मीडिया में पिछले 24 घंटों के दौरान आरक्षण को लेकर राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की अवधारणा के बारे में जो भ्रम फैलाया जा रहा है वह मीडिया के पेशे से ही घिन पैदा करने वाला है। यह कतई जरूरी नहीं कि संघ की बातों, विचारों या अवधारणाओं से सहमत हुआ जाए, लेकिन मीडिया को अपने पेशे और उसकी साख की जरा भी चिंता है तो उसके लिए यह जरूरी ही नहीं बल्कि अनिवार्य है कि वह यदि सच को सच की तरह पेश न कर सके तो भी कम से कम झूठ की तरह तो बयान न करे।
मैं समझता हूं जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल में संघ के प्रचार प्रमुख मनमोहन वैद्य के बयान के हवाले से जो खबरें बन रही हैं उनमें मीडिया की भूमिका समाज के लिए ज्यादा घातक है। क्योंकि मूल बयान में वैद्य ने यह कहीं कहा ही नहीं है कि आरक्षण समाप्त होना चाहिये। जबकि शनिवार को देश के अधिकांश अखबार और शुक्रवार रात से अभी तक इलेक्ट्रानिक मीडिया इसी को सुर्खियां अथवा हेडलाइन बनाकर परोस रहे हैं।
मैं जानता हूं कि इस विषय पर मीडिया पिछले 24 घंटों में इतना भ्रम फैला चुका है कि अब यदि कोई सही या तार्किक बात भी कहेगा तो उस पर संघ समर्थक होने का लेबल चस्पा कर दिया जाएगा। लेकिन यदि वास्तव में सच जानने और घटना का तार्किक विश्लेषण करने में हमारी रुचि है तो सबसे पहले वह संवाद सुन लीजिये जो जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल के दौरान शुक्रवार को मनमोहन वैद्य के साथ हुआ।
कार्यक्रम का संचालन राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ पर किताब लिख रहीं प्रज्ञा तिवारी कर रही थीं और उन्होंने मनमोहन वैद्य से सवाल पूछा कि-
‘’क्या आपको लगता है, (जैसा कि) आपने कहा कि, समान अधिकार और अवसर लोगों को मिलना चाहिए… सच्चर कमेटी की जो रिपोर्ट आई है… अल्पसंख्यकों की जो आर्थिक स्थिति है, वो खराब रही है, कई राज्यों में, अल्पसंख्यकों को आरक्षण देना (क्या) एक उपाय है उनकी आर्थिक स्थिति सुधारने के लिए…’’
इस सवाल का जवाब देते हुए मनमोहन वैद्य ने कहा-
‘’आरक्षण का विषय भारत में SC-ST (अनुसूचित जाति व जनजाति) के लिए अलग संदर्भ में आया है। हमारे समाज के बंधुओं को हमने सैकड़ों साल तक सम्मान से, सुविधाओं से, शिक्षा से वंचित रखा है, ये बहुत अन्याय हुआ है… ये एकदम गलत हुआ है… उसका परिमार्जन करने की जिम्मेदारी हमारी है। एक विशेष जाति में पैदा होने के कारण उनको सबसे दूर रखा गया, ये ठीक नहीं है… इसलिये उनको साथ लाने के लिये आरक्षण का प्रावधान संविधान में आरंभ से किया गया है। डॉक्टर आंबेडकर ने कहा है- ‘’किसी भी राष्ट्र में हमेशा के लिए ऐसा आरक्षण का प्रावधान रहना ये अच्छा नहीं है… जल्द से जल्द इसकी आवश्यकता निरस्त होकर सबको समान अवसर देने का समय आना चाहिए..’’ ये भी आंबेडकर ने कहा है। ये आरक्षण एक सेवा है। बाकी अन्य आरक्षण के बदले में सबको अवसर अधिक दिए जाएं, शिक्षा अधिक दी जाए, इसका प्रयत्न करना चाहिए। इसके आगे आरक्षण देना थोड़ा अलगाववाद बढ़ाने वाली बात है, ऐसा लगता है। तो SC-ST का पिछड़ा रहने के पीछे कई वर्षों से किया हुआ अन्याय के कारण है, ऐसा अन्य स्थान पर नहीं है, इसलिए उसका उपाय अन्य तरह से ढूंढना अधिक अच्छा रहेगा।‘’
