दिनेश मालवीय”अश्क”

बन रहे हैं घर बड़े परिवार छोटे हो गये

भीड़ बढ़ती जा रही व्यवहार छोटे हो गये ।

बढ़ रही हैं दौलतें सुख-भोग सब बेइंतहा

आदमी के पर अमल, क़िरदार छोटे हो गये।

ऑनलाइन का चलन ऐसा बढ़ा है आजकल

पहले से छोटे अधिक व्यापार छोटे हो गये।

बन रहे हथियार अंधाधुंध दुनिया में कि अब

हो कहां भंडार शस्त्रागार छोटे हो गये।

कोई छोटा था, नहीं था बात यह अपनी जगह

उसको छोटा कह मगर हम यार छोटे हो गये।

एक लड़का कल मिला उसकी हवस के सामने

मां पिता भाई बहन सब प्यार छोटे हो गये।

आपका दर क्या मिला जाना कहीं न रह गया

सामने जितने रहे संसार छोटे हो गये।

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