जाहि बिधि राखे शाह, ताहि बिधि रहिए… 

जिन तीन दिनों यानी 18 से 20 अगस्‍त तक भारतीय जनता पार्टी के अध्‍यक्ष अमित शाह भोपाल में थे, मैं उन्‍हीं तीन दिनों में भोपाल से बाहर ओरछा में था। ओरछा में ‘विकास संवाद’ ने ‘मीडिया, बच्‍चे और असहिष्‍णुता’ पर तीन दिन का राष्‍ट्रीय मीडिया संवाद आयोजित किया था। उस संवाद में क्‍या हुआ उस पर हम आने वाले दिनों में बात करेंगे। लेकिन आज बात उन्‍हीं तीन दिनों में हुए माननीय अमित जी शाह के भोपाल दौरे को लेकर…

इसे संयोग ही कहिए कि ओरछा के राष्‍ट्रीय संवाद में भी मीडिया शामिल था और भोपाल में अमित शाह के दौरे के दौरान भी मीडिया ही सुर्खियों में रहा। ओरछा से आकर जब मैंने उन तीन दिनों के अखबार देखे तो बहुत दिलचस्‍प और मजेदार बातें सामने आईं। लगा कि हम मीडिया वाले अपने आपको लाख तुर्रम खां समझते हों लेकिन वर्तमान राष्‍ट्रीय राजनीतिक परिदृश्‍य के संचालनकर्ता हमें कितना बेवकूफ समझते हैं। (वैसे बेहतर होगा आप यहां ‘बेवकूफ’ के बजाय वह लोक प्रचलित शब्‍द ही पढ़ें जो थोड़ा असंसदीय होने के कारण मैं नहीं लिख रहा हूं।)

किस्‍सा यह है कि भोपाल दौरे में 19 अगस्‍त को मीडिया से मुखातिब होते हुए अमित शाह जब यह कह रहे थे कि किसी ने आपको ‘मूर्ख’ बनाया होगा या कि मैंने ही अपने लोगों से कहा था कि आप लोगों को गलत जानकारी दें, तो वे न सिर्फ मीडिया को उसकी औकात बता रहे थे, बल्कि बहुत ही चतुराई से यह भी इंगित कर रहे थे कि भाजपा कैसे इन दिनों मीडिया को अपने इशारों पर नचा रही है।

जिन लोगों को उस प्रेस कान्‍फ्रेंस में हुई घटना का पता नहीं, उनके लिए बता दूं कि अमित शाह ने प्रेस कान्‍फ्रेंस में मीडिया को ठीक ठाक अंदाज में हड़काया। किसी ने उनसे पूछा कि आपने तो कहा था कि पार्टी की बैठकों की जानकारी बाहर नहीं जानी चाहिए तो फिर खबरें बाहर कैसे आ गईं? पहले तो शाह बोले- जिन खबरों का आप जिक्र कर रहे हैं उन्‍हें लेकर किसी ने आपको मूर्ख बनाया होगा। फिर उन्‍होंने कहा, हमने ही अपने लोगों से कहा था कि आप लोगों को गलत जानकारी दें और (ऐसा करके) हम अपनी बात की गोपनीयता बनाए रखने में कामयाब रहे हैं।

लेकिन शायद अमित शाह की रणनीति का ‘क्‍लाइमेक्‍स‘ अभी बाकी था। 21 तारीख को राजधानी के तमाम अखबारों में यह खबर छपी कि कोर ग्रुप की बैठक में 75 साल की उम्र पार कर चुके नेताओं को चुनाव न लड़वाने और मध्‍यप्रदेश में इस पकी उम्र को पा चुके दो नेताओं बाबूलाल गौर व सरताजसिंह को मंत्रिमंडल से हटाने का मामला भी उठा। खबरें कहती हैं कि अमित शाह ने इस पर पूछा कि यह 75 साल के फार्मूले की बात किसने उड़ाई, मैंने तो कभी ऐसा नहीं कहा। जब सबके चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगीं तो राष्‍ट्रीय संगठन महामंत्री रामलाल बोले- मैंने ही कहा था कि 75 वर्ष से अधिक उम्र के नेताओं को अब विश्राम दिया जाए।

