ये है कारोना संघर्ष के ‘भीलवाड़ा मॉडल’ की ग्राउंड रिपोर्ट

महेश अग्रवाल

राजस्थान में सबसे पहले 19 मार्च को छह कोरोना पॉज़िटिव देने वाले भीलवाड़ा शहर को कभी वुहान तो कभी इटली की संज्ञा दी जाने लगी थी। जब एक ही शहर के 27 मरीज़ इस संक्रमण की चपेट में आ गए तो भीलवाड़ा को बारूद के ढेर पर बैठा होने का प्रणाम पत्र भी भीलवाड़ा के कलेक्टर राजेंद्र भट्ट ने ही दिया।

राजस्थान प्रदेश में सबसे पहले मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने भीलवाड़ा के हालात पर कलेक्टर से चर्चा कर कर्फ़्यू लगाने की स्वीकृति दी और जिले की सभी सीमाओं को सील करने के निर्देश दिए। शुरू शुरू में जिले के 25 लाख लोगों को घरों में क़ैद रखना एक मुश्किल काम लग रहा था पर भयभीत लोगों ने स्वप्रेरणा से घरों में अपने आपको बंद कर लिया इसके बाद स्थानीय प्रशासन ने सरकारी मशीनरी के बेहतरीन उपयोग की बदौलत प्रदेश के पहले कोरोना हॉट स्‍पॉट को पूरे देश के लिए रोल मॉडल में तब्दील कर दिया। आज 27 संक्रमित मरीज़ों में से 17 पूर्ण रूप से स्वस्थ होकर घर जा चुके हैं और लोगों के मन से महामारी और मौत का डर निकल चुका है।

भीलवाड़ा में कोरोना संक्रमण का केंद्र शहर का ब्रजेश बांगड मेमोरियल अस्पताल था लेकिन जिले के ग्रामीण क्षेत्रों और पड़ोसी जिलों पर इसका असर होना निश्चित था। अस्पताल में इलाज के लिए एक माह में आए पाँच हज़ार से अधिक रोगियों और उनके सम्पर्क में आने वालों की पहचान करना लगभग असंभव सा कार्य था।

जिला कलेक्टर ने ग्राम स्तर पर सर्वे के लिए अतिरिक्त जिला कलक्टर प्रशासन राकेश कुमार को कमान सौंपी। सिर्फ सात दिन में जिले में 22 लाख से अधिक लोगों का सर्वे कर लिया गया। सर्वे से प्रशासन के सामने जिले की स्वास्थ्य सम्बन्धी स्थिति एक स्पष्ट तस्वीर उभर कर आई।

प्रदेश में बांगड़ अस्पताल के डॉक्‍टर्स व नर्सिंग स्टाफ के संक्रमित होने की पुष्टि होने से भीलवाड़ा अचानक एक हॉट स्‍पॉट के रुप में सामने आ चुका था। सबसे बड़ी समस्या संक्रमितों के निकट संपर्क में आने वालों की पहचान और उनकी सोशल डिस्टेंसिंग सुनिश्चित करना थी। संक्रमण को कम्युनिटी संक्रमण में बदलने से रोकने के लिए मुख्यमंत्री स्तर से लगातार त्वरित निर्णय मील के पत्थर साबित हुए। चिकित्सा विभाग के माध्यम से शहरी सीमा में सर्वे कर लोगों के स्वास्थ्य के बारे में जानकारी हासिल की जा रही थी तो वहीं ग्रामीण क्षेत्रा में जमीनी स्तर की मशीनरी को इसके लिए काम पर लगाया गया।

प्रशासन ने राजस्व, ग्रामीण विकास व पंचायती राज, शिक्षा, कृषि, चिकित्सा आदि विभाग के सबसे निचले स्तर के तीन-तीन कर्मचारियों की कुल 1948 टीमें बनाईं। लगभग छह हजार लोगों को एक साथ फील्ड में झोंक कर सात दिन के भीतर जिले के पूरे ग्रामीण क्षेत्र का सर्वे कर लिया गया। यह इतना आसान नहीं था। जमीनी स्तर पर हुए सर्वे की रिपोर्ट उपखंड स्तर से होकर उसी दिन जिला स्तर तक पहुंचाना होता था।

अतिरिक्त जिला कलक्टर (प्रशासन) की कोर टीम रात को 3 बजे तक आंकड़े संग्रहण का कार्य करती थी। त्वरित डाटा संग्रहण के परिणामस्वरूप प्रशासन को अगले निर्णय लेने में काफी आसानी रही।

पहले चरण के सर्वे में 16 हजार से अधिक ऐसे व्यक्तियों की पहचान की गई जो सामान्य सर्दी-जुकाम से पीड़ित थे। इन्हें घर में ही रहते हुए सोशल डिस्टेंस की पालना करने और स्वच्छता की आदतें अपनाने की सलाह दी गई। दूसरे चरण में इन्हीं लोगों पर फोकस किया गया। जिन्हें अभी भी सर्दी-जुकाम की शिकायत थी, उनका मेडिकल स्क्रीनिंग करवाया जा रहा है। इनमें से संदिग्धों को भीलवाड़ा मुख्यालय पर कोरोना की जांच के लिए लाया जा रहा है। जिले में अभी तक लिए गए करीब ढाई हजार से ज्यादा नमूने में अधिकांश ये ही लोग शामिल हैं। राजस्थान सरकार के त्वरित निर्णय और दूरगामी सोच वाले फैसलों ने भीलवाड़ा को देश में एक मिसाल के रूप में स्थापित कर दिया है जिसकी पूरे देश में प्रशंसा हो रही है।

(श्री महेश अग्रवाल भीलवाड़ा के वरिष्‍ठ पत्रकार हैं और यह रिपोर्ट उन्‍होंने मध्‍यमत के विशेष अनुरोध पर भेजी है)

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here