तुम धीरे-धीरे मरने लगते हो
अगर तुम यात्रा नहीं करते
अगर तुम पढ़ते नहीं
अगर तुम जिंदगी की आवाजों पर कान नहीं देते
अगर तुम खुद की तारीफ नहीं करते
तुम धीरे-धीरे मरने लगते हो।
जब तुम अपने जमीर को कुचल देते हो,
जब कोई तुम्हारी मदद करना चाहे
और तुम उसे ठुकरा देते हो
तुम धीरे-धीरे मरने लगते हो।
अगर तुम अपनी आदतों के गुलाम हो जाते हो,
रोज उन्हीं रास्तों पर चलते हो
अगर तुम अपनी दिनचर्या नहीं बदलते
अगर तुम विभिन्न रंग नहीं पहनते
या तुम अजनबियों से बात नहीं करते
तुम धीरे-धीरे मरने लगते हो।
जब तुम अपने आवेगों से आंख नहीं मिलाते
जब तुम अपने जज्बातों की पुकार पर ध्यान नहीं देते
जिनसे तुम्हारी आँखों में चमक आ जाती है
और तुम्हारा दिल तेजी से धड़कने लगता है
तुम धीरे-धीरे मरने लगते हो।
अगर तब तुम अपने जीवन को नहीं बदलते
जब तुम अपने काम से असंतुष्ट होते हो
या अपने प्यार से,
अगर तुम अनिश्चित के प्रति सुरक्षा को दांव पर नहीं लगाते,
अगर तुम सपने का पीछा नहीं करते,
अगर तुम रोक लेते हो
जीवन में एक बार ही सही
अच्छी नसीहत से दूर जाते अपने कदमों को
तुम धीरे-धीरे मरने लगते हो।
(पाब्लो नेरुदा)
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चिली के प्रसिद्ध कवि पाब्लो नेरुदा का मूल नाम नेफताली रिकर्डो रेइस था। अर्जेन्टीना में 1904 में जन्मे पाब्लो नेरुदा को पश्चिम की आधुनिक कविता को नया आयाम देने के लिए जाना जाता है। उन्हें वर्ष 1971 में नोबेल पुरस्कार मिला था। उस समय उनके बारे में कहा गया कि नोबेल पुरस्कार इन्हें दिया गया “ऐसी कविता के लिए जो अपने भीतर समाहित मूलभूत ताकत के द्वारा एक महाद्वीप के भाग्य और सपनों को जीवंत करती है”।
कविता के बारे पाब्लो का कहना था कि “एक कवि को भाइचारे और एकाकीपन के बीच एवं भावुकता और कर्मठता के बीच, व अपने आप से लगाव और समूचे विश्व से सौहार्द व कुदरत के उद्घाटनों के मध्य संतुलित रह कर रचना करना जरूरी होता है और वही कविता होती है।”