सावधान ! रेत पर टिका है ‘सपनों के बजट’ का महल

 

मोदी सरकार का चौथा बजट बारीकी से देखने पर जो बातें सामने आई हैं, वे चौंकाने वाली नहीं बल्कि भयभीत कर देने वाली हैं। बहुत ही चतुराई से पेश किए गए वर्ष 2017-18 के बजट में कमाल की बाजीगरी के साथ आंकड़ों से खेला गया है। सरकार ने बहुत होशियारी से कुछ ऐसे मोटे आंकड़े मीडिया और जनता के सामने पटक दिए हैं कि उनकी चकाचौंध में, बजट के दुशाले पर हुई काली कसीदाकारी नजरों से ओझल हो गई है। यह एक तरह का Illusion (मायाजाल) है जिसमें जो दिखाया जा रहा है या दिख रहा है, वैसा वास्‍तव में है नहीं। सरकार इस चतुराई के लिए अपनी पीठ ठोक सकती है, लेकिन कहीं ऐसा न हो कि आने वाले दिनों में जनता के लिए यह बजट सिर ठोकने का सबब बने।

आइये देखते हैं, किस तरह इस बजट का प्रभावी इंद्रजाल बुना गया है। सबसे पहले सरकार की उस बड़ी घोषणा को लीजिये जिसकी काफी चर्चा है। शुरुआती दौर में मनरेगा को पानी पी-पीकर कोसने वाली सरकार ने दावा किया है कि उसने ग्रामीण क्षेत्र में रोजगार की गारंटी देने वाली इस योजना के लिए पिछली बार की तुलना में इस बार करीब दस हजार करोड़ रुपये का अधिक प्रावधान किया है। लेकिन सचाई कुछ और ही है।

पिछले बजट में मनरेगा के लिए 38500 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया था, लेकिन इस अवधि में मनरेगा का संशोधित अनुमान 47499 करोड़ रुपये का है। यानी वास्‍तव में सरकार मनरेगा पर 31 मार्च 2017 तक 47499 करोड़ रुपये खर्च करेगी। जबकि अगले वित्‍त वर्ष यानी 2017-18 में मनरेगा के लिए 48000 करोड़ रुपये का ही प्रावधान किया है। इसका मतलब यह हुआ कि असलियत में तो सरकार ने मनरेगा के मद में सिर्फ 501 करोड़ रुपये ही बढ़ाए हैं। अब जरा सोचिए कि कहां दस हजार करोड़ बढ़ाने का दावा और कहां सिर्फ 501 करोड़ की असलियत!!

एक और उदाहरण लें। ग्रामीण क्षेत्रों में पीने के पानी की व्‍यवस्‍था करने वाला -राष्‍ट्रीय ग्रामीण पेयजल मिशन-, इस मद में 1050 करोड़ रुपये की बढ़ोतरी दिखाई गई है। जबकि असलियत यह है कि मिशन के लिए वित्‍त वर्ष 2016-17 में 5000 करोड़ का प्रावधान था और इस पर वास्‍तविक खर्च 6000 करोड़ रुपये होगा। वर्ष 2017-18 में मिशन के लिए 6050 करोड़ का प्रावधान किया गया है यानी पुराने खर्च से सिर्फ 50 करोड़ रुपये ज्‍यादा।

आंकड़ों की यह बाजीगरी आपको दर्जनों जगह मिलेगी। यानी वाहवाही लूटने का आंकड़ा कुछ और है…वास्‍तविकता कुछ और।

अब जरा विभागों को दिए जाने वाले बजट की स्थिति भी जान लीजिये। आपको याद होगा, बजट आने से पहले हमने निर्भया फंड का मामला उठाते हुए बताया था कि इस फंड का 2000 करोड़ रुपया बिना उपयोग के ही पड़ा रहा और इस बात पर सुप्रीम कोर्ट तक ने नाखुशी जाहिर की। वित्‍त मंत्री ने अपने बजट भाषण में संसद को जो आंकड़े दिए हैं वे कई विभागों की कार्यक्षमता पर सवालिया निशान लगाते हैं।

सबसे महत्‍वपूर्ण मामला शिक्षा से जुड़े सर्वशिक्षा अभियानका है। पिछले बजट में सरकार ने इस मद में 28330 करोड़ रुपये का प्रावधान किया था, लेकिन 31 मार्च तक इसमें से सिर्फ 28251 करोड़ ही खर्च होने का अनुमान है। यानी स्‍वीकृत राशि से 79 करोड़ रुपये कम। इसी तरह हरित क्रांति के लिए 12560 करोड़ रुपये का बजट रखा गया था लेकिन इसमें से सिर्फ 10360 करोड़ ही खर्च हो पाएंगे। यानी पूरे 1200 करोड़ रुपये खर्च ही नहीं किये जा सके।

यही हाल महिला सशक्तिकरण एवं संरक्षण मिशन का है। उसके लिए 907 करोड़ रुपये का बजट मंजूर किया गया था लेकिन खर्च हो पाएंगे सिर्फ 821 करोड़। अर्थात पूरे 86 करोड़ रुपये कम। पर्यावरण, वानिकी और वन्‍य जीवों के संरक्षण और संवर्धन को लेकर बहुत बातें होती हैं। लेकिन असलियत में होता क्‍या है,यह जानकर आप हैरत में पड़ जाएंगे। इन तीनों बातों के लिए 2016-17 के बजट में 850 करोड़ रुपये का प्रावधान था, लेकिन खर्च हो पाएंगे महज 819 करोड़,मतलब 31 करोड़ रुपये कम।

एक और दिलचस्‍प मामला नमामि गंगे-राष्‍ट्रीय गंगा योजना का है। खुद प्रधानमंत्री ने गंगा के शुद्धिकरण से जुड़े इस मामले को अपनी सर्वोच्‍च प्राथमिकता में रखा था। लेकिन हालत यह है कि इसके लिए जिन 2150 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया था उनमें से खर्च सिर्फ 1441 करोड़ ही होंगे। यानी 709 करोड़ रुपये का भारी भरकम बजट खर्च ही नहीं हो पाया। यह बात अलग है कि अगले वित्‍त वर्ष के लिए इस मद में फिर से 2250 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है।

इसीलिये मैंने कहा कि बजट के आंकड़ों को यदि ध्‍यान से देखेंगे तो ऐसी कई कंदराएं दिखाई देंगी जिनमें जाकर जनता की गाढ़ी कमाई पता नहीं कहां खो जाती है।

चलते चलते एक और गंभीर बात… सरकार के बजट तंत्र से भीतर तक जुड़े रहे एक अत्‍यंत वरिष्‍ठ अधिकारी ने यूं ही बातचीत में मुझे बताया कि बुधवार को जो बजट संसद में पेश किया गया है, उसके सारे अनुमान नोटबंदी से पहले की आर्थिक स्थिति और आकलन पर आधारित हैं। नोटबंदी के बाद जो स्थिति बनी है उसका असर आने वाले दिनों में क्‍या होगा किसी को पता नहीं। अंदेशा यह है कि कहीं नए बजट के सारे अनुमान धड़ाम से नीचे न आ गिरें।

दुआ कीजिये ऐसा न हो…

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