महानंद परमहंस स्वामी हिरन्यमानन्द जी ‘गुरु जी’ का वैश्विक महामारी कोरोना पर आध्यात्मिक आकलन एवं मार्गदर्शन।
————-
पूरे विश्व में कोरोना आक्रमण वेद का एक संदेश है। आज विश्वव्यापी फैली हुई कोरोना वायरस का आक्रमण मनुष्य जाति के प्रति समय रहते हुए सजग होने के लिए वेद भगवान का एक संदेश है। वैदिक अनुशासन के प्रति छेड़छाड़ करने का दुष्प्रभाव, यह तो केवल शुरुआत है। समय रहते हुए अभी भी नहीं चेते तो पृथ्वी की संपूर्ण मानव जाति को इसके दुष्परिणाम भुगतने होंगे।
वैदिक स्पर्शा – स्पर्श , विवेक, वर्णाश्रम, धर्म, जाति, भेद प्रथा आदि अनुशासन के पीछे छिपा हुआ वैज्ञानिक रहस्य, यह बीमारी मनुष्यो को आंखों में उंगली डालकर दर्शाता है।
भूतम- भव्यम भविष्यति सर्व वेदात प्रसिद्धति- अतीत वर्तमान और भविष्य का सभी कुछ वेद के द्वारा ही संचालित और नियंत्रित होता है ।
वेद के अनुसार यह वायरस सेकड़ो संक्रामक रोग विजाणुओ में से एक है । यह सभी एक- एक दुष्ट अदृश्य राक्षस है । स्वधर्म पालनकारी, सदाचारी मनुष्य को यह राक्षस आक्रमण नहीं कर सकते। वेद विरुद्ध कर्म करने के दुष्प्रभाव से मनुष्य इस राक्षस के आक्रमक करने के लायक बन जाता है।किसी अशुभ मनुष्यों को आक्रमण करने के बाद यह स्पर्श संक्रामक राक्षसों ने वह व्यक्ति को माध्यम बनाकर क्रमशः उनको स्पर्श के द्वारा आसपास के व्यक्ति को भी अपना हवस का शिकार बनाता है। एक व्यक्ति से यह बीमारी 500 व्यक्तियों तक फैल सकती है।
स्वयं ऋग्वेद कह रहे हैं- हे “गूगगूल (गूगल) वृक्ष” जिस सभी सक्रिय परंतु अदृश्य राक्षसों ने प्राणियों का अहित करता है उसी से रक्षा करने के लिए तुम हिरण्य जैसे शक्ति धारण करते हो। यह वेद वाणी से स्पष्ट है कि जिस घर में नित्य गूगगूल (गूगल) वृक्ष का उपयोग होता है, उस घर के किसी को भी यह कोरोना वायरस से डरने की कोई जरूरत नहीं है। केवल दूसरे प्राणियों के संपर्क से थोड़ा दूर रहना चाहिए। पहले हर घर में गूगल का उपयोग होता था। अभी हर मंदिर में भी अगरबत्ती का उपयोग हो रहा है। यह एक वेद विरोधी तथा अकल्याणकारी कर्म है।
अगरबत्ती जलाना वैदिक संस्कृति के विरुद्ध है। आधुनिक वैज्ञानिक खोज से पता चलता है कि जहां गूगल जलते हैं उस स्थान का बहु प्रकार नकारात्मक बैक्टीरिया और वायरस खत्म हो जाते हैं। वातावरण शुद्ध और पवित्र हो जाता है। मनुष्य की हृदय यंत्र और फेफड़े बहुत सबल हो जाता है। परंतु जहां एक अगरबत्ती जलती है, वहां मनुष्य को डेढ़ सिगरेट पीने के बराबर हानि होता है। आज कैंसर आदि बहुत प्रकार की बीमारियां तथा कोरोना वायरस की आक्रमण का यह एक अन्यतम कारण है।
वेद कहते हैं गाय रुद्रो की माता है, वसुओं की पुत्री है, अदिति पुत्रों की बहन और दूध घी आदि का अमृत का खजाना है। प्रत्येक विचारशील मनुष्य को मैंने यही समझा कर कहा है कि निरपराध एवं अवध्य गाय का वध ना करोI
ऋग्वेद (8/108/15) वेदवाणी का यह आदेश अमान्य कर आज रोज हजारों गाय का वध हो रहा है कोरोना आक्रमण का यह भी एक बड़ा कारण है।
