भोपाल/ मध्यप्रदेश राज्य वन विकास निगम द्वारा प्रदेश की इमारती लकड़ी को अंतर्राष्ट्रीय बाजार उपलब्ध करवाने और चीन सहित विभिन्न देशों द्वारा बाँस से आर्थिक लाभ के नए आयामों का फायदा प्रदेश के किसानों और वनों पर निर्भर लोगों को दिलाने के लिए रणनीति तैयार की जा रही है। इसी सिलसिले में यहाँ प्रबंध संचालक मध्यप्रदेश राज्य वन विकास निगम जे.एस. जोशी की अध्यक्षता में आयोजित बैठक में एफएससी (फॉरेस्ट स्टुअर्टशिप, अमेरिका) के राष्ट्रीय प्रतिनिधि डॉ. आर. मनोहरन और चीन के अंतर्राष्ट्रीय संस्थान इनबार (इन्टरनेशनल नेटवर्किंग फॉर बैम्बू एण्ड रट्टन्स) के प्रोजेक्ट डायरेक्टर डॉ. रामानुज राव ने पॉवर प्रेजेन्टेशन दिया।

एफएसी के राष्ट्रीय प्रतिनिधि डॉ. टी.आर. मनोहरन ने कहा कि भारत उन गिने-चुने देशों में से एक है जहाँ वन में सकारात्मक परिवर्तन आए हैं। मध्यप्रदेश देश का सबसे बड़ा वन क्षेत्र है। यहाँ की लकड़ी खासकर सागोन की काफी अच्छी मानी जाती है।

लकड़ी का अन्तर्राष्ट्रीय सर्टिफिकेशन हो जाने के बाद विश्व बाजार में विश्वसनीयता और साख कायम होने से उत्पादकों को आर्थिक उन्नति के नए आयाम मिलेंगे। डॉ. मनोहरन ने लंदन ओलम्पिक का उदाहरण देते हुए बताया कि ओलंपिक के दौरान केवल एफएससी द्वारा प्रमाणित लकड़ी ही उपयोग की गई। सर्टिफिकेशन 5 वर्ष के लिए वैध होता है जिसे बाद में रिन्यू किया जाता है।

इनबार के प्रोजेक्ट डायरेक्टर डॉ. रामानुज राव ने बताया कि दुनिया के 38 देश इनबार के सदस्य हैं जिनके 3 बिलियन लोग बाँस के व्यवसाय से जुड़े हैं। बाँस के कई फायदे हैं। बाँस एक साल में लाभ देने लगते हैं, बेकार भूमि पर लगाने से वहाँ की उत्पादकता बढ़ती है, घास उगना शुरू हो जाती है। बाँस की पत्तियाँ पूरे वर्ष भर गिरती रहती हैं, जो कुक्कुट, गाय, भैंस, बकरी, पक्षी आदि के लिए पौष्टिक आहार का काम करती है। बाँस रोपण ईंट भट्टे वाले इलाकों में भी उर्वरा शक्ति बढ़ाता है। पृथ्वी पर ग्रीन कवर बढ़ाता है। भूमि क्षरण रूकता है।

विश्व के कई देशों में केवल बाँस से ही रिसार्ट, घर, रेस्टोरेन्ट बनाए जा रहे हैं। शंघाई का प्रसिद्ध बाँस डोम भारतीय कम्पनी द्वारा बनाया गया है। बाँस की खेती को अधिक खाद, पानी, सेवा की भी जरूरत नहीं होती। डॉ. राव ने बताया कि विश्व के बाँस बाजार पर 90 प्रतिशत चीन का कब्जा है। उन्होंने कहा बाँस से विनियर, बोर्ड लकड़ी बनाई जा सकती है। उसके बचे टुकड़ों से पेंसिल, अगरबत्ती, माचिस बनाई जा सकती है। बाँस बहुत मजबूत होता है। राजस्थान और गुजरात में महिलाएँ बाँस के ब्रिकेट्स को जलाकर अपना घर चला रही हैं। ब्रिकेट्स को जलाने के बाद निकला कोयल 25-30 रुपये प्रति किलो की दर से बिक जाता  है।

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