आप यदि आग बुझाने में नाकाम हो रहे हैं तो सबसे अच्छा उपाय यह है कि आग का नाम बदलकर पानी रख दीजिए। कोई लड़ाई आपसे यदि जीती नहीं जा रही है तो दुखी मत होइये, हार का नाम बदलकर जीत रख दीजिए और जश्न मनाइये… आपसे कोई समस्या यदि सुलझ नहीं पा रही तो चिंता करने की कोई बात नहीं, बस इतना करिये कि समस्या का नाम बदलकर समाधान कर दीजिए… अपने आप सारा हल निकल आएगा!!
आप सोच रहे होंगे कि शायद आज मेरा माथा खराब हो गया है जो मैं ऐसी बहकी बहकी बातें कर रहा हूं। भला आग को पानी कह देने से क्या वह हमें जलाना या झुलसाना बंद कर देगी? हार को जीत कह देने भर से क्या हम विजेता घोषित हो जाएंगे? और क्या समस्या को समाधान बता देने से सचमुच सारी समस्याओं का हल निकल आएगा?
व्यावहारिक दृष्टि से देखें तो ऐसा सोचना भी खुद को शेखचिल्ली साबित करना है। लेकिन आपको यह जानकर प्रसन्नता होगी कि ऐसा हो रहा है। और ऐसा करने वाला कोई व्यक्ति या संस्था नहीं बल्कि खुद हमारी सरकार है, जो मानती है कि ऐसी उलटबांसियों या हथकंडों से न सिर्फ सवालों के हल खोजे जा सकते हैं बल्कि जनता को संतुष्ट भी किया जा सकता है।
यकीन न आए तो जरा सरकार के उस विचार पर नजर डाल लीजिए जिसके मुताबिक वह सोच रही है कि बेरोजगारी कम दिखाने के लिए क्यों न स्वरोजगार में लगे लोगों को भी रोजगार पाने वालों की श्रेणी में मान लिया जाए। आप कहेंगे इसका क्या मतलब हुआ? तो इसे यूं समझिए कि बड़ी संख्या में रोजगार देने का वायदा पूरा करने में नाकाम रहने पर सरकार की बहुत थू-थू हो रही है। इसलिए सरकार ने अपने माथे से यह कलंक मिटाने का एक नया रास्ता खोजा है।
खबरें कहती हैं कि यह रास्ता है स्वरोजगार में लगे लोगों को भी रोजगार पाने वालों की श्रेणी में शामिल कर लेने का। यानी सरकार की किसी मदद या मेहरबानी के बिना जिन लोगों ने अपने बलबूते पर कोई रोजगार का साधन खड़ा किया है तो अब ऐसा रोजगार भी सरकार द्वारा मुहैया कराए गए रोजगार के खाते में माना जाएगा। इस तरह बेरोजगारों की संख्या में कमी दिखाने के साथ-साथ प्रतिवर्ष रोजगार दिए जाने वालों की संख्या का आंकड़ा भी बढ़ा चढ़ाकर प्रस्तुत किया जा सकेगा।
आपको याद होगा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जनता से वायदा किया था कि उनकी सरकार हर साल एक करोड़ लोगों को रोजगार देगी। लेकिन इस मोर्चे पर सरकार बुरी तरह विफल रही है और नतीजे में उसे चौतरफा आलोचनाओं का सामना करना पड़ रहा है। अब अपनी नाक बचाने के लिए सरकार स्वरोजगार पाए लोगों का आंकड़ा भी रोजगार पाए लोगों की सूची में शामिल करने पर विचार कर रही है।
अगर ऐसा होता है तो पिछले चार साल में नौकरी पाने वालों की संख्या में आश्चर्यजनक इजाफा हो सकता है। श्रम मंत्रालय सूत्रों के हवाले से आई खबर के मुताबिक प्रधानमंत्री मुद्रा योजना के जरिए स्वरोजगार पाने वालों को देश में पहली बार जॉब डेटा में शामिल किया जाएगा। ऐसा होने पर नौकरीशुदा लोगों की मौजूदा 50 करोड़ की संख्या में पांच करोड़ का इजाफा हो सकता है। इसका मतलब हुआ पांच साल में पांच करोड़ रोजगार का सृजन, यानी ठीक वही आंकड़ा जैसा कि सरकार ने वादा किया था।
