मंगलवार को मैं लिखना तो कुछ और चाहता था, लेकिन संदर्भ सामग्री खोजते खोजते मेरी नजर 14 नवंबर के गूगल डूडल पर गई और अचानक पूरा मूड ही बदल गया। ज्यादा खोजबीन करने पर पाया कि उस डूडल पर तो नेट पर सामग्री भरी पड़ी है। दुनिया भर के कई अखबारों और समाचार माध्यमों ने उस पर बड़े चाव से लिखा है।
सच बताऊं तो मुझे भी नहीं मालूम था कि बाल दिवस को किसी ऐसे मशीनी ‘खिलौने’ का भी जन्मदिन है जो बच्चों से लेकर बड़ों के लिए आज भी एक आदर्श टूल के रूप में उपयोग में आ रहा है। दुनिया भले ही आदिम युग से डिजिटल युग में पहुंच गई हो लेकिन यह टूल सवा शताब्दी से भी ज्यादा पुराना होने के बावजूद आज भी उतना ही महत्वपूर्ण है और घरों लेकर कॉरपोरेट दफ्तरों तक उतनी ही विनम्रता से सेवा में जुटा है।
जी हां, गूगल डूडल ने मंगलवार को मेरा परिचय कराया ‘होल पंचर’ मशीन के इतिहास से। उसने ही बताया कि आज यानी 14 नवंबर को इस मशीन की 131 वीं सालगिरह है।
होल पंचर यानी कागज में छेद करने वाली वो मशीन जिसके जरिए छेद किए जाने के बाद दस्तावेज फाइलों में करीने से लगाए जाते हैं। इस मशीन का आविष्कार जर्मन आविष्कारक और उद्यमी फ्रेडरिक सोनेकन ने किया था। उन्होंने इसे 14 नवंबर 1886 को पेटेंट कराया। यह दुनिया के उन गिने चुने आविष्कारों में से है जिनमें पहले दिन से आज तक थोड़े बहुत ही परिवर्तन हुए हैं। और ये परिवर्तन भी उसके आकार प्रकार और डिजाइन को लेकर हुए, छेद करने की मूल तकनीक आज भी वैसी की वैसी ही है, जिसमें स्प्रिंग लगी दो पतली छड़ों को ताकत से दबाया जाता है और इस तरह कागज में समान दूरी पर दो छेद हो जाते हैं।
लोगों ने लालफीते को दफ्तरों का खलनायक बताते हुए बहुत कछ लिखा है, लेकिन दफ्तरों के फाइल सिस्टम में होल पंचर की और भी महत्वपूर्ण भूमिका है, क्योंकि उसी की सहायता से एक ही विषय से संबंधित बहुत सारे कागजात एक साथ बांधने की सुविधा मुहैया हुई।
आज बाल दिवस पर होल पंचर को याद करते हुए मुझे इससे जुड़ी बचपन की कई घटनाएं याद आ रही हैं। पिताजी की डेस्क के एक किनारे पर यह मशीन यूं ही पड़ी रहती थी। जब उन्हें दस्तावेजों को एकसाथ जमाना होता तो वे उनके किनारे पर इस मशीन की मदद से छेद करते और सारे कागज करीने से एक मोटे धागे से बांध देते। हमें होल पंचर जैसा नाम तो नहीं मालूम था सो अपनी भाषा में इसे नाम दिया था ‘छेदक मशीन’…
मुझे याद है मशीन से छेद किए जाने के बाद जमीन पर कागज के छोटे छोटे सुंदर से गोलाकार टुकड़े बिखरे रहते थे जिन्हें हम लोग एक दूसरे के माथे पर या गालों पर बिंदी की तरह चिपकाकर खेला करते थे। कागज यदि रंगीन होता तो ये बिंदियां भी रंगीन निकलतीं और उनसे तरह तरह की आकृतियां बनाना हमारा प्रिय खेल था।
लेकिन इस खेल ने हमारी ठुकाई भी बहुत करवाई। एक बार खेल खेल में हमने पिताजी की एक प्रिय किताब को यूं ही छेद डाला और उसके पन्ने खराब हो गए। शाम को उनके घर लौटने के बाद हमारी क्या गत बनी होगी, आप अंदाजा लगा सकते हैं। ऐसे ही एक बार हमने प्रयोगधर्मिता दिखाते हुए यह जांचना चाहा कि यह मशीन क्या कपड़े में भी छेद कर सकती है? इसके लिए हमें अपना कमीज ही मिला। उसके कपड़े को मशीन की झिरी में फंसाकर हमने पंच कर दिया। कहने की जरूरत नहीं कि उसके बाद हममें कितने पंच पड़े होंगे।
लेकिन एक बात है, होल पंचर ने दुनिया को एकरूप बनाने का अद्भुत संदेश दिया है। आज भी दुनिया का कोई कोना हो उसके दोनों सिरों की दूरी हर जगह समान है। मशीनों का रंग और आकार प्रकार भले ही बदल गया हो, लेकिन दो छेदों का आकार और उनके बीच बनने वाली दूरी हमेशा यूनीवर्सल रही। इंसान ने भले ही छेदक मशीन से छेद करके लोगों की किस्मत का फैसला करने वाले कागजों को अलग अलग फाइलों में बांधा हो लेकिर इस मशीन ने छिद्रान्वेाषण कर दुनिया को हमेशा एकसूत्र में बांधने का ही काम किया है।
जब बात चली है तो थोड़ा सा गूगल डूडल के बारे में भी जान लें। गूगल डूडल दरअसल गूगल सर्च एंजिन का मुखपृष्ठ है जिस पर रोज किसी ने किसी व्यक्ति या घटना को संदर्भ के रूप में दर्शाया जाता है। खासियत यह रहती है कि उसे दर्शाने के लिए गूगल अंग्रेजी में अपने नाम की स्लेपिंग GOOGLE को ही विभिन्न आकार प्रकार में इस्तेमाल करता है। अब तो दुनिया भर से आई प्रिविष्टियों में से गूगल डूडल का चयन किया जाता है।
वैसे गूगल डूडल की कल्पना 1998 में, कंपनी की स्थापना से पहले ही की जा चुकी थी जब गूगल के संस्थापकों लैरी और सर्गेई ने नेवादा के रेगिस्तान में हुए बर्निंग मैन उत्सव में अपनी उपस्थिति दर्शाने के लिए अपने कॉरपोरेट लोगो को कलात्मक रूप दिया था। उन्होंने Google शब्द के दूसरे ‘ओ’ के पीछे छड़ी की आकृति का ड्रॉइंग लगा दिया था। संशोधित लोगो का मकसद गूगल के उपयोगकर्ताओं को यह मज़ेदार संदेश देना था कि संस्थापक ‘कार्यालय से बाहर हैं’
हालांकि पहला डूडल अपेक्षाकृत सरल था, लेकिन उसने किसी भी खास इवेंट को मनाने के लिए कंपनी के लोगो को सजाने का आइडिया जरूर दे दिया था। शुरू शुरू में डूडल ज्यादातर जानी पहचानी छुट्टियों को लेकर बने लेकिन आजकल तो वे महापुरुषों के जन्मदिन से लेकर दीवाली और होली जैसे त्योहार तक के लिए बनाए जाते हैं।
तो बाल दिवस के दिन, होल पंचर या छेदक मशीन के जरिए बचपन की याद दिलाने के लिए गूगल डूडल का शुकिया तो बनता है…