लेकिन हमारे यहां तो यह ‘नीच’ चुनाव जिता सकता है

आमतौर पर हमारी अदालतों की इस बात के लिए आलोचना होती है कि वहां आम बोलचाल की भाषा हिन्‍दी के बजाय अंग्रेजी में काम होता है। आपको बहुत लोग यह कहते हुए मिल जाएंगे कि देश भले ही आजाद हो गया हो, लेकिन हमारी अदालतें अंग्रेजी की गुलामी से अभी तक बाहर नहीं आ सकी हैं। ऐसे परिदृश्‍य में यदि किसी उच्‍च अदालत से हिन्‍दी के शब्‍द की व्‍याख्‍या करते हुए कोई फैसला आए तो खुशी होना स्‍वाभाविक है।

रविवार को अखबारों में प्रमुखता से प्रकाशित मध्‍यप्रदेश हाईकोर्ट का ऐसा ही एक फैसला पढ़कर मन प्रसन्‍न हो गया। अदालत ने इन दिनों बहुत चर्चा में चल रहे एससी/एसटी एक्‍ट से संबंधित एक मामले का निपटारा करते हुए साफ किया कि सिर्फ किसी को ‘नीच’ कह देने भर से एससी/एसटी एक्‍ट के तहत मामला नहीं बनता।

न्‍यायमूर्ति अंजुली पालो की अदालत ने स्‍पष्‍ट किया कि हिन्दू टर्मिनोलॉजी के अनुसार ‘नीच’ शब्द नैतिक रूप से नीचे गिरे हुए होने के संदर्भ में प्रयुक्त किया जाता है। इसे जातिगत अपमान का सूचक नहीं माना जा सकता, लिहाजा आरोपी पर एससी/एसटी एक्‍ट के तहत मामला दर्ज नहीं किया जा सकता।

खबरों के मुताबिक यह मामला खंडवा के रामेश्‍वर प्रसाद साहू से जुड़ा था जिन्‍होंने अपने मकान के सामने खाली पड़ी जमीन पर अतिरिक्‍त निर्माण कर लिया था। कुछ लोगों ने इसकी शिकायत की और उस शिकायत के आधार पर वह निर्माण हटा दिया गया। इस कार्रवाई से गुस्‍से में आए साहू ने, उन लोगों के लिए ‘नीच’ शब्‍द का इस्‍तेमाल किया जिन पर उन्‍हें संदेह था कि उन्‍होंने निर्माण को लेकर शिकायत की है।

मीडिया रिपोर्ट्स कहती हैं कि इसके बाद संबंधित व्‍यक्ति ने थाने में पहुंचकर साहू के खिलाफ अन्‍य धाराओं के साथ साथ एससी/एसटी एक्‍ट में भी मामला दर्ज करवा दिया। विशेष अदालत ने भी इस एक्‍ट की धाराओं के तहत चार्ज फ्रेम कर दिए। इसके खिलाफ साहू ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की।

हाईकोर्ट में साहू के वकील ने कहा कि अपना निर्माण गिरा दिए जाने से गुस्‍से में आए याचिकाकर्ता ने शिकायतकर्ताओं के खिलाफ ‘नीच’ शब्‍द का इस्‍तेमाल किया था लेकिन यह एक सहज घटना थी और सामान्‍यत: गुस्‍से की स्थिति में ऐसा हो जाया करता है। सुनवाई के बाद हाईकोर्ट ने साहू के खिलाफ एससी/एसटी एक्‍ट की धाराओं के तहत लगाए गए आरोप निरस्‍त कर दिए।

मध्‍यप्रदेश हाईकोर्ट का यह फैसला कई मायनों में दूरगामी असर वाला हो सकता है। ऐसा अकसर होता है कि गुस्‍से में किसी व्‍यक्ति के मुंह से कोई शब्‍द निकल जाता है लेकिन जरूरी नहीं कि उसने वह शब्‍द सामने वाले की जाति या अन्‍य स्थिति को लांछित करने के लिए ही इस्‍तेमाल किया हो। अदालत ने स्थिति के मर्म को समझा इसलिए उसकी सराहना की जानी चाहिए।

दरअसल एससी/एसटी एक्‍ट को लेकर देश में जो टकराव की स्थिति बनी है उसके पीछे ऐसी ही घटनाएं एक बड़ा कारण हैं। इसमें कोई दो राय नहीं हो सकती कि समाज में छुआछूत के लिए कोई स्‍थान नहीं है। भारत में रहने वाला हर नागरिक समान है, उसके साथ जाति के आधार पर किसी तरह का भेदभाव नहीं होना चाहिए।

