भोपाल/ मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव के मद्देनजर दोनों प्रमुख दलों, भाजपा और कांग्रेस के प्रत्याशियों की सूची जारी हो चुकी है। मतदान में 18 दिन शेष हैं। कांग्रेस ने वही गलती फिर दोहरा दी है। प्रत्याशी घोषित करके, बगावत के आगे घुटने टेककर, फिर बदल दिए। इनमें से अधिकांश सीटें अब फंस गई हैं। कमलनाथ अतिआत्मविश्वास और मन प्रफुल्लित करने वाले चुनावी सर्वे की चकाचौंध में दृष्टिदोष का शिकार हो रहे हैं। जमीन पर क्या हो रहा है, यह उन्हें पता ही नहीं चल पा रहा है। जबकि हकीकत कुछ और है। जिस तरह कमलनाथ और दिग्विजय सिंह के मध्य नीतिगत स्तर पर मतभेद उजागर हुए हैं उसे देखकर कांग्रेस के अंदरूनी हालात समझने में ज्यादा दिमाग नहीं लगाना पड़ रहा है। गुटबाजी मप्र कांग्रेस की स्थायी समस्या रही है यह चिरकालिक है और सात दशक से इसका कोई समाधान सर्वशक्तिमान आलाकमान भी नहीं निकाल पाया है।
ग्वालियर से लेकर महाकोशल और मालवा निमाड़ तक जिस तरह टिकट वितरण हुआ है उसने स्पष्ट कर दिया है कि कमलनाथ की रणनीति दिग्विजय की छाया से खुद को मुक्त करने की चल रही है। दूसरी तरफ दिग्विजय सिंह इसके उलट अपने पांसे फिट करने में लगे रहे हैं। शिवपुरी सीट का मामला हो या मेहगांव, भिंड, गुना, अशोक नगर, बमौरी… ग्वालियर अंचल में कमलनाथ प्रायः हर जिले में निष्प्रभावी नजर आये हैं।दूसरी तरफ मालवा में सज्जन वर्मा को लेकर जिस तरह की कपड़ा फाड़ बयानबाजी हो रही है उसे दिग्विजय बनाम कमलनाथ के चरम राजनैतिक मतभेदों के नजरिये से समझने की आवश्यकता है।दिग्विजय समर्थक प्रेमचन्द गुड्डू ने जो संगीन आरोप सज्जन वर्मा पर लगाये हैं वे चुनाव नतीजों में बड़ा गुल खिला सकते हैं।आलोट, देवास, सोनकच्छ, बागली, सांवेर, हाटपिपल्या, सुसनेर, शाजापुर, शुजालपुर, बड़नगर, जावरा आदि सीटों पर दोनों नेताओं का अंतर्विरोध सड़क पर सामने आ गया है।
बघेलखण्ड में जिस तरह श्रीनिवास तिवारी के परिवार को ठिकाने लगाया गया है उसके पक्ष में कमलनाथ नहीं थे लेकिन दिग्विजय सिंह की यहां खूब चली है। अजय सिंह अपनी उपेक्षा से आहत हैं ही। कमोबेश यही हाल अरुण यादव, सुरेश पचौरी, कांतिलाल भूरिया का बना दिया है कमलनाथ ने। पचौरी भोपाल शहर में ही अलग थलग पड़े हैं, वहीं अरुण यादव के घोर विरोधी शेरा को बुरहानपुर से उम्मीदवार बनाकर कमलनाथ ने उन्हें केवल घर की सीट कसरावद में समेट दिया है।कांतिलाल भी अपनी झाबुआ सीट बचाने के लिए फंस गए है।वहां निर्दलीय जेवियर मेडा ने ताल ठोककर उनकी हालत खराब कर रखी है, जबकि कांतिलाल प्रदेश चुनाव संयोजक भी हैं।
कुल मिलाकर कांग्रेस में जहां कमलनाथ हावी दिख रहे हैं वहीं दिग्विजय सिंह उन्हें कमजोर करने का कोई अवसर गंवा नहीं रहे हैं। परिणाम यह है कि जो कांग्रेस चुनाव घोषणा से पहले बढ़त में दिखाई दे रही थी, अब अपनों के बनाये जाल में ही उलझती दिखाई दे रही है।

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