हम इंतजार करेंगे, आगे भी सिर्फ ‘फैसला’ होगा या ‘न्‍याय’?

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मध्‍यप्रदेश में शिवराज मंत्रिमंडल के विस्‍तार के हो हल्‍ले में एक खबर ऐसी रही जिस पर उतनी चर्चा नहीं हुई, जितनी होनी चाहिए थी। मीडिया ज्‍यादातर इस कयासबाजी में उलझा रहा कि शिवराज मंत्रिमंडल का विस्‍तार कब होगा, होगा भी या नहीं, होगा तो कितने और कौन-कौन लोग मंत्री बनेंगे, क्‍या कुछ पुराने मंत्रियों की छुट्टी होगी और होगी तो किनकी… ये तमाम बातें अखबारों के पन्‍नों से लेकर न्‍यूज चैनलों के स्‍क्रीन तक और उनसे भी ज्‍यादा वाट्सएप के पटिए (मालवी में कहें तो ओटले) पर छाई रहीं।

और इसी गहमागहमी में मुख्‍यमंत्री अस्‍पताल में भरती राज्‍यपाल से मिलकर नए उप लोकायुक्‍त की सहमति ले आए। मंगलवार को प्रदेश के लोकायुक्‍त पी.पी. नावलेकर रिटायर हो गए और नए उप लोकायुक्‍त यूसी माहेश्‍वरी ने शपथ भी ले ली।

लोकायुक्‍त संगठन में फेरबदल के बाद अखबारों में निवर्तमान लोकायुक्‍त और नवनियुक्‍त उप लोकायुक्‍त के जो इंटरव्‍यू छपे हैं, उनमें कुछ बातें बहुत ही गंभीर और गौर करने लायक हैं। सबसे पहले निवर्तमान लोकायुक्‍त की बात। श्री नावलेकर मध्‍यप्रदेश के लोकायुक्‍त पद पर पूरे सात साल रहे। जब उन्‍होंने यहां लोकायुक्‍त की शपथ ली थी तब वे सुप्रीम कोर्ट में जज थे। इन सात सालों में लोकायुक्‍त संगठन ने और स्‍वयं श्री नावलेकर ने काफी उतार चढ़ाव झेले। सबसे बड़ा आरोप लोकायुक्‍त संगठन पर यह लगा कि उसने बड़ी मछलियों या साफ-साफ कहें तो मंत्रियों को बख्‍श दिया।

श्री नावलेकर ने जाते जाते इसका जवाब दिया। उन्‍होंने कहा- ‘’किसी मंत्री का नाम लिख देने से वो दोषी नहीं हो जाता। मैं न्‍याय विभाग से हूं, हम सबूत के आधार पर बात करते हैं। मैं पूछना चाहता हूं उन लोगों से जिन्‍होंने आरोप लगाए, वे लोकायुक्‍त के अलावा कोर्ट क्‍यों नहीं गए?’’

अपने कार्यकाल को चुनौतियों भरा बताते हुए श्री नावलेकर ने कहा- ‘’संगठन के पास फोर्स कम था, लोकायुक्‍त को शिकायत करने के बारे में लोगों में भ्रांतियां थीं और यह पद शुरू से ही विवादों में रहा था। लेकिन उन्‍होंने दावा किया कि हमने 500 रुपए तक के भ्रष्‍टाचार पर कार्रवाई की। राज्‍य सरकार के लगभग डूब चुके, करीब 15 हजार करोड़ रुपयों की वसूली करवाई।‘’

मध्‍यप्रदेश हाईकोर्ट में जज के पद से इस्‍तीफा देकर उप लोकायुक्‍त बने श्री यूसी माहेश्‍वरी ने अपने काम की चुनौतियों के बारे में कहा कि- ‘’आगे का रास्ता कांटों से भरा है। मैं सभी के सहयोग से, विधि के अनुसार काम करूंगा। छोटे-बड़े का भेदभाव नहीं होगा। भावनाओं से न्याय को पराजित नहीं होने दिया जाएगा।‘’ लेकिन सबसे महत्‍वपूर्ण बात जो उन्‍होंने कही वो ये है कि- ‘’न्याय और फैसले में अंतर होता है। मेरा ज्‍यादा जोर न्याय पर होगा।‘’

