श्री बद्रीनाथ धाम की मान्यता हिंदुओं के बहुत बड़े तीर्थ की है। लेकिन एक बात जान कर आप हैरत में पड़ जाएंगे। चार धाम यात्रा के एक महत्वएपूर्ण तीर्थ और हिन्दुंओं की आस्थाग के केंद्र इस मंदिर में रोज सुबह-शाम गाई जाने वाली आरती को…
एक मुस्लिम शायर ने लिखा है।
यह मंदिर भारत में धार्मिक एकता की अद्भुत मिसाल है।
जी हां, 151 साल पहले एक मुस्लिम शायर फकरुद्दीन (बदरुद्दीन) ने बद्रीनाथ में होने वाली आरती लिखी थी। तब से भगवान बदरी विशाल की पूजा परंपराओं की शुरुआत इसी आरती के साथ होती है। श्री बदरीनाथ धाम देश ही नहीं, पूरी दुनिया में हिंदुओं के तीर्थ के रूप में विख्यात है। प्रतिवर्ष देश-दुनिया से लाखों श्रद्धालु यहां भगवान बदरी विशाल के दर्शनों को पहुंचते हैं। वैसे तो यह धाम अपने-आप में विलक्षण है, किंतु सांप्रदायिक सौहार्द के प्रतीक के रूप में इसकी विशिष्ट पहचान है।
इसकी वजह है धाम में गाई जाने वाली संस्कृत में लिखी आरती। जिसके बोल हैं, ‘पवन मंद सुगंध शीतल हेम मंदिर शोभितम, निकट गंगा बहति निर्मल श्री बदरीनाथ विश्वंबरम।’ यह आरती मूलरूप से चमोली जिले के नंदप्रयाग निवासी फकरुद्दीन ने वर्ष 1865 में लिखी थी। तब उनकी उम्र महज 18 साल थी। इस आरती में बदरीनाथ धाम के धार्मिक महत्व के अलावा यहां की सुंदरता का भी वर्णन किया गया है।
फकरुद्दीन तब नंदप्रयाग में पोस्ट ऑफिस में काम करते थे और इस आरती को लिखने के बाद उन्होंने अपना नाम बदरीनाथ के नाम पर बदरुद्दीन रख लिया। बाद में वह श्री बदरीनाथ-केदारनाथ मंदिर समिति में सदस्य भी रहे। इसके अलावा वह तत्कालीन मुस्लिम कम्युनिटी के राष्ट्रीय सदस्य भी थे। 104 वर्ष की उम्र में वर्ष 1951 में उनका निधन हुआ।
बदरुद्दीन के पोते अयाजुद्दीन सिद्दिकी बताते हैं कि बद्रीनाथ धाम में मंदिर परिसर की दीवारों पर पहले पूरी की पूरी आरती लिखी गई थी। जिस व्यक्ति को यह आरती कंठस्थ नहीं होती, वह मंदिर की दीवारों पर देखकर आरती गाता था।
नोट- यह जानकारी हमें श्री पंकज पंचोली के माध्यम से मिली है।