उपकार भी शेरों पर करो, गीदड़ों पर नहीं… छोटी सी कहानी

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शेर-शेरनी जंगल में शिकार की तलाश में दूर तक निकल गए। इधर बच्‍चे अकेले थे।

मांबाप देर तक नही लौटे तो बच्चे भूख से छटपटाने लगे। उसी समय एक बकरी वहां से निकली। उसे दया आई और उसने उन बच्चों को दूध पिलाया। बच्‍चे उसके साथ मस्ती करने लगे। तभी शेर शेरनी लौटे और बच्‍चों को बकरी के साथ देख गुस्‍सा होकर उस पर हमला करने ही वाले थे कि बच्चों ने कहा- इसने हमें दूध पिलाकर हमारी भूख मिटाई है, नहीं तो हम मर जाते।

इस बात से शेर खुश हुआ। कृतज्ञ भाव से उसने बकरी से कहा- हम तुम्हारा उपकार कभी नही भूलेंगे, जाओ आजादी के साथ जंगल में घूमो फिरो, मौज करो।

अब बकरी जंगल में निर्भय होकर रहने लगी। जहां चाहती वहां की घास और पत्‍ते खाती। कोई उससे कुछ नहीं कहता। 

चील ने जब यह दृश्य देखा तो उसने हैरानी से बकरी से इसका राज पूछा। बकरी ने पूरी कहानी सुना दी। चील को उपकार का महत्व समझ में आया।

बकरी की कहानी से प्रेरित होकर चील ने सोचा कि क्‍यो न वह भी यह प्रयोग करे। एक दिन उसने देखा कि चूहे के छोटे-छोटे बच्चे दलदल मे फंसे हैं, वे जितना निकलने का प्रयास करते, उतना ही धंसते जाते।

चील ने बच्‍चों को पकड़-पकड़ कर सुरक्षित स्थान पर पहुंचाया। बच्चे भीगे थे, सर्दी से कांप रहे थे। चील ने उन्‍हें अपने पंखों में छुपा लिया। पंखों की गरमी से बच्चों को बड़ी राहत मिली।

बच्‍चे जब ठीक हो गए तो चील उड़कर जाने लगी। लेकिन वह यह देखकर हैरान रह गई कि चूहे के बच्चों ने उसके पंख कुतर डाले थे।

दुखी होकर चील ने यह घटना बकरी को सुनाई। उसने पूछा- तुमने भी उपकार किया और मैंने भी, फिर दोनों को अलग अलग फल क्‍यों मिला?

बकरी हंसी और उसने गंभीरता से कहा-

उपकार भी शेर जैसों पर किया जाता है चूहों पर नहीं।

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यह प्रेरक लघुकथा हमारी पाठक डॉ. नीलम महेंद्र ने अपने वाट्सएप संदर्भ से भेजी है।

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