इस घटनाक्रम में हेरफेर करने की गुंजाइश इसलिए भी नहीं है क्योंकि वैद्य से पूछा गया सवाल और उनके द्वारा दिया गया जवाब दोनों ही वीडियो क्लिपिंग के रूप में सोशल मीडिया पर मौजूद हैं। लेकिन आंख के अंधे मीडिया के लोग उस वीडियो की क्लिपिंग इलेक्ट्रानिक मीडिया पर चलाने और अखबारों में उसका लिंक देने के बावजूद यह जहमत नहीं उठा रहे हैं कि उसे कम से कम एक बार ध्यान से देख तो लें। मुझे लगता है यह मीडिया का सरासर दोगलापन या दोमुंहापन है जो हम सच/प्रमाण/तथ्य सामने मौजूद होते हुए भी या तो उसकी अनदेखी कर रहे हैं या फिर साजिशन अथवा गैर साजिशन उसका अपनी ही तरह से अर्थ लगाकर, उसे भ्रामक रूप में देश की जनता के सामने प्रस्तुत कर रहे हैं।
अब जरा मूल सवाल पर आ जाइये। कार्यक्रम की संचालक ने वैद्य से पूछा क्या है? प्रज्ञा तिवारी का वह सवाल पत्रकारिता की भाषा में कहें तो ‘लोडेड सवाल’ है। वे आरक्षण के बहाने मनमोहन वैद्य से यह जानना चाहती हैं कि क्या संघ मुस्लिमों को अलग से आरक्षण देने के पक्ष में है? शायद इसीलिये उन्होंने सच्चर कमेटी की रिपोर्ट का भी जिक्र किया है और फिर अल्पसंख्यकों की खराब आर्थिक स्थिति का हवाला देते हुए वे जानना चाह रही है कि क्या उनकी यानी अल्पसंख्यकों की आर्थिक स्थिति सुधारने के लिए उन्हें आरक्षण देना भी कोई उपाय हो सकता है?
अब इस संदर्भ में मनमोहन वैद्य का जवाब फिर से पढि़ये। अव्वल तो संघ की विचारधारा के लिहाज से और उससे भी ऊपर भारतीय संविधान की व्यवस्थाओं और सुप्रीम कोर्ट के अनेक फैसलों के संदर्भ में, मनमोहन वैद्य तो क्या, किसी भी समझदार नागरिक के लिए यह कहना संभव ही नहीं है कि अल्पसंख्यकों (यहां इस शब्द का अर्थ मुस्लिम के रूप में अधिक है) को अलग से आरक्षण की व्यवस्था हो। तो वैद्य ने क्या कहा? उन्होंने भारत के संविधान की व्यवस्थाओं और सामाजिक तानेबाने का जिक्र करते हुए ऐसे लोगों के लिए, जो अल्पसंख्यकों के लिए आरक्षण का सवाल उठाते हैं, राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (और भारतीय संघ भी) की अवधारणा को स्पष्ट करते हुए कहा कि हमारे संविधान में अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षण की व्यवस्था अलग संदर्भ में की गई है। यानी उस आरक्षण को किसी अन्य वर्ग या संप्रदाय के आरक्षण से जोड़कर नहीं देखा जाना चाहिये।
वैद्य बहुत साफ तौर पर कहते हैं कि अनुसूचित जाति व जनजाति को भी आरक्षण इसलिये दिया गया क्योंकि भारतीय समाज ने सैकड़ों सालों तक उन्हें सम्मान, सुविधा और शिक्षा से वंचित रखा। वे खुलकर कह रहे हैं कि इस रूप में इन वर्गों के साथ बहुत अन्याय हुआ है और यह गलत बात है। इस अन्याय व गलती को सुधारने की जिम्मेदारी भी इसी समाज की है। लिहाजा इन वर्गों को अन्य वर्गों के साथ लाने के लिये ही आरक्षण का प्रावधान किया गया है। यानी वैद्य इस आरक्षण को समाज के वंचित वर्गों की सेवा बता रहे हैं।
