भोपाल, अप्रैल 2013/ मध्यप्रदेश में इन दिनों ‘टसर क्रांति’ आकार ले रही है। बीते 3 वर्ष में प्रदेश में टसर रेशम का उत्पादन मात्र 3000 हेक्टेयर से बढ़कर अब लगभग 24 हजार हेक्टेयर में होने लगा है। कोकून उत्पादन भी करीब 2 करोड़ से बढ़कर लगभग साढ़े आठ करोड़ हो गया है। इसकी बदौलत मध्यप्रदेश अब टसर रेशम के उत्पादन में देश में सातवें से चौथे स्थान पर आ गया है। यह संभव हुआ है वर्ष 2009 में मध्यप्रदेश विधानसभा में पारित संकल्प-29 पर प्रभावी अमल के फलस्वरूप। पहले मध्यप्रदेश उड़ीसा, छत्तीसगढ़, आन्ध्रप्रदेश, झारखण्ड, बिहार और उत्तरप्रदेश के बाद सातवें नम्बर पर था।
वर्ष 2000 में छत्तीसगढ़ राज्य बन जाने से न केवल टसर रेशम कीट-पालन का क्षेत्र वहाँ चला गया, बल्कि इसका परम्परागत ज्ञान भी मध्यप्रदेश में नहीं रह गया। अविभाजित मध्यप्रदेश में 60 लाख कोकून उत्पादन होता था। विभाजन के बाद मध्यप्रदेश में यह सिर्फ 6 लाख रह गया। इसके चलते टसर रेशम उत्पादन नेपथ्य में चला गया। मध्यप्रदेश सरकार ने इस क्षेत्र को पुनः फोकस में लाने के लिये विधानसभा के विशेष सत्र में टसर उत्पादन के क्षेत्र में मध्यप्रदेश को प्रमुख राज्य बनाने का संकल्प पारित किया। यह संकल्प मध्यप्रदेश में टसर रेशम उत्पादन की अपार संभावनाओं को दृष्टि में रखकर लिया गया। प्रदेश में लगभग 10 लाख हेक्टेयर में टसर रेशम उत्पादन की संभावना है।
संकल्प पर अमल करते हुए वन विभाग और रेशम संचालनालय ने संयुक्त रूप से काम करना शुरू किया। सबसे पहले यह सर्वे करवाया गया कि अर्जुन और साजा के वृक्ष किन वन क्षेत्रों में बहुत अधिक हैं। सर्वे में पाया गया कि प्रदेश में इन वृक्ष की संख्या लगभग 12 करोड़ है। लक्ष्य निर्धारित कर उन पर तत्परता से अमल किया गया। वर्ष 2010-11 में 5000 हेक्टेयर में टसर उत्पादन के लक्ष्य के विरुद्ध 9000 हेक्टेयर में यह काम किया गया। डेढ़ करोड़ कोकून के लक्ष्य की तुलना में एक करोड़ 90 लाख कोकून उत्पादन हुआ। वर्ष 2011-12 में 17 हजार 500 हेक्टेयर के लक्ष्य की तुलना में 17 हजार 600 हेक्टेयर में 4 करोड़ 26 लाख कोकून तैयार किये गये। वर्ष 2012-13 में लगभग 24 हजार हेक्टेयर में 5 करोड़ 82 लाख कोकून का उत्पादन किया गया।
वर्ष 2009-10 में सिर्फ 5-6 जिले में ही टसर रेशम का उत्पादन होता था। अब प्रदेश के 32 जिलों में यह कार्य हो रहा है। इस कार्य के लिये हितग्राहियों को समुचित प्रशिक्षण भी दिया गया। प्रदेश में टसर रेशम उत्पादन का कार्य मुख्य रूप से बालाघाट, मण्डला, नरसिंहपुर, होशंगाबाद, छिन्दवाड़ा, बैतूल, सीहोर और हरदा जिले में होता है।
प्रक्रिया
वन क्षेत्रों में लोगों को, जिनमें अधिकतर आदिवासी होते हैं, एक-एक हेक्टेयर क्षेत्र दे दिया जाता है। यह लोग वृक्षों पर अंडों को पालते हैं। इनमें से निकलने वाले कीड़ों को पेड़ों पर चढ़ा दिया जाता है। हितग्राही 35-40 दिन तक जंगल में रहकर ही इनकी रखवाली करता है। इससे कीड़ों के साथ-साथ वनों का संरक्षण भी होता है। ककून बनाकर यह लोग रेशम-पालन विभाग को बेच देते हैं। इससे प्रत्येक हितग्राही को दो फसलों में 3-3 माह के भीतर 10 से 40 हजार रुपये तक की आमदनी हो जाती है। हितग्राही का परिवार लगभग एक लाख रुपये तक कमा लेता है। वर्तमान में लगभग 30 हजार लोग इस कार्य से लाभान्वित हो रहे हैं। इनमें करीब 80 प्रतिशत आदिवासी हैं। इस वर्ष हितग्राहियों को लगभग 6 करोड़ रुपये दिया गया।
प्रत्येक कोकून में लगभग 1 किलोमीटर धागा होता है। धागा बनाने के लिये राज्य में पिछले तीन वर्ष में 19 धागाकरण इकाई स्थापित की गई हैं। इन इकाई में लगभग 1500 महिलाओं को पूरे वर्ष नियमित रोजगार मिलता है। आने वाले दो वर्ष में पूरा धागाकरण मध्यप्रदेश में ही होने लगेगा।