मुझे लगता है कि यह खबर छपवा कर अमित शाह और उनकी टीम ने ऐलानिया तौर पर न सिर्फ मीडिया को ‘महामूर्ख’ साबित कर दिया बल्कि यह भी स्‍थापित कर दिया कि मीडिया को नचाने के लिए अब तो उन्‍हें उंगली हिलाने की भी जरूरत नहीं है, उंगली के इशारे भर से ही मीडिया भाजपा की मनचाही कोरियोग्राफी पर परफॉर्म करने को तैयार है।

मीडिया भले ही मानता हो कि कोर ग्रुप में 75 साल के फॉर्मूले को लेकर हुई चर्चा, उस पर आई अमित शाह की प्रतिक्रिया और बाद में बाबूलाल गौर व सरताज सिंह के गिले शिकवे की खबर छापकर उसने बड़ा तीर मार लिया है, लेकिन मेरी सामान्‍य बुद्धि कहती है कि शाह एक बार फिर तबीयत से मीडिया के मजे लेकर चले गए।

आप ही सोचिए… जिस पार्टी में अमित शाह और नरेंद्र मोदी की आंख के इशारे के बिना लोग नित्‍यक्रिया तक न कर पाते हों, वहां कोई रामलाल या शिवराजसिंह क्‍या अपने बूते पर इतना बड़ा फैसला कर लेंगे कि बाबूलाल गौर और सरताजसिंह जैसे वरिष्‍ठ मंत्रियों को मंत्रिमंडल से बाहर का रास्‍ता दिखा दें। जरा याद कीजिए वो घटनाक्रम जब इसी मीडिया ने खबरें छापी थीं कि इस्‍तीफा मांगने पर गौर और सरताज ने कैसे बगावती तेवर अपनाए थे और किस तरह पार्टी के केंद्रीय नेतृत्‍व के प्रतिनिधियों ने जाकर उनसे इस्‍तीफे ले लिए थे।

क्‍या यह संभव है कि पार्टी में नेताओं की सांस का भी हिसाब रखने वाले अमित शाह की जानकारी या मर्जी के बिना यह मुमकिन हो गया होगा? क्‍या यह संभव है कि उस मामले को लेकर राष्‍ट्रीय स्‍तर पर उठे बवाल के बावजूद अमित शाह ने उससे संबंधित एक भी खबर देखी या पढ़ी न हो। और चलो मान भी लिया कि अमित शाह को खबरें देखने या पढ़ने का वक्‍त नहीं मिलता या कि वे खबरों पर ध्‍यान देना समय की बरबादी समझते हैं, लेकिन क्‍या हर समय मुस्‍तैद रहने वाले और अपने आका को पल-पल की जानकारी देने वाले उनके सचिवालय ने भी पार्टी शासित एक महत्‍वपूर्ण राज्‍य में हो रही इतनी बड़ी राजनीतिक उठापटक से उन्‍हें अवगत नहीं कराया होगा?

निश्चित तौर पर ऐसा नहीं हुआ होगा। बेवकूफ बना मीडिया आज भले ही यह खबरें छाप दे कि शाह ने पूछा कि 75 साल का फैसला किसने किया, लेकिन मैं यह मानने को तैयार ही नहीं हूं कि यह फैसला अमित शाह की सहमति या जानकारी के बिना हो गया होगा।

इसलिए मेरा परामर्श है कि जिसका नाम ‘अमित शाह’ है उसे कच्‍चा खिलाड़ी समझने की भूल मीडिया को कतई नहीं करनी चाहिए। मीडिया ने अब तक कितने ही नेताओं को चलाया और नचाया होगा, लेकिन पहली बार कोई सवा सेर मिला है, जो मीडिया को अपनी आंख के कोर की हरकत से ही नचा नचा कर निढाल किए हुए है। इस चतुर रणनीति के लिए भाजपा अध्‍यक्ष के नाम तालियां तो बनती ही हैं। इसके साथ ही यह भी पता लगाने की जरूरत है कि कहीं यह ‘बयान’ किसी अहम् बात से मीडिया का ध्‍यान भटकाने की सोची समझी चाल तो नहीं है?

 

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