श्री नावलेकर के इस कथन के पीछे बहुत से संकेत छिपे हैं कि किसी के भी खिलाफ शिकायत दे देने से वह आरोपी नहीं हो जाता, उसे दोषी साबित करने के लिए सबूत भी चाहिए। यदि इस कथन को मंत्रियों पर लागू किया जाए तो, हम कह सकते हैं कि शिकायतें तो थीं पर सबूत नही मिले। यही वह पेच है जिस पर सबसे ज्‍यादा ध्‍यान देने की जरूरत है। लोकायुक्‍त कहने को एक स्‍वतंत्र संस्‍था है कि लेकिन उसके बावजूद सरकार पर उसकी निर्भरता बहुत अधिक है। मामला दर्ज होने के बाद संगठन के जिस तंत्र को सबूत जुटाना होता है वह भी आता सरकार के ही ढांचे से है। तो क्‍या यह उम्‍मीद की जा सकती है कि उसमें काम करने वाले लोग पूरी निष्‍पक्षता और निर्भीकता से उस सरकार के मंत्रियों के खिलाफ कार्रवाई कर सकेंगे जिसके वे कर्मचारी हैं। और फिर सबूत तो सरकार के विभागों से ही जुटाए जाने हैं। क्‍या सरकार अपने ही मंत्रियों या आला अफसरों के खिलाफ सबूत मुहैया कराएगी? और यही होता भी है। न सबूत मिलते हैं और न मंत्री या बड़े अफसर दोषी साबित होते हैं। इससे वह संगठन भी बदनाम होता है जिसका काम ही भ्रष्‍टाचार पर निगरानी रखना और दोषियों को सजा दिलाना है। और फिर सबूत मिल भी जाए तो मुकदमा चलाने के लिए लोकायुक्‍त संगठन को सरकार की ही अनुमति लेनी होती है। भोपाल में कुछ साल पहले हुए देश के लोकायुक्‍तों के सम्‍मेलन में बहुत जोर देकर यह मांग की गई थी कि लोकायुक्‍त संगठनों को पूर्ण स्‍वायत्‍तता दी जानी चाहिए। लेकिन बात बहुत आगे नहीं बढ़ सकी, क्‍योंकि सत्‍ता कभी चाहती ही नहीं कि भ्रष्‍टाचार पर अंकुश लगे।

इसी तरह नए उप लोकायुक्‍त का यह कथन भी ध्‍यान देने योग्‍य है कि न्‍याय और फैसले में अंतर होता है। यानी किसी भी मामले में फैसला भले ही आ जाए, लेकिन जरूरी नहीं कि वह न्‍याय को भी प्रतिबिंबित या स्‍थापित करता हो। न्‍याय के बारे में तो इससे भी आगे चलकर कहा गया है कि- न्‍याय हुआ है सिर्फ यही पर्याप्‍त नहीं है, न्‍याय का होना, लोगों को महसूस भी होना चाहिए।

निवर्तमान लोकायुक्‍त और नवनियुक्‍त उप लोकायुक्‍त के इन कथनों के बीच हम भ्रष्‍टाचार के भविष्‍य के सूत्र खोज सकते हैं। ये बयान बताते हैं कि भ्रष्‍टाचार से लड़ने की बातें कितनी खोखली हैं। ऐसे खोखले तंत्र से भ्रष्‍टाचार पर अंकुश लगाने उम्‍मीद करके क्‍या हम ज्‍यादती नहीं कर रहे?

 गिरीश उपाध्‍याय

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