वो फिल्म तो नहीं चली लेकिन उसका यह गाना जरूर चल रहा है। मैं बात कर रहा हूं रणबीर कपूर और उनकी पूर्व प्रेमिका कटरीना कैफ की फिल्म ‘जग्गा जासूस’ की। इसमें अमिताभ भट्टाचार्य ने इसी मुखड़े से गाना लिखा है- यही उमर है कर ले गलती से मिस्टेक… !!! नए जमाने का गाना है इसलिए इसमें हिन्दी अखबारों की खबरों की तरह अंग्रेजी की जमकर घाल-घुसेड़ हुई है। लेकिन अभी छोडि़ए उस बात को…
मुझे यह मुहावरा –गलती से मिस्टेक- बहुत पसंद आया। हमारे मालवा में जैसे लोग कहते हैं- ‘सुबे सुबे मार्निंग वॉक’, ‘सिर में हेडेक’, ‘फलफ्रूट का नाश्ता’ ‘आम का मेंगो शेक’, ‘गेट का दरवाजा’… उसी तरह यह ‘गलती से मिस्टेक…’ मजेदार है…
तो गलती से यह मिस्टेक (वैसे इसे मिश्टेक बोला जाता तो और ज्यादा मजेदार होता) मुझे सरकार के आधार कार्ड वाले प्रसंग से याद आई। शनिवार को अखबारों ने खबर छापी कि एक अक्टूबर से देश में मृत्यु प्रमाण पत्र (जो लोग ‘अंग्रेजी’ न समझते हों उनके लिए बता दूं कि हिन्दी में इसे ‘डेथ सर्टिफिकेट’ कहते हैं) जारी करने के लिए मृतक का आधार कार्ड भी मांगा जाएगा। यदि मृतक का आधार कार्ड नहीं है तो उसके जीवन साथी या माता पिता का आधार नंबर देना होगा। या फिर मृत्यु प्रमाण पत्र का आवेदन करने वाले को यह लिखकर देना होगा कि मेरी जानकारी के अनुसार मृतक का आधार कार्ड नहीं बना।
सरकार का कहना है कि मृत्यु प्रमाण पत्र को आधार कार्ड से जोड़ने से, किसी व्यक्ति की मृत्यु के बाद उसकी पहचान को लेकर होने वाली धोखाधड़ी रोकी जा सकेगी। सरकार ने यह भी स्पष्ट किया है कि मृत्यु प्रमाण पत्र के लिए आधार कार्ड अनिवार्य नहीं है। लेकिन इसकी जानकारी मिल जाने से यह होगा कि मृतक के परिवार को उसके क्लेम आदि लेते समय पहचान संबंधी ढेर सारे दस्तावेज जमा करने से मुक्ति मिल जाएगी।
ऊपरी तौर पर सुनने में यह बहुत अच्छा लगता है, लेकिन मुझे लगता है, आधार कार्ड को इस मामले के साथ जोड़ने से सुविधा के साथ साथ कई परेशानियां भी खड़ी होंगी। और सबसे बड़ी परेशानी हमारी व्यवस्था में हर प्रमाण पत्र पाने और उसके लिए जरूरी दस्तावेज जमा कराने की प्रक्रिया में मांगी जाने वाली रिश्वत की है। अभी भी कई सारे दस्तावेजों को जमा कराते समय मृतक के परिवारों के सामने सबसे बड़ा सवाल यह होता है कि संबंधित अफसर उन्हें कितना मंजूर करेगा? या मंजूर करेगा भी कि नहीं। अभी तो आम लोगों द्वारा जमा कराए जाने वाले जायज दस्तावेज भी आमतौर पर बिना मुट्ठी गरम किए स्वीकार्य नहीं होते।
तो आधार कार्ड का जिस तरह से हौवा बनाया जा रहा है, उसके चलते यह रिश्वत वसूलने का बहुत बड़ा आधार बन सकता है। और ‘मरता क्या न करता’ की तर्ज पर मृतक के क्लेम आदि लेने के लिए संबंधित परिवार को इस रकम की अदायगी करनी ही पड़ेगी। आप लाख कह दें कि ऐसे मामलों में भ्रष्ट लोगों पर सख्त कार्रवाई होगी, लेकिन यह सब कहने की बातें हैं, सख्ती वख्ती जैसी चीज यथार्थ में होती नहीं, वहां तो तख्त पर बैठे आदमी के रेट की तख्ती ही चलती है। आपको याद होगा ‘सारांश’ फिल्म का वह कालजयी दृश्य जिसमें अनुपम खेर विदेश से आई अपने बेटे की अस्थियां लेने जाता है और कस्टम अधिकारी समझता है कि वह कोई‘इम्पोर्टेड’ माल छुड़ाने आया है। इस फिल्म में अनुपम खेर ने यादगार रोल किया था। उनका संवाद है- ‘मैं यहां टीवी लेने नहीं, अपने मरे हुए बेटे की चिता की राख लेने आया हूं। क्या मैं बेटे की अस्थियों के लिए भी घूस दूं?’
