सरयूसुत मिश्रा
मध्यप्रदेश सरकार की नई आबकारी नीति की तारीफ या आलोचना राजनीतिक क्षेत्र से ही आ रही है। शराब उपभोक्ता तो पीना भी चाहता है और पीकर चुप रहना भी जानता है। नई नीति में जो भी बदलाव हुआ है उससे ना तो शराब मिलना बंद हो जाएगी और ना ही पीने पर प्रतिबंध लग जाएगा। अहाते जरूर बंद हो जाएंगे। पीने के लिए अब कोई नई जगह तलाशनी होगी।
अहाते पहले भी थे, जिन्हें बाद में बंद कर दिया गया था और फिर से अहातों को चालू कर दिया गया। अब फिर अहाते बंद कर दिए गए हैं। संभवत अहाते चालू करने और बंद करने की प्रक्रिया एक ही सरकार के समय-समय पर लिए गए अलग-अलग फैसले हैं। सवाल यह है कि सार्वजनिक स्थानों पर सुराप्रेमियों की उमड़ती भीड़ रोकने के लिये अहाते शुरू करने का निर्णय सही था या अब बंद करने का निर्णय सही है?
उमा भारती मध्यप्रदेश की नई आबकारी नीति में अहाते बंद करने के फैसले को क्रांतिकारी कदम बताते हुए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह की तारीफ में कसीदे पढ़ रही हैं तो मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस इसे सरकार की लीपापोती बता रहा है। हर साल सरकारों की आबकारी नीति बदलती रहती है। जितनी तेज गति से आबकारी नीति बदलती है उतनी तेज गति से सरकारों में शायद कोई भी नीति नहीं बदलती है।
नीतियों में निरंतरता, क्रियान्वयन को गंभीरता और तीव्रता प्रदान करती है लेकिन शराब एक ऐसा विषय है कि नीतियां कितनी भी बदलें, पीने वाले को तो शराब चाहिए और वह मध्यप्रदेश में सुलभता से मिलने में कोई दिक्कत न पहले थी ना नई नीति में होगी।
फिर नीति में बदलाव का लाभ किसको मिलेगा? सरकार को मिलेगा? ठेकेदार को मिलेगा? उपभोक्ता को मिलेगा? राजनीति को मिलेगा? राजनीतिक दल को मिलेगा या राजनीतिक नेता को मिलेगा? इसका कोई सटीक और आंकड़ों में आकलन संभव नहीं होगा। सरकार कहती है कि नए निर्णय से कई हजार करोड़ का राजस्व कम होगा। राजनीति मानती है कि शराब की दुकानों और अहातों की भीड़ के कारण समाज में शराब उपभोग की अनुकूल परिस्थितियां खत्म होंगी। शैक्षणिक संस्थाओं के पास से भी दुकानों को हटाया जाएगा।
नई आबकारी नीति पर यह शेर बहुत मौजू है कि..
कुछ भी बचा न कहने को, हर बात हो गई!
आओ कहीं शराब पियें कि रात हो गई!!
शराब पीने वाले पहले भी पी रहे थे और नई नीति के बाद भी पिएंगे। जब नई नीति का पीने वालों पर कोई असर नहीं है तो फिर आकलन इस बात का होना है कि इसका असर किस पर होगा? क्या नई नीति से दुकानों की संख्या कम होगी? नई नीति से दुकानों की संख्या बिल्कुल भी कम नहीं होगी। कंपोजिट दुकानों के नाम पर देसी और विदेशी मदिरा की दुकानें जब पिछले साल एक साथ की गई थीं तब दुकानों की संख्या लगभग दोगुनी हो गई थी। देसी और विदेशी शराब की उपलब्धता की सुलभता बढ़ गई थी। दुकानों की संख्या अभी भी वही रहेगी। उसमें कोई कमी नई नीति के कारण नहीं आएगी।
सरकार की नई नीति को लेकर पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती के ट्वीट इस बात की ओर इशारा कर रहे हैं कि नई नीति से उन्हें प्रसन्नता और राजनीतिक संतोष महसूस हुआ है। वे लगातार मध्यप्रदेश में शराबबंदी के लिए आंदोलन चला रही थीं। कई बार उनके द्वारा शराब दुकानों पर पत्थर फेंके गए थे। मुख्यमंत्री के साथ उमा भारती द्वारा शराबबंदी के लिए जन जागरूकता की शुरुआत की गई थी।
