राकेश अचल
आजकल देश में नया इतिहास रचने की होड़ लगी है। सब अपने-अपने तरीके से इतिहास रच रहे हैं। किसानों ने सबसे लंबा आंदोलन चलाकर इतिहास रच दिया तो सरकार ने किसानों की सबसे ज्यादा उपेक्षा का इतिहास रचा है। प्रधानमंत्री जी ने खेलरत्न से राजीव गाँधी का नाम हटाकर इतिहास रचा तो हरियाणा के खट्टर साहब ने लाठीचार्ज कराने का इतिहास रच दिया। शहरों का नाम बदलने का इतिहास योगी आदित्यनाथ के नाम पहले से है। मध्यप्रदेश में चिकित्सा छात्रों को हेडगवार और उपाध्याय पढ़ाने के अलावा कुलपति पद को कुलगुरु करने का इतिहास रचा गया है, लेकिन ये ऐसे इतिहास हैं जो आगे-पीछे इतिहास के कूड़ादान में ही जायेंगे। कालजयी इतिहास लिखने के लिए जसप्रीत बुमराह या नीरज ही बनना पड़ता है।
मुझे क्रिकेट का शौक भी कम है और उसकी शब्दाबली भी कम ही जानता हूँ, लेकिन जब कोई इस खेल में इतिहास रचता है तो मुझे रोमांच होता है। खुशी से आखें सजल हो जाती हैं। मैंने अपने शहर ग्वालियर में अनेक इतिहास बनते-बिगड़ते देखे हैं। क्रिकेट के अनेक इतिहास ग्वालियर के नाम हैं। हाल ही में इंग्लैंड के खिलाफ 5 टेस्ट मैचों की सीरीज खेल रही भारीतय क्रिकेट टीम के युवा तेज गेंदबाज जसप्रीत बुमराह ने भारत के लिए एक ऐसा रिकॉर्ड बना दिया है जो बड़े-बड़े गेंदबाज बनाने में नाकाम रहे हैं। बुमराह भारत के लिए टेस्ट क्रिकेट में सबसे तेज 100 विकेट लेने वाले तेज गेंदबाज बन गए हैं। बुमराह ने ये कारनामा सिर्फ 24 टेस्ट मैच में कर दिखाया है। उनसे तेज आज तक कोई भी ये कमाल नहीं कर पाया है। इस मामले में बुमराह ने बड़े-बड़े गेंदबाजों को पीछे छोड़ दिया है।
एक जमाने में मुझे क्रिकेटर के रूप में कपिलदेव बहुत जंचते थे। मेरी उनसे मुलाकातें भी हुईं। वे बड़े मस्त इंसान हैं लेकिन बुमराह ने सबसे तेज 5 विकेट लेने वाले टीम इंडिया के पूर्व कप्तान और मेरे हीरो कपिल देव को भी पीछे छोड़ दिया है। कपिल देव ने 100 विकेट 25 टेस्ट मैचों में हासिल किए थे। इसके अलावा इरफान पठान ने 100 विकेट 28 मैचों में, मोहम्मद शमी ने 29 मैचों में, जावागल श्रीनाथ ने 30 और इशांत शर्मा ने 33 मैचों में हासिल किए थे। लेकिन अब जसप्रीत बुमराह इन सभी दिग्गज गेंदबाजों से आगे हैं।
क्रिकेट के इतिहास में नया पन्ना जोड़ने के लिए इंग्लैंड के खिलाफ चौथे टेस्ट मैच में बुमराह ने इंग्लैंड के ऑली पोप को बोल्ड किया। खास बात ये रही कि बुमराह ने अपना पहला और 100वां विकेट बोल्ड के जरिए ही लिया। बुमराह ने अपना पहला टेस्ट विकेट महान बल्लेबाज एबी डिविलियर्स को बोल्ड कर के ही लिया था। जसप्रीत ने नया इतिहास रचने के लिए न किसी का नाम विलोपित किया और न कोई अदावत दिखाई, केवल एक बड़ी लकीर खींच दी जो पहले की लकीर से बड़ी है। इस उपलब्धि के लिए जसप्रीत से मुझे प्रीत हो गयी है।
दुर्भाग्य ये है कि राजनीति और नौकरशाही के अलावा विधायिका और न्यायपालिका में खेल मैदानों की तरह नए इतिहास नहीं रचे जा रहे। जो रचे जा रहे हैं वे स्वर्ण अक्षरों में नहीं रचे जा रहे हैं। कुछ के अक्षर खूनआलूदा हैं और कुछ के शर्म-आलूदा। लेकिन सबकी अपनी-अपनी पसंद है। सब जसप्रीत तो नहीं हो सकते। दरअसल आप जब इतिहास देश और दुनिया के लिए रचते हैं तो वो इतिहास अपने स्वर्णाक्षरों से चमकता है, लेकिन जब यही काम केवल और केवल अपना नाम चमकाने के लिए करते हैं तो इन्हीं अक्षरों में से कभी खून और कभी शर्म टपकने लगती है। मसलन कोई गाय को लेकर कुछ निर्देश दे डाले, तो कोई जीते जी अपने नाम पर कोई स्टेडियम लिखा ले। ऐसे अनेक इतिहास लिखे गए, आज तो ऐसे इतिहासों का युग है ही, आगे भी ऐसे इतिहास लिखे जायेंगे, लेकिन पढ़े और याद वे ही किये जायेंगे जो जसप्रीत ने लिखे या गाँधी या नेहरू ने रचे..
