शाहरुख खान की चर्चित फिल्म ‘चैन्नई एक्सप्रेस’ का एक मशहूर डायलॉग है- Don’t underestimate the power of common man… लेकिन कई बार हम आम आदमी की ताकत और समझ को बहुत कम आंक लेते हैं। ऐसा करते समय हम बॉलीवुड की ही एक पुरानी फिल्म का एक और मशहूर डायलॉग भूल जाते हैं जो कहता है- ‘’बाबू ये पब्लिक है, सब जानती है…’’
पिछले दिनों भारतीय मीडिया के चर्चित चैनल एनडीटीवी के बिक जाने की खबरें बहुत सुर्खियों में रही और उसे लेकर जाने कितने लोगों ने जाने किस-किस एंगल से जाने क्या-क्या नहीं लिखा। हाल ही में खबर आई है कि एनडीटीवी के मालिकों में से एक और उसके मुख्य कर्ताधर्ता डॉ. प्रणय रॉय और उनकी पत्नी राधिका रॉय ने एनडीटीवी की पैतृक कंपनी से अपने काफी सारे शेयर अडानी ग्रुप की कंपनी को बेच दिये हैं। और इसी नए सौदे को लेकर उस ‘पब्लिक’ की तरफ से एक प्रतिक्रिया आई है जिसका जिक्र हमने ऊपर किया। यह प्रतिक्रिया सोशल मीडिया पर वायरल हुई है और एनडीटीवी के पूरे प्रकरण पर यह एक नए एंगल से रोशनी डालती है। इसे भी पढिए और फिर सोचिये कि दुनिया में चीजें जैसी लगती हैं वैसी होती नहीं और जैसी होती हैं वैसी लगती नहीं…
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प्रणय रॉय एनडीटीवी वालों के नाम खुला ख़त-
श्री पीआर, आरआर,
आशा है सानन्द होंगे
साल 2022 खत्म हो उससे पहले सुनियोजित तरीके से आपने एनडीटीवी को पूरा का पूरा अडानी ग्रुप को सौंपकर उसके फिर से खड़े होने की सारी उम्मीदों को खत्म कर दिया। बहुत से लोग यह झूठी उम्मीद लगाए बैठे थे कि शायद गोदी सेठ उतने शेयर न कबाड़ सके जितने किसी संस्था पर पूरे नियंत्रण के लिए जरूरी होते हैं। पब्लिक डोमेन में मौजूद बहुत से शेयरों को लोगों ने गोदी सेठ के खुले ऑफर के बाद भी इसी उम्मीद में नही बेचा था। लेकिन लोग मूर्ख थे, उन्हें पता नहीं था कि आप अपने 37 प्रतिशत से ज्यादा शेयर भी बेचने को बैठे थे। प्रतीक्षा भरपूर कीमत मिलने भर की थी, जो जब मिली आपने बिल्कुल देर नहीं की और नाम मात्र के शेयर बचा कर आपने अपने सारे शेयर बेच डाले। लोग फालतू में भावुक बने रहे…
आप बेहतरीन पत्रकार हैं इसमें कोई दो राय नहीं है लेकिन एनडीटीवी को बेचने में आपने जो पारंगतता दिखाई उससे साबित हुआ कि आप सयाने व्यापारी भी हैं। यह तो सत्य है न कि एनडीटीवी की हिस्सेदारी के बदले में आपने बाजार से 404 करोड़ का कर्ज उठाया था। यह कर्ज ब्याज मुक्त था, लेकिन मूल तो आपको चुकाना था 2014 तक। तो आप इस मुफ्त के पैसे से मजे करते रहे।
लेकिन 2014 के बाद देश में पत्रकारिता की दशा बदलनी शुरू हुई और मीडिया की खरीद फरोख्त शुरू हुई। तब एक प्रबुद्ध पत्रकार के तौर पर आपको सचेत हो जाना चाहिए था कि यह आपके साथ भी हो सकता है। आपके शेयर तो वैसे भी खुले में पड़े थे। आपने जब एनडीटीवी को स्वतन्त्र और निर्भीक पत्रकारिता का पर्याय बनाया, तब निर्भीक पत्रकारिता के दुश्मनों से उसकी सुरक्षा के इंतजाम भी तो आपको करने चाहिए थे।
उसके लिए आपको सिर्फ अपने शेयरों की सुरक्षा करनी थी कोई टैंक नहीं खड़े करने थे, न ही कोई लैंडमाइंस एनडीटीवी के दफ्तर के बाहर बिछानी थी। शेयरों की सुरक्षा का सबसे बेहतर तरीका यही था कि बिना ब्याज के कर्ज के बदले जो हिस्सेदारी आपने कर्जदाता कम्पनी को दे रखी थी, उसे वापस अपने पास लाने की कोशिश करते, लेकिन आपने ऐसा नही किया।
