मध्‍यप्रदेश में विस्तार जरूरी कि नेतृत्व परिवर्तन?

राकेश अचल

मध्‍यप्रदेश में भाजपा की जोड़-जुगाड़ वाली सौ दिन की सरकार के मंत्रिमंडल विस्तार में हो रही देरी के साथ ही ये चर्चा भी चल पड़ी है कि मध्यप्रदेश में मंत्रिमंडल का विस्तार जरूरी है कि नेतृत्व परिवर्तन? भाजपा में मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान के संकट मोचक ही अब उनके उत्तराधिकारी बनने के लिए लार टपकाते दिखाई दे रहे हैं।

सारे घटनाक्रम पर नजर डालें तो साफ़ नजर आ रहा है कि मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौथी बार सत्ता में आने के बाद अब तक सुरक्षित अनुभव नहीं कर रहे हैं। उनकी सौ दिन की सरकार जैसे-तैसे पांच मंत्रियों के सहारे चली है और अब उसे गति देने के लिए ‘एक्सीलेटर’ उनके हाथ में नहीं दिखाई दे रहा। समझा जाता है कि भाजपा के अनेक नेताओं के साथ ही भाजपा में शामिल हुए ज्योतिरादित्य सिंधिया भी अब शिवराजसिंह चौहान के साथ अटपटा अनुभव कर रहे हैं।

दिल्ली में शिवराजसिंह चौहान नए मंत्रियों की सूची लेकर गए लेकिन इस बीच उनको ही हटाए जाने की अटकलें लगने लगीं। हद तो तब हुई जब भाजपा के एक समूह ने सोशल मीडिया पर केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर को शिवराज सिंह चौहान की जगह मध्यप्रदेश का मुख्यमंत्री बना दिया।

केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर वर्तमान में संघ परिवार के साथ ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भी कृपा के घेरे में हैं इसलिए इन अफवाहों को बल भी मिला। तोमर बीते पंद्रह साल से प्रदेश का मुख्यमंत्री बनना चाहते हैं। एक समय राजनाथ सिंह के कार्यकाल में वे मुख्यमंत्री बनते-बनते रह भी गए थे।

भाजपा के अंदरूनी सूत्रों का कयास है कि पार्टी के महामंत्री कैलाश विजयवर्गीय के अलावा मौजूदा गृह मंत्री डॉ. नरोत्तम मिश्रा भी इस फिराक में हैं कि यदि उन्हें विजयवर्गीय और सिंधिया का समर्थन मिल जाये तो वे शिवराज का ताज अपने सर पर सजा लें। डॉ. मिश्रा को केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह का आशीर्वाद प्राप्त है इसलिए पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा भी उनके खिलाफ नहीं जा सकते। आपको याद होगा की डेढ़ साल पहले मप्र के दौरे पर पार्टी अध्यक्ष की हैसियत से भोपाल आये अमित शाह डॉ. मिश्र का आतिथ्य स्वीकार चुके हैं।

दिल्ली से एक खबर ये भी चली है कि ज्योतिरादित्य सिंधिया अपने समर्थकों में से दो और विधायकों को मंत्री बनाने की मांग कर रहे हैं, हालांकि ये विधायक भाजपा के ही हैं लेकिन सिंधिया के साथ खड़े नजर आने लगे हैं। सिंधिया के भाजपा से राज्‍यसभा सदस्य बनते ही अब प्रदेश भाजपा में उनकी एक नयी लॉबी बन गयी है, जो मुख्यमंत्री शिवराज सिंह के लिए चुनौती बन गयी है। आपको याद होगा कि शिवराज ने ही विधानसभा चुनाव के समय ‘माफ़ करो महाराज’ का नारा दिया था। लगता है कि अब राज्य सभा पहुँचते ही सिंधिया ने अपने समर्थकों के माध्यम से ‘माफ़ करो शिवराज’ का नारा बुलंद करा दिया है।

सूत्रों का कहना है कि सिंधिया शिवराज के स्थान पर डॉ. नरोत्तम मिश्रा या केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर को मुख्यमंत्री बनाये जाने के पक्ष में हैं, उनके लिए ये दोनों नेता शिवराज सिंह चौहान के मुकाबले ज्यादा मुफीद हैं। दोनों ने कभी न कभी महल का संरक्षण पाया है इसलिए वे महल के प्रति श्रद्धावनत भी रहेंगे। शिवराज सिंह के प्रति महल की धारणा अलग है।

सूत्रों का कहना है कि मध्‍यप्रदेश में नेतृत्व परिवर्तन करने से भाजपा है हाईकमान फिलहाल बचना चाहता है, लेकिन यदि बात न बनी तो इस हिचकिचाहट को दूर कर भी फैसला किया जा सकता है। ये फैसला मुमकिन है आजकल में ले लिया जाये। सूत्रों का कहना है कि केंद्रीय नेतृत्व प्रदेश में यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जैसा सक्रिय मुख्यमंत्री चाहता है। ऊर्जा के स्तर पर शिवराज सिंह अब पहले जैसे नहीं दिखाई देते। इस पैमाने पर डॉ. नरोत्तम मिश्र ही फिट बैठते हैं। नरेंद्र सिंह तोमर भी शायद अब इस पैमाने पर खरे न उतरें। वैसे भी उनकी छवि अब केंद्रीय नेता की बन चुकी है।

मध्यप्रदेश में दलबदल के बाद बनी भाजपा की सरकार जनादेश की सरकार नहीं है, इसे धनादेश की सरकार कहा जाता है। 24 सीटों के लिए होने वाले उप चुनाव के बाद शायद इसमें जनादेश शब्द एक बार फिर से जोड़ लिया जाये। जब तक ये उपचुनाव भाजपा के पक्ष में नहीं जाते तब तक सरकार के सिर पर अस्थिरता की तलवार लटकी ही रहेगी। मंत्रिमंडल का विस्तार या नेतृत्व परिवर्तन भी इसे हटा नहीं सकता।

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टीम मध्‍यमत

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