आम धारणा है कि हर इतिहास सत्तानोन्मुख होता है। तख्त पर बैठा आदमी जैसा चाहता है, वैसा ही इतिहासकार लिखते हैं। मुगलों और अंग्रेजों के जमाने के इतिहास के बारे में विशेष तौर पर ये बात कही जाती है। ये धारणा अब प्रमाणित हो रही है। आज जिस क्षेत्र में भी (खेल अपवाद हैं) जो भी नया इतिहास लिखा जा रहा है, वो तख्त पर बैठे आदमी की मर्जी का ही लिखा जा रहा है। ऐसा करने से उसे कोई रोक भी नहीं सकता। न संसद रोक सकती है और न अदालत रोक सकती है। तख्त पर बैठे आदमी को जनादेश से ही रोका जा सकता है, लेकिन इसके लिए आपको पूरे पांच साल इंतजार करना पड़ता है।
इतिहास मानिये तो बेहद शुष्क विषय है और न मानिये तो इतना सरस और रोमांचक कि आप बस डूबते ही चले जाएँ। पहले और आज के इतिहास में कोई ख़ास फर्क नहीं है। मैं भी इस बार पूरे साल अविराम और फोकट में लिखने और प्रतिदिन छपने का इतिहास बनाने में जुटा रहा और। इत्तफाक देखिये कि तख्त पर न होते हुए भी मुझे अपने मकसद में कामयाबी मिली। मेरी तरह लोग शहरों, पुरस्कारों के नाम बदलने के साथ ही पाठ्यक्रम तथा पदनाम बदलने के मामले में इतिहास रचने में कामयाब रहे। भारत भाग्य विधाता समझे जाने वाले लोग अन्नदाता से जूझने और काशी को क्योटो बनाने का इतिहास भी लिखने में कामयाब हुए हैं, किन्तु जो इतिहास जसप्रीत और उनकी बिरादरी के लोगों ने रचा है वैसा न नेता लिख पाए और न लेखक, न पत्रकार।
इतिहास साक्ष्यों के साथ ही कल्पनाओं का भी सहारा लेता है, कहीं तथ्य छिपाये जाते हैं तो कहीं उन्हें महिमामंडित भी किया जाता है। इतिहास रचने वाले नायक और खलनायक दोनों होते हैं। इतिहास लिपिबद्ध करने वालों में सब तुलसीदास भी नहीं होते, कुछ चारण और भाट भी होते हैं। ह्वेनसांग और इब्नेबतूता जैसे यायावरों की जमात के हम जैसे लोग भी इतिहास लिखने के काम आते हैं, जिन्हें न माधव से लेना और न केशव को देना होता है। कोई कोरोनाकाल का इतिहासकार कहलाता है तो कोई भक्तिकाल (द्वितीय) का इतिहासकार। लेकिन ये तमाम इतिहास कालजयी और प्रामाणिक नहीं होते, क्योंकि इनके पास खेल के इतिहास की तरह प्रामाणिक आंकड़े नहीं होते।
बहरहाल मैं एक बार फिर जसप्रीत को नया इतिहास रचने के लिए मुबारकबाद देता हूँ और दीगर विषयों का इतिहास लिखने वालों से आग्रह करता हूं कि वे भी खेल के मैदान पर लिखे जाने वाले इतिहास की तरह प्रामाणिक और अदावत, घृणा से मुक्त इतिहास लिखें। यदि ऐसा करना मुमकिन न हो तो इतिहास न लिखें। दुनिया में बहुत से लोग हैं जो बिना इतिहास के भी अपना इतिहास लिख रहे हैं।(मध्यमत)
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