अजब गजब मध्यप्रदेश में अजब गजब घटनाएं होने का सिलसिला बदस्तूर जारी है। ताजा घटना राजधानी भोपाल की है जहां सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी के महापौर आलोक शर्मा ने खुद ही यह खुलासा कर दिया है कि भोपाल नगर निगम के इंजीनियर पांच फीसदी कमीशन लेकर काम कर रहे हैं। महापौर के इस खुलासे के बाद प्रदेश में भ्रष्टाचार को लेकर जारी बहस की और कई दिशाएं खुल गई हैं।
महापौर ने यह ‘रहस्य’ शनिवार को निगम परिषद की बैठक में उजागर किया। यह बैठक इस मायने में भी अनूठी रही कि इसमें भाजपा और कांग्रेस दोनों दलों के पार्षदों ने मिलकर सिटी इंजीनियर राजीव गोस्वामी के खिलाफ निंदा प्रस्ताव पारित किया और उसके बाद उन्हें उनके मूल विभाग में भेज देने का भी फैसला कर लिया गया।
बैठक में दिए गए महापौर के बयान से एक और चौंकाने वाली बात सामने आई। उन्होंने कहा- ‘’निगम के इंजीनियर 5 प्रतिशत कमीशन लेकर काम करते हैं। मेरे पास इस सबके सबूत हैं। निगम में पंडित आलोक शर्मा की सीआईडी काम करती है। मुझे सब पता है, निगम के इंजीनियर मिलकर ई-टेंडरिंग और ई- फाइलिंग सिस्टम को फेल करना चाहते हैं।‘’
महापौर के इस खुलासे के बाद निगम प्रशासन में हड़कंप मचना लाजमी था। ऐसा ही हुआ। निगम कमिश्नर छवि भारद्वाज ने इसे अपनी कार्यक्षमता पर संदेह माना और वे बैठक से उठकर चली गईं। उन्होंने कहा ‘’ये आरोप दुर्भाग्यपूर्ण हैं। इस बारे में मुझसे बात तो करनी चाहिए थी। ऐसा कोई भी मामला ध्यान में लाया जाता तो मैं उस पर कार्रवाई करती। यूं सार्वजनिक आरोप लगाने से अफसरों व कर्मचारियों का मनोबल टूटता है।‘’ महापौर के बयान के विरोध में इंजीनियर भी लामबंद हो गए हैं।
भोपाल नगर निगम की प्रशासनिक और राजनीतिक व्यथा कथा बहुत लंबी है और आज उस पर विस्तार से बात करने का वक्त नहीं है। लेकिन इस पूरे एपिसोड में मुझे कुछ बातें साफ साफ नजर आ रही हैं। एक तो महापौर ने जिस बात को ‘बड़े खुलासे’ के अंदाज में सार्वजनिक किया है, वह ‘उजागर सत्य’ तो भोपाल के बाशिंदों को पहले से ही पता है। लिहाजा इस बयान से शायद ही किसी को कोई आश्चर्य हुआ होगा।
लेकिन हां, आश्चर्य इस बात पर जरूर हुआ कि कमीशन का प्रतिशत इतना कम करके क्यों बताया गया? मध्यप्रदेश में हुई घटनाओं के पूर्वोदाहरण तो बताते हैं कि हमारे यहां कमीशन का प्रचलित न्यूनतम रेट ही दस प्रतिशत है। और हकीकत में इन दिनों अफसरों व ठेकेदारों में विवाद ही इस बात को लेकर है कि अब दस प्रतिशत के बजाय 25 फीसदी की डिमांड होने लगी है।
पिछले दिनों सागर के महापौर अभय दरे के साथ एक ठेकेदार का विवाद इसीलिए हुआ कि ठेकेदार से दस फीसदी के ‘दस्तूर’ के बजाय कथित रूप से 25 फीसदी का कट मांगा गया। ऐसा ही एक केस ग्वालियर में हुआ जहां मध्य क्षेत्र बिजली कंपनी के एक ठेकेदार को नौ साल तक चक्कर काटते हुए भी जब अपने पांच लाख रुपये का भुगतान नहीं मिला तो उसने कंपनी दफ्तर में ही जहर खाकर जान दे दी। मृतक के परिजनों के मुताबिक ठकेदार ‘प्रचलित परंपरा’ के हिसाब से 10 प्रतिशत देने को राजी था, लेकिन संबंधित बाबू उससे 25 प्रतिशत मांग रहा था।
इस लिहाज से देखें तो भोपाल नगर निगम में तो ‘राम राज्य’ है। यहां प्रचलित रेट का ढाई गुना मांगना तो दूर, उलटे उससे भी आधे रेट पर काम किया जा रहा है। इतने सस्ते जमाने की तो आज कल्पना करना भी मुश्किल है। वास्तव में तो निगम कमिश्नर और इंजीनियरों को महापौर के बयान का स्वागत करना चाहिए था कि उन्होंने तुलनात्मक रूप से अपने कर्मचारियों को ‘अल्प या सीमांत’ भ्रष्ट बताया। वैसे महापौर के कथन पर कुछ लोग यह सवाल भी उठा रहे हैं कि यह बयान इंजीनियरों पर आरोप है या उनके द्वारा कम कमीशन लिए जाने पर जताई गई आपत्ति?
महापौर का बयान मध्यप्रदेश में शासन प्रशासन की विशिष्ट शैली के विराट दर्शन करवाता है। पर मेरी जिज्ञासा यह है कि क्या किसी विभाग का मुखिया अपने मातहतों को भ्रष्ट या कमीशनखोर बताकर खुद अपनी जिम्मेदारी से बच सकता है? अपने ही इंजीनियरों की जासूसी करवाने वाले महापौर आखिर उन सूचनाओं का अब तक क्या करते रहे हैं जो उनकी ‘सीआईडी’ ने उन्हें लाकर दी हैं। यदि इन सूचनाओं के बावजूद कोई कार्रवाई नहीं हुई, तो क्या महापौर खुद को इसकी जिम्मेदारी से बरी कर सकते हैं?
क्या कोई मुख्यमंत्री यह कह सकता है कि मेरे जासूस चप्पे चप्पे पर तैनात हैं, मुझे पता है अफसर कमीशन ले रहे हैं। सहज ही सवाल उठेगा कि अरे कमीशन ले रहे हैं, तो आप क्या कर रहे हैं? वैसे यह सवाल प्रदेश में बहुत तेजी से उठ भी रहा है। और उठाने वाले भी सरकार और सत्तारूढ़ दल के ही लोग हैं। चाहे रेत के अवैध उत्खनन का मामला हो या अफसरों के भ्रष्टाचार का, पार्षद से लेकर विधायक तक और सांसद से लेकर मंत्री तक इस तरह के आरोप सार्वजनिक रूप से लगा चुके हैं।
भोपाल महापौर के ताजा बयान पर प्रदेश के मुख्यमंत्री और पार्टी प्रमुख की प्रतिक्रिया तो सामने नहीं आई है, लेकिन महापौर को एक निगम के अध्यक्ष का समर्थन जरूर मिला है। म.प्र. नागरिक आपूर्ति निगम के अध्यक्ष डॉ. हितेष वाजपेयी ने ट्वीट किया- ‘’प्रशासनिक भ्रष्टाचार के विरुद्ध मेयर की लड़ाई में मैं उनके साथ हूं और मुझे उनके जैसे भाजपा नेताओं पर गर्व है।‘’
इधर हमारी छाती भी इस अभूतपूर्व राजनीतिक व प्रशासनिक व्यवस्था के चलते गर्व से फटी जा रही है… चर्रर्रर्र…