व्यक्ति पूजा एक वेद विरोधी मानव अकल्याणकारी कर्म है। व्यक्ति पूजा के द्वारा मनुष्य में रूढ़ीवादी सांप्रदायिक भेद पैदा होता है। बौद्ध के पहले व्यक्ति पूजा नहीं था। वेद केवल सत्य ज्ञान और आदर्श की पूजा करने का उपदेश देता है, व्यक्ति का नहीं। व्यक्ति पूजा के कारण आज बहुत ईसाई, जैन, मुसलमान, आदि से रूढ़ीवादी संप्रदाय का उदय होकर मनुष्य में भेद ज्ञान उत्पन्न ने किया। व्यक्ति पूजा भी इसका एक बड़ा कारण है।
वेद में एक मंत्र है कि पूर्व में सात ऋषि तप में स्थित होकर देवों से कहने लगे कि जिस राष्ट्र में ब्राह्मण की वाणी का अपमान होगा, उस रास्ते में भारी विप्लव फैल जाएगा।
वेद वाणी का तिरस्कार सारे जगत के विनाश का कारण बन जाता है। ऋग्वेद (10/109/4) ।
वेदों की यह वाणी के अंदर कोरोना वायरस आक्रमण का सूक्ष्म कारण छिपा हुआ है।
वेद का वर्णाश्रम व्यवस्था नारी का सती धर्म पालन, सदाचार मनुष्य का विकास, स्पर्श, विवेक, आदर्श विवाह व्यवस्था, शिक्षा व्यवस्था, धर्म नीति, राजनीति, समाज नीति, न्याय व्यवस्था आदि के ऊपर किस प्रकार छेड़छाड़ किया जा रहा है? यह सद्बुद्धि संपन्न मनुष्य को बताने की जरूरत नहीं है।
वेद किसी मनुष्य द्वारा रचित नहीं है, अपौरुषेय है, ब्राह्मण का शासन है। दूसरा सभी जाति का धर्म ग्रंथ किसी व्यक्ति के द्वारा रचित है। व्यक्ति विग्य हो सकता है, सर्वज्ञ होना संभव नहीं है। आज किसी धर्म का कोई भी वाणी के ऊपर अंगुली उठाने तक हिम्मत नहीं है, चाहे वह कल्याणकारी हो या कल्याणकारी।
लेकिन ध्रुव सत्य कल्याणकारी वेदवानी के ऊपर छेड़छाड़ करने से किसी को भी सिर दर्द नहीं होता है। इसलिए विवेकानंद, गांधी, नेहरू के इशारा से अंबेडकर ने वेद वाणी को छेड़छाड़ कर कानून बनाकर भारत के ऊपर थोप दिया। कोरोना, यह दुष्कर्म का परिणाम है।
अभी भी जनता नहीं चेती तो क्या-क्या प्राकृतिक विपदा से सारे संसार के विनाश का कारण बन जाता है, वह देखते रहिए।
दैनिक भास्कर दिनांक 25 एक 1997 के जयपुर संस्करण में यह समाचार प्रकाशित हुआ है। पाश्चात्य संस्कृति और आधुनिकता के माहौल में पारंपरिक रीति-रिवाजों से विवाह करना भले ही दकियानूसी माना जाता है। किंतु वैज्ञानिक दृष्टि से स्वास्थ्य के लिए यह उचित है।
वैज्ञानिकों ने अंतर जाति विवाह प्रथा को मानव स्वास्थ्य के लिए हानिकारक बताया है। वैज्ञानिकों का कहना है कि समुदाय से बाहर शादी करने वालों की संतानों के शरीर पर बाल तथा अंगुलियों में नाखून नहीं आने की शिकायत हो सकती है और मस्तिष्क कैंसर की संभावना बढ़ जाती है। इंडियन साइंस कांग्रेस के 84वे वार्षिक सम्मेलन में वैज्ञानिकों ने उक्त रहस्योद्घाटन किया | वैज्ञानिकों एवं मानव शास्त्रियों ने कहा कि भारत की पारंपरिक वैवाहिक व्यवस्था से छेड़छाड़ करने के जन स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेंगे | विशेषज्ञों ने सदियों पुरानी वैवाहिक व्यवस्थाओं को विकृत करने के जैविक दुष्परिणामों के लिए आगाह किया | कोलकाता विश्वविद्यालय में मानव विज्ञान विभाग में मानव -जीन विषय के प्रोफेसर डॉ देव प्रसाद मुखर्जी ने अंतरजातीय विवाह प्रथा के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभावों की चर्चा करते हुए कहा कि हमें अपने समुदाय के भीतर ही विवाह करने को प्रोत्साहित करना चाहिए। अन्यथा मानव – जीन की भयंकर क्षति के दुष्परिणाम भुगतने होंगे।