जब कम्पनी ने कन्वर्टिबल डिवेंचर्स को शेयरों में बदलने की मांग की, तब भी आप नहीं चेते, बल्कि एनडीटीवी के 29.18 फीसदी शेयर इन डिवेंचर्स के बदले दे दिए। आप कोशिश करते तो कहीं और से कर्ज लेकर यह कर्जा चुका सकते थे। आप एक बार अपने दर्शकों पर भरोसा करते उनसे अपील करते। हो सकता है वो आपको इस मुश्किल से निकलने में मदद करते। तहलका को भूल गए, लोगों ने तरुण तेजपाल को चंदे से खड़ा कर दिया था, यह कोशिश भी आपने नहीं की।
जब आपके असुरक्षित पड़े शेयरो को कर्जदाता कम्पनी ने बेचने की शुरुआत की क्या तब आपको समझ नहीं जाना चाहिए था कि इसका क्या मतलब है और आगे क्या होने बाला है? इतने नादान तो आप नहीं थे, लेकिन तब भी आपने कर्ज चुका कर शेयर वापस हासिल करने की कोशिश नहीं की। इसके बाद कैसे वे शेयर गोदी सेठ के पास पहुंचे यह अब एक कहानी है।
लेकिन 29.18 फीसदी शेयरों से गोदी सेठ एनडीटीवी का मालिक नहीं बन गया था। पब्लिक और आपके शेयरों को मिलाकर बहुमत आपके पास था। गोदी सेठ ने जरूरत भर के शेयर बाजार से खरीदने की कोशिश की, लेकिन बहुत सफल नहीं हुआ। लगा कि शायद अब भी एनडीटीवी के एडिटोरियल बोर्ड में आपका प्रभुत्व बना रहेगा और एनडीटीवी गोदी मीडिया की सूची में दर्ज नहीं होगा।
लेकिन जब रवीश का इस्तीफा बिना आपके विरोध या न जाने की अपील के बिना हो गया, तसवीर का असली रंग लोगों को तब समझ लेना चाहिए था। रवीश के जाने के बाद आपको एनडीटीवी अपनी मनचाही कीमतों पर बेचने में आसानी हो गई। इस मौके का फायदा उठाकर आपने शेयरों की भरपूर कीमत वसूल की और एक-एक शेयर को तरसते सेठ को मालामाल कर दिया। खुद भी मालामाल हो गए।
इस सप्ताह जब एनडीटीवी की आपकी हिस्सेदारी 32.26 फीसदी में से 27.26 फीसदी शेयरों की बिक्री सम्पन्न हो गई, आपने एनडीटीवी से इस्तीफा दे दिया। लोगों को लगा कि अब इस्तीफा क्यों, वो तो आप पहले ही दे चुके थे। दरसल लोग नहीं जानते कि तब आपने आरआरपीआर होल्डिंग्स प्रा.लि. नामक उस फर्म से इस्तीफा दिया था जिसके हिस्से को गोदी सेठ ने खरीद लिया था। आपने इसका कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया।
एनडीटीवी तब भी आपके पास था, आप उसे बचाने के लिए चाहते तो लड़ सकते थे। इतने औजार आपके पास थे, लेकिन आप तो कुछ और कर रहे थे। आप मोलभाव में लगे थे, गोदी सेठ से ज्यादा से ज्यादा पैसा हासिल करने की तिकड़म में लगे थे। जब वह सब हो गया तो आपने एक मार्मिक सा पत्र जारी किया। उस पत्र से लोगों की सहानुभूति हासिल करने की कोशिश की।
घर में कभी एकांत में बैठें तो सोचें कि इस पूरे प्रकरण में आपको सहानुभूति की जरूरत क्यों थी, सिर्फ चेहरा बचाने के लिए? वह चेहरा जो भारत में ईमानदार और साहसिक पत्रकारिता के लिए जाना जाता था, उस चेहरे ने मौका मिला तो जो किया उससे उसकी विद्रूपता जाहिर हो गई। मुझे तो ऐसा ही लगा।
कई सालों से एनडीटीवी के अलावा कोई और न्यूज़ चैनल नहीं देखा। अब वह भी देखने योग्य नहीं रहा। मेरे जैसे सही खबर के शैदाई की पीड़ा को आप नहीं समझ पाएंगे, इसलिये यह लिख दिया ताकि सनद रहे और वक्त पर काम आए। कहा सुना माफ करें।
आपका एक आम नागरिक।
(सोशल मीडिया से साभार)