नोटबंदी पर माथापच्ची जारी है। और साथ ही इसका ठीकरा फोड़ने और श्रेय लेने का खेल भी समानांतर रूप से चल रहा है। सारी बातें इतनी गड्डमड्ड हो गई हैं कि कई बार तो समझ ही नहीं आता कि नोटबंदी आखिर हुई किसके लिए है? प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 8 नवंबर की रात 500 और 1000 के नोट बंद करने का ऐलान करते हुए राष्ट्र के नाम जो संदेश प्रसारित किया था उससे पहला इम्प्रेशन यही बना था कि सरकार ने कालेधन और भ्रष्टाचार को खत्म करने के लिए यह कदम उठाया है। लेकिन जैसे जैसे दिन बीतते जा रहे हैं वैसे वैसे बहस कालेधन को रोकने या उसे खत्म करने के उद्देश्य से भटक कर, कई कई दिशाओं में जा रही है।
हाल ही में मुझे सोशल मीडिया पर आई एक टिप्पणी काफी सटीक लगी जिसमें कहा गया था कि 500 और 1000 की नोटबंदी शुरू में तो कालेधन पर प्रहार लग रही थी लेकिन सरकार और खुद प्रधानमंत्री के बयानों से अब ऐसा लग रहा है कि इसका असली उद्देश्य कालेधन को खत्म करने से ज्यादा देश को कैशलेस बनाना और डिजिटल ट्रांजैक्शन को बढ़ावा देना है। पूरी सरकारी मशीनरी इस बात पर पिल पड़ी है कि देश कैशलेस हो जाए।
हमारा मध्यप्रदेश तो शुरू से ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इरादों पर अमल में अव्वल आने की कोशिशें करता रहा है। जनकल्याण के लिहाज से ये कोशिशों कितनी फायदेमंद है इसका आकलन अभी होना बाकी है,लेकिन राजनीतिक दृष्टि से ऐसी कोशिशों हमेशा सुर्खियां बनती रही हैं और सत्ता के ‘राजनीतिक भविष्य’ को और भी चटक व चमकदार बनाती रही हैं। ऐसे में जब प्रधानमंत्री ने कैशलेस अर्थव्यवस्था की बात की तो यह कैसे होता कि हम उसमें पीछे रहते। लिहाजा मोदी की कैशलेस मंशा को भी मध्यप्रदेश ने तत्काल लपक लिया। अपनी सरकार के 11 साल पूरे होने के जंबो जश्न को मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान ने जनकल्याणकारी योजनाओं के प्रशिक्षण कार्यक्रम में तब्दील किया और वहां कैशलेस सिस्टम को बढ़ावा देने पर खास जोर दिया गया।
रविवार को हुए इस मेगा शो की खबर ने शुरुआत में मुझे बहुत उलझाया। खबर मुख्यमंत्री के ट्वीट से निकली। इसमें कहा गया था कि- ‘’जो व्यापारी बंधु पीओएस मशीन का उपयोग करेंगे उनको ट्रांजैक्शन संबंधित टैक्स नहीं देना होगा।‘’
पीओएस यानी पाइंट ऑफ सेल वो मशीनें हैं जो दुकानों आदि पर डेबिट या क्रेटिड कार्ड के जरिए होने वाले कैशलेस ट्रांजैक्शन को हैंडल करने के लिए लागई जाती हैं। मुख्यमंत्री के ट्वीट को लेकर उलझन यह पैदा हुई कि सरकार इन मशीनों को खरीदने वाले व्यापारियों को टैक्स से छूट देने की बात कर रही है या उनका उपयोग करने वालों यानी उपभोक्ताओं को ट्रांजैक्शन टैक्स से छूट देने की बात है। अपनी इस दुविधा को दूर करने के लिए हमने मामले से जुड़े विभागों से लेकर कई अफसरों से बात की लेकिन कोई भी साफ तौर पर यह बताने की स्थिति में नहीं था कि इस घोषणा का मंतव्य क्या है। आखिरकार एक वरिष्ठ अधिकारी ने पूछताछ के बाद बताया कि घोषणा का अर्थ सिर्फ इतना है कि कैशलेस ट्रांजैक्शन के काम में आने वाली इस मशीन की खरीद पर व्यापारी को टैक्स से छूट मिलेगी।
मेरा माथा सरकार की ऐसी ही घोषणाओं से ठनकता है। अब इस घोषणा का क्या मतलब है? कायदे से होना तो यह चाहिए कि कैशलेस लेन देन को स्वीकार कर, कालेधन के विरुद्ध सरकार द्वारा चलाए जाने वाले अर्थयुद्ध (इस शब्द को आप धर्मयुद्ध के समकक्ष ही रखिएगा) में आहुति देने वाली आम जनता को इसका फायदा मिले और जो लोग प्लास्टिक मनी के जरिए या डिजिटल ट्रांजैक्शन के जरिए लेने देन करें उनसे ऐसे ट्रांजैक्शन के एवज में लिया जाने वाला कोई शुल्क न लिया लाए। लेकिन यहां तो जनता के बजाय व्यापारियों को उस मशीन की खरीद पर टैक्स से छूट दी जा रही है।
जब सरकार कैशलेस या लेसकैश सोसायटी अथवा अर्थव्यवस्था की बात कर रही है, तो इसका अर्थ यह हुआ कि कालेधन-वालेधन से अलग इसमें उसका आर्थिक फायदा भी है, क्योंकि इससे नोट छापने से लेकर नोटों के भौतिक लेनेदेन में होने वाले खर्च में भारी कमी होगी जिसका फायदा अंतत: सरकार को मिलेगा। ऐसे में यदि सरकार कैशलेस या डिजिटल लेनदेन को बढ़ावा देने या उसे चलन में लाने के लिए इन्सेंटिव के तौर पर लोगों को कुछ छूट देती है तो उसका काम भी आसान होगा और लोग भी इस प्रक्रिया में होने वाले फायदे को देखते हुए उसके प्रति ज्यादा आकर्षित होंगे।
लेकिन यदि आप एक तरफ नोटबंदी करके और दूसरी तरफ लेस कैश सोसायटी का निर्माण करके लोगों को डिजिटल या प्लास्टिक ट्रांजैक्शन की ओर धकेल रहे हैं तो इसका अर्थ यह क्यों न माना जाए कि आप परोक्ष रूप से जनता पर एक नया टैक्स थोपने जा रहे हैं। मुझे बताया गया है कि प्लास्टिक मनी या डिजिटल ट्रांजैक्शन पर 0.5 से लेकर 2 प्रतिशत तक का टैक्स अतिरिक्त रूप से देना पड़ता है। यदि ऐसा है तो क्या नोटबंदी की शतरंज के काले-सफेद खानों के साथ साथ सरकार अपने लिए कुछ रंगीन खाने भी रच रही है। क्योंकि इस तरह के टैक्स की राशि भविष्य में अरबों रुपए होगी और जाहिर है यह पैसा जनता की जेब से वसूला जाएगा।