उन्होंने कहा कि जिन विकृतियों से शरीर में सिकल सेल, एनीमिया एवं जी. सिक्स पी. डी. की कमी हो जाती है। वैसे सिकल सेल दक्षिण भारतीय कबीलों में ही पाए जाते थे । किंतु अब इनका प्रसार चुनिंदा उत्तरी एवं मध्य भारत के राज्यों तक हो गया है। डॉक्टर मुखर्जी ने कहा कि वैज्ञानिक निष्कर्षों को रूढ़ीवादी कहकर उनकी उपेक्षा नहीं की जानी चाहिए। वैज्ञानिकों का कहना है की अध्ययन से पता चलता है कि एक समुदाय में अहानिकारक रहने वाले जींस के दूसरे समुदाय में अत्यंत हानिकारक प्रभाव हो सकता है। फादर ऑफ़ डी एन ए टेक्निक कहलाने वाले नोबेल पुरस्कार प्राप्त डॉ. डॉटसन कहते हैं कि छुआछूत स्पर्शा – स्पर्श मानने वाले लोगों के प्रति बड़ा भेद भाव रहा है। परंतु जेनेटिक्स बताता है कि हर जाति में अलग-अलग जीन्स है| अतः हमें किसी भी प्रकार से मनुष्यों की इस भिन्नता का विरोध नहीं करना चाहिए। डॉक्टर डॉटसन ने कहा कि मैं भारत के इतिहास एवं भारतीय लोगों के जीव विज्ञान तकनीक के अध्ययन से प्रभावित हूं। उन्होंने द टाइम ऑफ इंडिया को बताया कि जींस और डीएनए की विभिन्न जातियों से तुलना कर यह निष्कर्ष मिलता है कि हमें
यह स्वीकार करना चाहिए कि मनुष्य जातियां अलग-अलग है। यह अध्ययन रोचक है कि एक जाति के लोगों पर बीमारी का प्रभाव नहीं पड़ता जबकि दूसरी जाति के लोगों पर उस बीमारी की अधिक संभावना रहती है | ना जाने उन जातियों में ऐसी क्या विशेषता है? डॉक्टर वाटसन हैदराबाद पश्चिम बंगाल में हुए अनुसंधानों का समर्थन किया जो भारत की भिन्न – भिन्न जातियों की समूह की बीमारियों तथा डीएनए के नमूनों पर प्रकाश डालते हैं। इन अनुसंधान का कुछ लोगों ने यह कहकर विरोध किया कि इससे वर्ण व्यवस्था को बल मिलेगा |
जीवो का हर कर्म प्रभाव केवल कर्ता तक ही सीमित नहीं रहते हैं। जिस प्रकार किसी जलाशय में एक पत्थर फेंकने से उसका प्रभाव केवल उस स्थान में सीमित नहीं रह कर उस पर उत्पन्न हुए तरंगे संपूर्ण जलाशय में फेल कर पूरा जलाशय को प्रभावित करती है। उसी प्रकार सभी प्राणियों की हर कर्म का प्रभाव क्रमशः वायुमंडल को प्रभावित करते हुए संपूर्ण ब्रह्मांड में फैल जाता और संपूर्ण नवो मंडल, वायु मंडल, तेजो मंडल, जल राशि एवं पृथ्वी मंडल पर अपना प्रभाव डालते हैं। जीवो के कर्म का प्रभाव से प्रभावित होकर ही संसार का वातावरण अच्छा या बुरा परिवेश युक्त हो जाता है। कौन से प्राणी के किस कर्म का प्रभाव सृष्टि के अनुकूल है और किस कर्म का प्रभाव सृष्टि के प्रतिकूल है यह सत्य पूर्ण रूप से निर्णय करना मनुष्य के लिए संभव नहीं है।
मनुष्य विग्य हो सकते हैं, पर सर्वज्ञ होना उसके लिए असंभव है। मनुष्य समस्त सृष्टि से परिचित नहीं है। करोड़ों प्राणियों की अनंत कर्म राशि से भी परिचित नहीं है। इसलिए किस प्राणी के किस कर्म का प्रभाव प्रकृति के किस स्तर में कैसा पड़ता है, यह निर्णय करना मनुष्य की सामर्थ के बाहर है। इसका निर्णय वही कर सकता है जो सर्वज्ञ हो जिसने सृष्टि की रचना की है जिनसे समस्त प्राणियों को बनाया है और जिसमें समस्त कर्म राशि एवं कर्म फल राशि का सृजन किया है|