वैसे आधार कार्ड का दायरा सरकार जिस तरह से लगातार बढ़ा रही है, उसके चलते अब तो कल्पना करना भी मुश्किल होता जा रहा है कि हमारे जीवन का ऐसा कौनसा क्षेत्र बचेगा जो बिना आधार के भी चल सकेगा। ऐसा लगता है कि जीता जागता आदमी भले ही सामने खड़ा हो, लेकिन अफसर उसे तभी जिंदा मानेंगे जब वह अपना आधार कार्ड बता दे। वास्तविक अस्तित्व आधार कार्ड का होगा और जीता जागता इंसान ‘वर्चुअल या आभासी’ दुनिया का जीव माना जाएगा।
सरकार के ताजा आदेश से एक और सवाल मन में कौंधा, कि आगे चलकर कहीं सरकार मृत्यु के साथ जन्म के मामलों में भी आधार कार्ड को अनिवार्य न बना दे। मसलन कोई माता-पिता तभी संतान पैदा कर सकेंगे यदि उनके पास आधार कार्ड हो। पंडित शादी करवाते समय आपका आधार कार्ड पूछेगा और यजमान उसी पंडित से शादी करवाएंगे जिसके पास आधार कार्ड हो। शादी के कार्ड में भी लड़के और लड़की के आधार कार्ड का नंबर देना अनिवार्य होगा, वरना वह शादी अवैध मानी जाएगी। कुंडली मिलान करने के बजाय परिवार लड़के और लड़की के आधार कार्ड का मिलान करवाया करेंगे। ऐसे बहुत से और मंजर सामने आ सकते हैं।
हो सकता है आपको ट्रेन अथवा बस में यात्रा करते समय या प्लेटफार्म व बस अड्डे पर ट्रेन/बस का इंतजार करते समय टाइम पास, सफर पास मूंगफली खाने का मन हो और जब आप मूंगफली वाले के पास जाएं तो वो पूछ ले आधार कार्ड तो है ना… आपको जूता पॉलिश करवाना हो, तो मोची आपसे पहले आपका आधार कार्ड मांग ले…. और आपसे ही क्यों, हो सकता है वह आपके जूते का भी आधार कार्ड मांग बैठे…
इसलिए भैया, यदि आपने अभी तक आधार कार्ड नहीं बनवाया हो तो आज और अभी दौड़ जाएं… गलती से ही सही पर ये मिस्टेक जरूर कर लें,वरना आनंद फिल्म के डॉयलाग की तर्ज पर कोई कह बैठेगा- ‘’ बाबू मोशाय! जिंदगी और मौत आधार कार्ड के हाथ है जहांपनाह, जिसे न आप बदल सकते हैं, न मैं। हम सब आधार कार्ड की कठपुतलियां हैं, जिनकी डोर उसी के हाथों में है। कब, कौन, कैसे आधार कार्ड की वजह से, कहां अटक जाएगा, कोई नहीं जानता… हा हा हा हा।