उनके बयान का दूसरा हिस्सा उनका नहीं है बल्कि वे संविधान निर्माता भीमराव आंबेडकर को कोट करते हुए कह रहे हैं कि- ‘’किसी भी राष्ट्र में हमेशा के लिए ऐसा आरक्षण का प्रावधान रहना ये अच्छा नहीं है… जल्द से जल्द इसकी आवश्यकता निरस्त होकर सबको समान अवसर देने का समय आना चाहिए..’’ यानी वैद्य ने सिर्फ आंबेडकर के कहे हुए का जिक्र भर किया है। अब यदि किसी को उनकी इस बात पर मिर्ची लगती है तो वह वैद्य या संघ को गाली देने से पहले (हिम्मत हो तो) भीमराव आंबेडकर को गाली देकर दिखाये। जाहिर है, ऐसा करने वाले की खाल नोच ली जाएगी, इसलिए आंबेडकर के कथन को वैद्य के मुंह में डालकर मीडिया के भेडि़ये उन्हें खा जाने पर तुले हैं। मेरे हिसाब से न तो यह पत्रकारिता है और न ही मीडिया का काम।
आखिर में वैद्य के बयान के अंतिम हिस्से को लीजिये। जिसमें वास्तव में संघ के विचार का लेना देना नजर आता है। यहां भी वैद्य बहुत बचते हुए कहते हैं कि (SC-ST व पिछड़ों को छोड़कर) बाकी अन्य कोई भी आरक्षण देने के बजाय कोशिश यह हो कि सभी के लिए समान अवसर उपलब्ध कराये जाएं। क्योंकि इसके आगे (यानी अल्पसंख्यकों को) आरक्षण देना थोड़ा अलगाववाद बढ़ाने वाली बात है।
अब यदि मीडिया अथवा राजनीतिक दलों को इस बात पर आपत्ति है तो वे खुलकर कहें कि वे समान अवसर दिए जाने के खिलाफ हैं। चूंकि मीडिया को भी आरक्षण के खात्मे की बात करके ज्यादा टीआरपी मिलती है इसलिए वह वैद्य की बात में से यह मुद्दा कभी नहीं उठाएगा कि उन्होंने सभी को समान अवसर देने वाली व्यवस्था बनाने पर जोर दिया है।
और वैद्य के बयान के निहितार्थों के इतने सारे एंगल के बावजूद यदि किसी जड़बुद्धि की समझ में बात नहीं आती तो वह सिर्फ उनके कथन का अंतिम वाक्य सुन ले जिसमें वे कहते हैं कि ‘’SC-ST के पिछड़े रहने की वजह कई वर्षों से किया हुआ अन्याय है, ऐसा अन्य स्थानों पर नहीं है, इसलिये उसका उपाय अन्य तरह से ढूंढना अधिक अच्छा रहेगा।‘’ यानी वैद्य वर्तमान आरक्षण का विरोध नहीं उलटे समर्थन कर रहे हैं, यह कहते हुए कि इन वर्गों के अलावा (अल्पसंख्यकों सहित) यदि अन्य वर्गों को कोई सुविधा देनी है, तो उनके लिए आरक्षण नहीं बल्कि कोई और उपाय किया जाना बेहतर होगा।
दरअसल इस पूरे प्रकरण में ऐसा लगता है कि मीडिया खुद पांच राज्यों के चुनाव से पहले अनावश्यक बखेड़ा खड़ा करना चाहता है। यह साजिश भी हो सकती है और टीआरपी के धंधे में अधिक से अधिक माल बटोरने की चाल भी। हंसी तो तब आती है जब अपने बयान को स्पष्ट करते हुए वैद्य कहते हैं कि उन्होंने आरक्षण को खत्म करने की बात नहीं कही और मीडिया उनके इस बयान को यह कहते हुए सुर्खी बनाता है कि- ‘’वैद्य ने सफाई देते हुए कहा’’…
वास्तव में गंदगी तो मीडिया फैला रहा है। सफाई देने की जरूरत वैद्य को नहीं बल्कि खुद मीडिया को है। उसे खबरों पर इस तरह खुलेआम शौच करने से बाज आना होगा। भूलना नहीं चाहिये कि देश में इन दिनों खुले में शौच करने के खिलाफ अभियान चल रहा है। वह थोड़ी तो शर्म करे…
wah. wah. shandar…
धन्यवाद सर