अपौरुषेय वेद ब्रह्म से ही अतीत वर्तमान भविष्य का सब कुछ होता है। इसलिए वे जिन कर्मो को करने का आदेश देता है, उनका प्रभाव संपूर्ण रूप से क्षति के पोषक सर्व कल्याणकारी और मंगलमय होता है तथा वे जिस कर्म को करने के लिए निषेध करता है, उनका प्रभाव सृष्टि के लिए, देश के लिए, प्राणियों के लिए अमंगलकारी अवश्य ही होता है।
वेद स्वयं कहते हैं मैं यह सत्य कहता हूं कि मेरी शिक्षा का ही सभी देव, पितरों और मनुष्य पालन करते हैं । ऋग्वेद (10/125/5) ।
संसार का सारे ज्ञान, शास्त्र, शिक्षा आदि का मूल स्रोत वेद ही है। अगर भगवान भी वेद विरुद्ध कर्म करें तब वह भी नाश हो जाता है। आधुनिक भारत में जो वेद विरुद्ध काम चल रहा है, सारे विश्व के लिए विनाशकारी है। वैदिक वर्णाश्रम धर्म व्यवस्था केवल हिंदुओं के लिए ही नहीं भारत तथा संपूर्ण विश्व के कल्याण के लिए इसका पुनः स्थापन करना शासन अधिकारियों का अवश्य कर्तव्य है। वेद शास्त्र का अनुशासन है कि अन्तज, आदि जातियों के प्रवेश से वैदिक मंदिर दूषित हो जाते हैं। उनकी देव प्रतिमाओं में देव कला की हानि होती है और देवत्व विहीन प्रतिमाओं में भूत-प्रेत आदि आसुरी शक्तियों का वास हो जाता है और इन भूत प्रेत निवासी प्रतिमाओं के पूजन से आसुरी शक्तियां पुष्ट होती है और कलह, क्रोध, द्वेष आदि आसुरी भावों की वृद्धि होती है तथा बीमारी, अतिवृष्टि, अनावृष्टि, काल, भूकंप आदि का प्रकोप होकर राजा प्रजा का क्षय होता है। आज शासन अधिकारी गण कानूनों के बल पर शिव मंदिर, विष्णु मंदिर, सबरीमाला मंदिर में अंत्यजो- अनाधिकारियों का प्रवेश कराकर मंदिरों को भ्रष्ट कर सकता है।
वैदिक संस्कृति के अभिमानी सतप्रचारको को शासन सत्ता के बल पर दंड दे सकता है। सर्वत्र वैदिक नियम तोड़कर वेद विरुद्ध भ्रष्टाचार फैला सकते हैं किंतु क्या इसके परिणामों में हुए देवी प्रकोप को भी वह रोक सकेंगे?
कोरोना वायरस एक देवी प्रकोटपन्न आसुरी शक्ति है। वेद विरुद्ध कर्म जारी रखते हुए केवल और असार दवाईयों से यह सभी देवी प्रकोप से कितने दिन तक लड़ाई किया जा सकता है रहेगा। और भी देवी प्रकोप से उत्पन्न बहुत शक्तिशाली वायरस, भूकंप, अनावृष्टि, अतिवृष्टि, तापमान वृद्धि, तापमान शून्यता क्रमशः तांडव मचाते रहेगा।
इसलिए कोरोना वायरस आक्रमण समय रहते हुए मानव जाति के प्रति वेद भगवान का सचेत होने के लिए एक संदेश है। भारत के शासन अधिकारियों को भी सचेत होना चाहिए कि वैदिक संस्कृति या वर्णाश्रम व्यवस्था देवी जगत से संबंध है। इसलिए इससे छेड़छाड़ करना बंद करें। नहीं तो इसका परिणाम उनके लिए, भारत के लिए और विश्व के लिए अच्छा नहीं होगा। उन्हें निश्चय रखना चाहिए कि इस प्रकार के उनके वेद विरुद्ध व्यवहार से देवी प्रकोप और भी भयंकर रूप धारण कर सकता है। चाहे जिस रूप में हो और जब मर्जी हो प्रकट हो सकता है।
(सोशल मीडिया से साभार)