बहुत सारी बातें गायों के संरक्षण और सम्मान को लेकर बहुतेरे लोगों के मुख से और सम्मानित मंचों से सुनते चले आ रहे हैं। लेकिन गऊ माता की जय बोलने वाले आखिर हैं कहां? बीच सड़क पर बैठी गऊ माता के लालों को वो दिखाई क्यों नहीं देती? क्यों दुनिया भर को भारतीय संस्कृति का पाठ पढ़ाने वाले संस्कृति के महान ध्वजवाहकों को सड़क पर आवारा मवेशी की तरह इधर उधर भटकती, कचरों के ढेर पर मुंह मारती या बीच सड़क पर रात बेरात वाहनों की दुर्घटना का कारण बनती गऊ माता नजर नहीं आती? होशंगाबाद की कलेक्टोरेट रोड हो या एनएच69 की रसूलिया रोड हो। पचमढ़ी रोड हो या पहाड़िया रोड। या फिर भोपाल से होशंगाबाद रोड पर बुधनी की मेन रोड हो या सलकनपुर रोड हो, गऊ माता के दर्शन बीच सड़क पर बाधा पहुंचाते हो ही जाते हैं। धर्मभीरू लोग उन्हें किसी भी प्रकार से आहत नहीं करना चाहते, इसलिए अपना रास्ता बनाकर इधर से गऊ माता की जय स्मरण करते हुए निकल जाते हैं।
सड़क पर चलने वाले बड़े वाहन कभी कभी इनकी मौत का कारण बन जाते हैं। और गऊ माता की मौत खबर बन जाती है। ऐसे में इन निरीह प्राणियों को दोष दें या सरकार से बाकायदा लाइसेंस लेकर वाहन चलाने वाले लोगों को अपराधी ठहराएं। गऊ माता के साथ कोई दुर्घटना हो या गऊ माता के कारण कोई मौत के मुंह में चला जाए, तो इसका दोष किसे देंगे? क्या ऐसे में भारतीय संस्कृति के ध्वजवाहकों की जिम्मेदारी नहीं बनती कि वो, जो इनका भरपूर दोहन करने के बाद इन्हें आवारा बना कर छोड़ देते हैं, उन पर कोई कार्रवाई करवाने आगे आएं। सरकार से कोई ठोस व्यवस्था लागू करवाएं ताकि भारतीय संस्कृति की परिचायक, अपने देह में देवी देवताओं को बसाने वाली गऊ माता की इस तरह दुर्गति न हो। यह सवाल बार बार इस धिक्कार के साथ कौंधता है कि गऊ माता की जय बोलने वाले तुम कहां हो?
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(भारत भूषण आर. गांधी स्वतंत्र पत्रकार, सामाजिक कार्यकर्त्ता और व्यक्तित्व एवं संचार कौशल वक्ता हैं)