वह खबर रविवार को दिन से ही चर्चा में आनी शुरू हो गई थी। रात होते होते वह सुर्खियों में शुमार हो गई। सोमवार की सुबह करीब करीब सारे अखबारों में उसका जिक्र था और दिन चढ़ते चढ़ते सारे टीवी चैनल उस पर हल्ला बोल रहे थे। मुख्य मीडिया में जितना हल्ला था उससे ज्यादा सोशल मीडिया उबल रहा था। चारों तरफ टुकड़े बिखरे हुए थे कहीं किसी मवेशी के तो कहीं गड़े मुर्दों के।
केरल से चली उस खबर ने पूरे देश की राजनीति को सुर्ख कर दिया। केंद्र सरकार के एक नोटिफिकेशन का विरोध करने के लिए केरल में कांग्रेसियों जो रास्ता अख्तियार किया वह भारतीय राजनीति का सबसे निकृष्ट, घिनौना और बर्बर तरीका कहा जा सकता है। उन्होंने शनिवार को सरेआम एक गाय को काट डाला।
मामले को समझने से पहले उस नोटिफिकेशन को जान लीजिए जो इस सारे फसाद की जड़ में है। दरअसल पर्यावरण मंत्रालय ने ‘द प्रीवेंशन ऑफ क्रुएलिटी टु एनिमल्स (रेगुलेशन ऑफ लाइवस्टॉक मार्केट्स) नियम 2017’ को नोटिफाई कर दिया है। इसका मकसद मवेशी बाजार में जानवरों की खरीद-बिक्री को नियमित करने के साथ मवेशियों के खिलाफ क्रूरता रोकना है।
नए नियमों के मुताबिक किसी भी मवेशी को खरीदने या बेचने से पहले यह सुनिश्चित करना होगा कि ऐसा उस मवेशी के कत्ल के मकसद से नहीं किया जा रहा है। इसके लिए बेचवाल और खरीदार दोनों को अंडरटेकिंग देना पड़ेगी। पर्यावरण मंत्री हर्षवर्धन के मुताबिक गाय, सांड, भैंस, बैल, बछड़े, ऊंट जैसे जानवर इस दायरे में आएंगे।
नोटिफिकेशन के मुताबिक खरीदने वाले को ये भी घोषित करना होगा कि वो मवेशी को खेती के उद्देश्य से ले जा रहा है और 6 महीने तक वह उसे नहीं बेचेगा। अब धार्मिक उद्देश्य के लिए भी मवेशी की बलि भी नहीं दी जा सकेगी। हालांकि ये नियम बाजार के लिए हैं और मवेशियों की व्यक्तिगत खरीद-बिक्री को इसमें शामिल नहीं किया गया है। लेकिन चूंकि बूचड़खानों के लिए 50 से 60 फीसदी जानवर मवेशी बाजारों से ही आते हैं इसलिए माना जा रहा है कि नए नियमों का मीट के व्यापार पर व्यापक असर पड़ेगा।
जैसे ही यह नोटिफिकेशन सामने आया उसका तत्काल विरोध हुआ। इस विरोध की अगुवाई केरल के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन ने की। उन्होंने कहा, ‘’आज मवेशियों को मारने पर पाबंदी लगाई जा रही है, कल मछली खाने पर भी रोक लगा दी जाएगी। केंद्र के इस कदम से गरीब, दलित और किसानों के रोजगार पर बुरा असर पड़ेगा।‘’ माकपा की छात्र इकाई स्टूडेंट फेडरेशन ऑफ इंडिया की केरल शाखा ने 200 स्थानों पर बीफ फेस्ट आयोजित करने का ऐलान कर दिया।
तमिलनाडु और पुडुचेरी में भी फैसले का विरोध हुआ और पुडुचेरी के मुख्यमंत्री वी. नारायणसामी ने कहा कि सरकार को लोगों के खाने-पीने की पसंद पर बंदिशें थोपने का कोई हक नहीं है। यह फैसला “निरंकुशतावादी और लोगों के खाने-पीने की पसंद के अधिकारों का स्पष्ट ‘हनन’ है। केंद्र की मोदी सरकार को लोगों पर अपने फैसले ‘थोपने’ का कोई हक नहीं है।‘’
लेकिन केरल में कन्नूर जिले के कांग्रेसियों ने तो रविवार को सारी हदें तोड़ दीं। उन्होंने सरेआम एक गाय को काटा और कथित तौर पर उसका मांस वितरित भी किया। इस घटना का वीडियो देखते ही देखते सोशल मीडिया पर वायरल हो गया। हास्यास्पद रूप से कांग्रेस ने पहले तो वीडियो को ही फर्जी बताया लेकिन जब देखा कि मामला हाथ से निकल रहा है तो कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने ट्वीट कर कहा कि ‘’केरल में जो भी हुआ वो कल्पना से परे और बर्बर है, यह मुझे और कांग्रेस पार्टी को पूरी तरह नामंजूर है। हम ऐसी घटना की कड़ी निंदा करते हैं।‘’ कांग्रेस ने खुद को बचाने के लिए कन्नूर के कुछ कार्यकर्ताओं को पार्टी से निलंबित करने का भी ऐलान किया।
कन्नूर की घटना ने जाहिर तौर पर कांग्रेस को भारी नुकसान पहुंचाया है। ऐसे समय जब उसे भारतीय जनता पार्टी की राजनीतिक रणनीति से निपटना वैसे ही मुश्किल हो रहा है, कन्नूर की घटना ताबूत में कील साबित हो सकती है। निश्चित रूप से यह मुद्दा राजनीतिक रंग लेगा और इसमें सिवाय दाएं बाएं होकर अपना बचाव करने के कांग्रेस के पास कोई रास्ता ही नहीं है। उसके अपने ही लोगों ने पार्टी को भारी संकट में डाल दिया है।
लेकिन इस सबसे अलग एक बड़ा प्रश्न पूरे भारतीय परिदृश्य पर खड़ा हो रहा है। आखिर क्या वजह है कि लोग कानून से नहीं डर रहे। विरोध जताने के बर्बर और जघन्यतम तरीके इस्तेमाल किए जा रहे हैं। कहीं गोरक्षा के नाम पर किसी की हत्या कर दी जाती है तो कहीं मवेशी रक्षा कानून का विरोध करने के लिए सरेआम गाय को काट दिया जाता है। दिल्ली में सार्वजनिक रूप से पेशाब करने से रोकने पर एक ई-रिक्शा चालक की हत्या हो जाती है तो रामपुर में मनचले सरेआम दो लड़कियों के साथ बर्बर व्यवहार करते हुए उनका वीडियो जारी कर देते हैं।
ये सारी घटनाएं दर्शा रही हैं कि गलाकाट राजनीति से लेकर गायकाट राजनीति तक हिंसा का दायरा बढ़ता ही जा रहा है। किसी भी सभ्य समाज में इसे स्वीकार नहीं किया जा सकता। इससे पहले कि लोग कानून को पैर की जूती समझने लगें, सरकार, राजनीति और समाज तीनों को मिलकर इस प्रवृत्ति को सख्ती से रोकना होगा।