कृषि क्षेत्र में पिछले कुछ सालों से लगातार बेहतर उत्पादन करने वाले मध्यप्रदेश को नीति आयोग की गवर्निंग काउंसिल बैठक में खास महत्व मिलना, इस प्रदेश के लिए सम्मान की बात है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में रविवार को दिल्ली में हुई इस बैठक में मोदी ने देश के सभी राज्यों को टीम इंडिया का हिस्सा बताते हुए कहा कि वे केंद्र सरकार के साथ मिल कर काम करें।
प्रधानमंत्री का यह भी कहना था कि ‘नए भारत’ (वैसे हमेशा की तरह इसे भी ‘न्यू इंडिया’ का नाम दिया गया है) के विचार को सभी राज्यों के सामूहिक प्रयासों और सहयोग से ही हासिल किया जा सकता है। जो टीम इंडिया यहां जुटी है उसकी सामूहिक जिम्मेदारी बनती है कि 2022 यानी स्वतंत्रता की 75वीं वर्षगांठ तक का भारत का दृष्टिपत्र तैयार करें, जिससे देश अपने लक्ष्यों को हासिल करने की दिशा में बढ़ सके।
नीति आयोग की इस बैठक में कृषि सुधार पर सबसे ज्यादा जोर दिया गया। इसमें सबसे बड़ा टास्क देश में किसानों की आय दुगुनी करने का है। खुद प्रधानमंत्री ने मध्यप्रदेश में 18 फरवरी, 2016 को सीहोर जिले के शेरपुर गांव में नई फसल बीमा योजना लांच करते हुए कहा था कि देश के सभी राज्य आने वाले पांच सालों में किसानों की आय दोगुनी करने का संकल्प लें।
इस बैठक में मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान ने राज्य में हुए अभूतपूर्व कृषि विकास को लेकर अपने प्रेजेंटेशन में कहा कि उनकी सरकार ने देश में सबसे पहले किसानों की आय को दोगुना करने का रोड मेप तैयार कर अप्रैल-2016 से उस पर अमल शुरू कर दिया है। इसके पांच आयाम हैं- कृषि लागत में कमी, उत्पादकता एवं उत्पादन में वृद्धि, कृषि विविधिकरण, कृषि उत्पाद का बेहतर मूल्य तथा खाद्य प्र-संस्करण और कृषि क्षेत्र में आपदा प्रबंधन।
चौहान का यह भी कहना था कि किसानों को आगे बढ़ाने के लिए 19 बिन्दुओं पर काम किया जा रहा है। इनमें सरकारी स्रोतों से सिंचाई का विस्तार, खेती के लिए ज्यादा बिजली, बिना ब्याज फसल ऋण, कृषि क्षेत्र का विस्तार, यंत्रीकरण को बढ़ावा, कृषि का विविधिकरण, उन्नत बीजों का प्रसार, मिट्टी का प्रबंधन, कृषि तकनीकी का विस्तार, जैविक खेती को प्रोत्साहन, भण्डारण सुविधाओं का विस्तार आदि शामिल है।
यह बात सही है कि मध्यप्रदेश में खेती किसानी के लिए जो प्रयास हो रहे हैं उससे उत्पादन में तो बढ़ोतरी हुई है। और इसी का परिणाम है कि प्रदेश ने कृषि क्षेत्र में लगातार पांच साल कृषि कर्मण पुरस्कार प्राप्त किया है। राज्य को 2011-12, 2012-13, 2014-15 में तीन बार सम्पूर्ण खाद्यान्न में तथा 2013-14 एवं 2014-15 में गेहूँ उत्पादन में उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए कृषि कर्मण पुरस्कार प्रदान किया गया।
पिछले पाँच सालों में राज्य की कृषि विकास दर औसतन 18 प्रतिशत रही है। दलहन, तिलहन, सोयाबीन, चना, मसूर, उड़द, टमाटर, अमरूद, लहसुन, जैविक कृषि उत्पाद में देश में हम अग्रणी राज्य है। जबकि गेहूँ, अरहर, राई-सरसों, धनिया, संतरा, हरी मटर उत्पादन में दूसरे स्थान पर है। इन उपलब्धियों को देखते हुए निश्चित ही मध्यप्रदेश कृषि उत्पाद बढ़ाने वाले राज्यों के लिए रोल मॉडल हो सकता है।
लेकिन केवल उत्पादन बढ़ जाने और लगातार पांच बार कृषि कर्मण प्राप्त कर लेने से ही यह नहीं कहा जा सकता कि मध्यप्रदेश में किसानों की हालत सुधर गई है। खेती की इस तरक्की को किसान की व्यक्तिगत तरक्की के साथ जोड़ा नहीं जा सका है। किसानों की सामाजिक और आर्थिक स्थिति में जब तक सुधार नहीं होता कृषि उत्पादन के ये आंकड़े हमेशा मुंह चिढ़ाते रहेंगे।
किसानों की स्थिति को समझने के लिए कुछ उदाहरणों को जान लेना जरूरी है। जैसे इसी साल बजट सत्र के दौरान सरकार ने राज्य विधानसभा में जो जानकारी दी है उसके मुताबिक नवंबर 2016 से फरवरी 2017 तक के पांच महीनों में प्रदेश में 106 किसानों और 181 खेतिहर मजदूरों ने आत्महत्या की है। एक रिपोर्ट के अनुसार मध्यप्रदेश के आधे से अधिक किसान कर्जदार हैं।
इसके अलावा सबसे बड़ा मुद्दा खेती की बढ़ती लागत और किसानों को उनकी उपज का उचित मूल्य न मिलना है। राज्य का किसान तो प्रदेश की तरक्की में भरपूर योगदान कर रहा है लेकिन किसान की तरक्की में व्यवस्था का योगदान उस तुलना में पर्याप्त नहीं है। पिछले दिनों राज्य के प्याज, आलू और टमाटर उत्पादक किसानों की दुर्दशा पूरी दुनिया ने देखी है। इन किसानों को उचित मूल्य न मिलने के कारण अपनी फसल सड़कों पर फेंकनी पड़ी थी। हाल ही में यही हाल प्रदेश के कई इलाकों में संतरा उत्पादक किसानों का हुआ है।
यदि खाद्यान्न की बात लें तो बंपर फसल लेकर आने वाले किसान आज भी बिचौलियों या बाजार की ताकतों के हाथों शोषण का शिकार होने को मजबूर हैं। पिछले दिनों तुअर की खरीदी को लेकर यही स्थिति बनी थी। राज्य का सोयाबीन उत्पादक किसान तो कई सीजन से मानो लुटा पिटा बैठा है।
कहने का आशय सिर्फ इतना है कि खेती लाभ का धंधा तो बन रही है लेकिन किसके लिए? क्या उन किसानों के लिए जो दिन रात खून पसीना बहा कर लगातार उत्पादन बढ़ा रहे हैं या उन लोगों के लिए जो किसानों की इस मेहनत के एवज में खुद वाहवाही का बोनस प्राप्त कर रहे हैं।