लेकिन एससी/एसटी एक्‍ट की धाराओं के इस तरह के दुरुपयोग के जो मामले हो रहे हैं वे समाज में गुस्‍से और आपसी वैमनस्‍य का कारण बन रहे हैं। बदले की भावना या परेशान करने की नीयत से मामले दर्ज करवाए जा रहे हैा। ऐसी घटनाओं के कारण यह कानून भी आलोचनाओं के केंद्र में आता जा रहा है।

पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट ने इस कानून के तहत मामला दर्ज किए जाने की प्रक्रिया को लेकर महत्‍वपूर्ण फैसला सुनाया था लेकिन केंद्र सरकार उस फैसले को दरकिनार करने वाला कानून ले आई। इस कदम ने समाज में सौहार्द पर चोट करते हुए टकराव की स्थितियां निर्मित की हैं।

हमारे अपने मध्‍यप्रदेश में ही इस कानून से संबंधित घटनाओं को लेकर हुई हिंसा में कई लोग मारे गए। इतना ही नहीं विधानसभा चुनाव के दौरान सपाक्‍स जैसी पार्टी का गठन भी इसी कारण हुआ। सपाक्‍स ने एससी/एसटी एक्‍ट के दुरुपयोग को अपना सबसे बड़ा मुद्दा बनाया था।

जहां तक ‘नीच’ शब्‍द का सवाल है यह पिछले कुछ सालों में भारतीय राजनीति को बहुत अधिक प्रभावित करने वाला शब्‍द बन गया है। मध्‍यप्रदेश हाईकोर्ट ने इसे एसएसी/एसटी एक्‍ट की धाराएं लागू करने का आधार भले ही न माना हो, लेकिन यह शब्‍द पिछले लोकसभा और गुजरात विधानसभा चुनाव में बड़े राजनीतिक उलटफेर का कारण रहा है। पार्टियों की हारजीत के पीछे इस शब्‍द का बहुत बड़ा हाथ था।

याद कीजिए 2014 के लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान हुई वो घटना जब अमेठी में नरेंद्र मोदी ने एक जनसभा में राजीव गांधी को लेकर कुछ आरोप लगा दिए थे। उसके जवाब में उनकी बेटी प्रियंका गांधी ने पलटवार करते हुए कहा था कि ‘’इन्‍होंने मेरे शहीद पिता का अपमान किया है। ऐसी नीच राजनीति का जवाब मेरे कार्यकर्ता देंगे।‘’

नरेंद्र मोदी इस ‘नीच’ शब्‍द को ले उड़े थे और बाद में उन्‍होंने इस शब्‍द को खुद से जोड़ते हुए हमलावर मुद्रा में प्रचार किया था कि ‘’मैं नीच जाति में भले पैदा हुआ, लेकिन मैं नीच स्तर की राजनीति नहीं करता। गरीबों के लिए घर बनाना, माताओं बहनों के लिए शौचालय बनवाना नीच राजनीति है, तो मुझे मंजूर है।… नीची जाति में पैदा होना गुनाह नहीं है।‘’

उसके बाद गुजरात विधानसभा में यह नीच शब्‍द फिर राजनीतिक घमासान का कारण बना जब कांग्रेस नेता मणिशंकर अय्यर ने गांधी परिवार को लेकर नरेंद्र मोदी की एक टिप्‍पणी पर यह कहते हुए तीखी प्रतिक्रिया दी कि ‘’यह (मोदी) बहुत नीच किस्‍म का आदमी है और इसमें कोई सभ्‍यता नहीं है।‘’ इसके बाद मोदी ने फिर से अपनी जाति और गुजराती अस्‍मिता को पूरे चुनाव में मुद्दा बना दिया था। मणिशंकर के इस एक ‘नीच’ शब्‍द ने गुजरात में कांग्रेस की लुटिया डुबो दी थी।

इसीलिए मैने कहा- इस ‘नीच’ को उतना नीचा मत समझिए। शब्‍द और अर्थ के लिहाज से यह भले ही नीचा या अपमानजनक हो, लेकिन राजनीतिक सफलता के लिहाज से यह बहुत ऊंची पायदान पर बैठा हुआ है। लिहाजा आप भी इसका इस्‍तेमाल सोच समझकर ही कीजिएगा।

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