीं जेब से सरक जाने वाले पैसे को रोकने के लिए उनकी फटी जेब को रफू करना भी है। जो लोग अपनी मेहनत से कमा रहे हैं वे कोई अपराध नहीं कर रहे। वे आपको टैक्‍स भी देते हैं।

आप जो सबसिडी दे रहे हैं वह भी आपकी जेब से नहीं बल्कि उसी टैक्‍सपेयर के पैसे से भरने वाले खजाने से ही जाती है। यानी एक तरह से वह अपना योगदान तो कर ही रहा है। आप तो गोरक्षक, गोपालक हैं, अच्‍छी तरह जानते होंगे कि एक ही गाय से सुबह शाम सौ लीटर दूध निकालने की कोशिश होगी तो क्‍या गाय जिंदा रह पाएगी?

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