गुजरात में कांग्रेस के सामने चुनौतियों का पहाड़

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सुरेश हिन्दुस्थानी

देश के लिए प्रतिष्ठा का सवाल बने गुजरात विधानसभा चुनाव के लिए कांग्रेस में अभी से ऐसे हालात बनने लगे हैं, जिनके कारण कांग्रेस के समक्ष एक तरफ कुआं तो दूसरी तरफ खाई जैसी परिस्थितियां निर्मित होती दिखाई दे रही हैं। कांग्रेस की राष्ट्रीय राजनीति में गहरा प्रभाव रखने वाले अहमद पटेल के सामने पहले से भी ज्यादा चुनौती पैदा होती जा रही हैं। अभी हाल ही में अहमद पटेल से जुडे एक व्यावसायिक स्थल से आतंकवादियों की गिरफ्तारी उनको कठघरे में खड़ा करती हुई दिखाई दे रही है। इससे जहां कांग्रेस को पटखनी देने के लिए भाजपा को प्रभावशाली मुद्दा मिला है, वहीं कांग्रेस बैकफुट की ओर जाती हुई दिखाई दे रही है।

कांग्रेस की सबसे बड़ी दुविधा यही है कि अगर वह अहमद पटेल से दूर रहने का प्रयास करती है तो स्वाभाविक रूप से उसे मुसलमानों की नाराजी झेलनी पड़ सकती है, जो कांग्रेस कतई नहीं चाहती। और अहमद पटेल का समर्थन करने से कांग्रेस से वह वर्ग दूर जा सकता है, जिसके लिए उसने लम्बे समय से रणनीति का उपयोग किया।

कहने का तात्पर्य स्पष्ट है कि पटेल वर्ग को अपने पाले में करने के लिए कांग्रेस ने राजनीतिक चाल चली, उसमें उसे तब सफलता मिलती दिखाई दी, जब हार्दिक पटेल राहुल गांधी के संकेत पर कांग्रेस का समर्थन करते दिखे। हालांकि हार्दिक पटेल जिस मुद्दे पर गुजरात में उभरे हैं, उस मुद्दे पर अडिग रहना उनकी राजनीतिक मजबूरी है। इसीलिए उन्‍होंने कांग्रेस के सामने पटेल आरक्षण पर अपना रुख स्पष्ट करने का यक्ष प्रश्‍न उठा दिया है।

राजनीतिक हालात के विश्लेषण से लगता है कि हार्दिक का बयान भी कांग्रेस को फायदा पहुंचाने का एक कदम है। क्योंकि कांग्रेस पटेल वर्ग को आरक्षण देने की घोषणा कर सकती है। जनता भी यह समझने लगी है कि कांग्रेस अपने लाभ के लिए कैसी भी राजनीति कर सकती है। समाज में विघटन पैदा करने वाली कांग्रेस ने राज भी इसी आधार पर किया है। आज भी कांग्रेस उसी राह पर है। समाज में फूट डालने की मानसिकता से किया गया प्रचार चुनाव में सफलता तो दिला सकता है, लेकिन देश को मजबूत नहीं बना सकता।

गुजरात का चुनाव प्रचार बता रहा है कि भाजपा में कोई घबराहट नहीं है, वहीं कांग्रेस के हालात इसके विपरीत दिखाई दे रहे हैं। उसमें घबराहट है और अस्तित्व बचाए रखने की कोशिश भी। ऐसे में कांग्रेस किस परिणति को प्राप्त होगी, कहना मुश्किल है। खुद उसके  कार्यकर्ता इस बात के लिए आशान्वित नहीं हैं कि गुजरात में कांग्रेस की सरकार बन जाएगी। कांग्रेस की स्थिति में सुधार हो सकता है, पर सरकार नहीं बन सकती।

कांग्रेस की राह ज्यादा कठिन है क्योंकि गुजरात के पूर्व चुनावों में उसका मुकाबला राज्य के मुख्यमंत्री से हाता था, आज एक प्रधानमंत्री से है। भाजपा को इसी का राजनीतिक लाभ मिलेगा क्‍योंकि देश में आज नरेन्द्र मोदी सबसे बड़े राजनेता के रूप में स्थापित हैं। उनसे मुकाबला करना कांग्रेस के लिए टेढ़ी खीर है।

यह कहना भी गलत नहीं होगा कि दोनों पार्टियों में गुजरात चुनावों का माहौल लोकसभा चुनावों जैसा है। 1995 से निरंतर सत्ता में रही भाजपा अपने इस गढ़ को केवल बरकरार ही नहीं रखना चाहती, बल्कि इन चुनावों से नोटबंदी व जीएसटी जैसे मुद्दों पर जनता की मोहर लगवाने के मूड में है। पिछले 22 सालों से 60 सीटों तक सीमित रही कांग्रेस अपनी नजर इस बार पटेल और पाटीदार समाज पर टिकाए हुए है।

गुजरात के पहले के चुनावों के राजनीतिक प्रचार पर ध्यान दें तो सामने आता है कि विपक्षी राजनीतिक दलों ने सांप्रदायिकता को अपना प्रमुख चुनावी हथियार बनाया था। दूसरी ओर भाजपा केवल विकास की ही बात करती रही। अब कांग्रेस को समझ में आने लगा है कि गुजरात की जनता सांप्रदायिकता फैलाने वाले दलों के साथ नहीं है, वह पूरी तरह से विकास करने वाले दल भाजपा के साथ है।

अच्छी बात यह है कि गुजरात चुनावों में चाहे विरोधी दलों की बयानबाजी हो या फिर भाजपा नेताओं के बयान, सभी विकास की बात कर रहे हैं। पिछले चुनाव में कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गांधी ने नरेन्द्र मोदी को मौत का सौदागर तक बता दिया, लेकिन इसका परिणाम यही निकला कि भाजपा को सत्ता प्राप्त हो गई। अब कांग्रेस को भी लगने लगा है कि ऐसे मुद्दों से राजनीतिक लाभ नहीं मिलने वाला। इसलिए उसने भी विकास की बात करनी प्रारंभ कर दी है।

यानी गुजरात में अब विकास ही राजनीतिक मुद्दा है। लेकिन यह भी सच है कि कांग्रेस विकास से कोसों दूर है। कांग्रेस के मुताबिक तो देश में जहां भी विकास होगा, वह पागलपन के अलावा कुछ भी नहीं है। तो कांग्रेस की राजनीति में स्थिरता नहीं है, वह विकास की राजनीति भी कर रही है और विकास को पागल भी बता रही है। देखना यही होगा कि गुजरात में कांग्रेस भाजपा को पराजित करने के लिए कौनसी नई रणनीति लेकर आती है।

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