तब ऐसा माना जा रहा था कि प्रदेश की नई आबकारी नीति में शायद शराब की उपलब्धता की संभावनाएं न्यूनतम की जाएंगी। दुकानों की संख्या कम की जा सकती हैं लेकिन नई नीति में ऐसा कुछ नहीं हुआ। केवल शराब दुकानों के साथ पीने के लिए जो अहाते और शॉप बार थे उन्हें बंद करने की बात सामने आई है।
पीने के लिए अहाते नहीं रहेंगे तो क्या आसमान के नीचे पीने में कोई रोक है? शराब पीकर गाड़ियां चलाने पर लाइसेंस रद्द करने की भी नई नीति में व्यवस्था की गई है। पहले भी शराब पीकर गाड़ी चलाना अपराध था और ऐसे अपराध में सजा का प्रावधान था। सार्वजनिक रूप से कानून व्यवस्था स्थापित करने में पुलिस की भूमिका नई नीति के बाद और चुनौतीपूर्ण होने की संभावना है। जो लोग अहातों में बैठकर पी लिया करते थे वह पीना तो नहीं छोड़ देंगे। अब उन्हें पीने के लिए खुला स्थान तलाशना होगा और उनको रोकने के लिए पुलिस को मशक्कत करनी पड़ेगी।
मुख्य विपक्षी दल नई आबकारी नीति को लेकर बड़ी सधी हुई प्रतिक्रिया दे रहा है। उनकी ओर से नेताओं के जो बयान सामने आए हैं उसमें यही कहा गया है कि सरकार बात शराबबंदी की कर रही थी लेकिन मामला अहाताबंदी तक सिमट गया है।
शराब का कारोबार सरकारों के लिए राजस्व प्राप्ति का महत्वपूर्ण जरिया बना हुआ है। कोई भी सरकार इससे मिलने वाले राजस्व का छिनना शायद बर्दाश्त नहीं कर पाएगी। जिन राज्यों में शराबबंदी की गई है चाहे वह गुजरात हो या बिहार हो, वहां शराब की उपलब्धता की कोई कमी नहीं है। आए दिन घटिया और जहरीली शराब के कारण लोगों की मौतों के मामले भी सामने आते हैं। शराब बंदी के बाद उन राज्यों में पुलिस और शराब आपूर्ति करने वालों के बीच एक सांठगांठ जरूर चलने लगती है। शराबबंदी की स्थिति कानून का राज स्थापित करने वाले सुरक्षा बलों के लिए काफी सुविधापूर्ण मानी जाती है।
शराबबंदी के लिए जन जागरुकता फैलाना ही एक जरिया है। जब लोग पीना छोड़ देंगे तो मिलने के बाद भी शराब की बिक्री कम हो जाएगी। बाजार के इस जमाने में जब कुछ बिकेगा ही नहीं तो फिर उसकी दुकानें अपने आप घटती जाएंगी।
हर साल बनाई जाने वाली आबकारी नीतियां शराब के शौकीनों के लिए नहीं बल्कि सरकार और राजनीति के प्रबंधन के लिए बनाई जाती हैं। दिल्ली सरकार में पिछले साल बनाई गई आबकारी नीति की सीबीआई जांच हो रही है। इस पर सवाल उठाए जा रहे हैं कि ठेकेदारों को लाभान्वित करने के लिए नीति को बदला गया। इस तरह के सवाल कमोबेश हर राज्य में विपक्षी दल की ओर से उठाये ही जाते हैं।
शराब कुछ समय के लिए बेहोशी लाती है जिसके कारण चिंता, तनाव और अशांति विस्मृत हो जाते हैं। जैसे ही नशा उतर जाता है फिर यह सब दोगुनी ताकत के साथ हावी हो जाते हैं। शराब पीने वालों में बेहोशी लाती है और शराब नीति सरकार और राजनेताओं और राजनीतिक दलों में होश का संचार करती दिखाई पड़ती है। कुल मिलाकर शराबियों का अजब संसार दिखाई पड़ता है।
रहते हैं मझधार में रोज बिना पतवार!
लेकिन कितनों को कराते हैं सागर पार!!
(लेखक की सोशल मीडिया पोस्ट से साभार)
(मध्यमत)
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