सरकार इस तरह उपलब्धियों की सीढ़ी पर आंकड़ों की लिफ्ट के जरिए चढ़कर खुद ही अपनी पीठ थपथपाने की जुगत भिड़ा रही है। माना जा रहा है कि अगले साल यानी 2019 में होने वाले लोकसभा चुनावों से पहले मोदी सरकार श्रम ब्यूरो के ये आंकड़े लोगों के सामने रखकर वाहवाही लूटने और वोट पाने का प्रयास करेगी। ऐसी तिकड़म सरकार पहले जीडीपी के आंकड़ों को लेकर भी कर चुकी है, जब उसने बढ़ी हुई विकास दर दिखाने के लिए आकलन की प्रक्रिया का तरीका ही बदल दिया था।
दरअसल, सरकार ऐसी गलियां खोजने पर लंबे समय से काम कर रही है। कुछ समय पहले प्रधानमंत्री ने कर्मचारी भविष्य निधि में दर्ज होने वाले लोगों की संख्या में इजाफे का हवाला देते हुए उसे लोगों के रोजगार पाने का सबूत बता दिया था। लेकिन विशेषज्ञ मानते हैं कि ईपीएफ में नामांकन होना किसी को नौकरी मिल जाने का प्रमाण कतई नहीं है। एक अनुमान के मुताबिक इस साल 55 लाख लोगों को कर्मचारी भविष्य निधि से जोड़ा जाएगा। सरकार की नजर इसी आंकड़े का लाभ लेने पर है।
सरकार इस दिशा में कितनी गंभीरता से अपनी चालें चल रही है इसका अंदाजा जरा उस इंटरव्यू से लगाइए जिसमें हाल ही में प्रधानमंत्री ने कहा था कि सड़क पर यदि कोई पकौड़े बनाकर आजीविका पा रहा है तो क्या इसे रोजगार का सृजन नहीं माना जाएगा? मोदी ने एक कार्यक्रम में यह भी कहा था कि देश में 70 लाख लोगों ने ईपीएफ में पंजीयन कराया है, यानी हमने इतने लोगों को रोजगार तो दिया ही है। क्योंकि बिना नौकरी कोई क्यों ईपीएफ में पंजीयन कराएगा? जबकि जानकारों का मानना है कि ईपीएफ पंजीयन में यह बढ़ोतरी बरसों से बिना ईपीएफ रजिस्ट्रेशन के काम कर रहे लोगों को इसके दायरे में लाने के लिए चलाए गए विशेष अभियान के कारण हुई है न कि नए रोजगार सृजन के कारण।
सरकार की इन चालबाजियों पर पूर्व वित्त मंत्री पी. चिदंबरम ने बहुत ही सटीक तंज किया है। उन्होंने पूछा है कि ‘’अगर पकौड़े बेचना नौकरी है तो फिर इस लिहाज से भीख मांगना भी रोजगार है। और इस तरह देखा जाए तो देश में भीख मांगने वाले सभी लोगों के पास रोजगार है।‘’ सरकार के दावों की पोल खोलते हुए चिदंबरम ने कहा- ‘’वो तो मनरेगा की मजदूरी को भी रोजगार बताना चाहते हैं, जबकि ऐसे व्यक्तियों को सिर्फ 100 दिन मजदूरी मिल पाती है, बाकी 265 दिन तो वे बेरोजगार ही रहते हैं।‘’
और चिदंबरम का बयान यदि सरकार को विपक्ष का आरोप भर लगता है, तो हाल ही में मध्यप्रदेश की जिला अदालतों में चपरासी और स्वीपर सहित चतुर्थ श्रेणी के 738 पदों के लिए आए पौने तीन लाख से अधिक उन आवेदन के बारे में आप क्या कहेंगे जिनमें इतने छोटे रोजगार के लिए आवेदन करने वालों में पोस्ट ग्रेजुएट और इंजीनियर तक शामिल हैं…??